मोतीलाल की मौत पर थम नहीं पा रहा है जनाक्रोश
मोतीलाल की मौत पर थम नहीं पा रहा है जनाक्रोश
- विशद कुमार
गिरिडीह ढोलकट्टा में पुलिस की गोली का शिकार मोतीलाल बास्के की मौत का लगभग एक माह गुजर जाने के बाद भी जहां राज्य के कई राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों सहित आम जनता का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन तथा हेमंत सोरेन द्वारा उक्त घटना की केवल निंदा ही नहीं की गई बल्कि घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग भी की गई।
कई मानवाधिकार संगठनों की जांच टीम द्वारा भी क्षेत्र का दौरा किया गया और अपनी जांच रिपोर्ट में पुलिस को साफ तौर पर दोषी पाया गया। वहीं पुलिस मुख्यालय द्वारा सीआईडी जांच के आदेश के बाद भी प्रशासनिक स्तर पर कोई हलचल देखने को नहीं मिल रही है।
मोतीलाल की मौत से उपजे जनाक्रोश का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 9 जून को पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मारा गया मोतीलाल बास्के की जब पहचान हुई तो 11 जून को ‘मजदूर संगठन समिति’और ‘मारांग बुरू सांवता सुसार बैसी’ने एक बैठक कर मोतीलाल को अपने संगठन का सदस्य बताते हुए विरोध दर्ज किया तथा 14 जून महापंचायत बुलाने की घोषणा की गई। 14 जून के महापंचायत में मजदूर संगठन समिति, मरांग बुरू सांवता सुसार बैसी, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन, पीयूसीएल, भाकपा (माले), झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा एंव क्षेत्र के कई पंचायत प्रतिनिधियों ने भाग लिया। महापंचायत में लगभग पांच हजार की भीड़ उमड़ पड़ी।
महापंचायत में ही सभी संगठनों एंव राजनीतिक दलों का एक मोर्चा ‘दमन विरोधी मोर्चा ’बनाया गया। उसी दिन मोतीलाल की पत्नी पार्वती देवी ने पुलिस को अपने पति की मौत का जिम्मेवार मानते हुए पुलिस पर मधुबन थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसे पुलिस ने ठंडे बस्ते में डाल रखा है।
महापंचायत के बाद पुलिस के विरोध में एक रैली निकाली गई। विरोध में पुनः 17 जून को मधुबन बंद रहा। 21 जून गिरिडीह डीसी कार्यालय के समक्ष ‘दमन विरोधी मोर्चा’द्वारा धरना देकर मोतीलाल की मौत के जिम्मेवार पुलिसकर्मियों पर कानूनी कार्यवाई की मांग की गई। एक जुलाई को मानवाधिकार संगठन से संबंधित सी.डी.आर.ओ (काॅओर्डिनेशन आॅफ डेमोक्रेटिक राईट आर्गनाइजेशन) की जांच टीम ढोलकट्टा गांव गयी। चार-पांच घंटे की जांच के बाद सी.डी.आर.ओ. की टीम यह निष्कर्ष पर पहुंची कि मोतीलाल बास्के की मौत पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में हुई है।
पुलिस अपनी गलती छुपाने के लिए मजदूर मोतीलाल को नक्सली बता रही थी। टीम के साथ क्षेत्र के पंचायत प्रतिनिधि भी थे।
इसके पूर्व 15 जून को मोतीलाल की पत्नी पूर्व मुख्यमंत्री एंव प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सारेन से भेंट की।
हेमंत सोरेन ने मामले की उच्चस्तरीय जांच, मृतक की पत्नी को नौकरी व मुआवजा की मांग सरकार से की। उसके बाद ढोलकट्टा गांव जाकर पूर्व मुख्यमंत्री तथा झामुमो सुप्रीमों षिबू सोरेन 21 जून को मृतक की पत्नी से भेंट की तथा मामले को संसद के सदन में उठाने का आश्वासन दिया। पूर्व मुख्यमंत्री झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने न्यायायिक जांच की मांग की। वहीं सरकार का सहयोगी दल आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो ने भी मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की।
2 जुलाई को गिरिडीह जिले में मशाल जुलूस निकाला गया तथा 3 जुलाई को पूरा गिरिडीह बंद रहा।
मामले पर मसंस के महासचिव बच्चा सिंह ने बताया कि ‘दविमो’ द्वारा 5 जुलाई को एक बैठक करके यह फैसला लिया गया कि 10 जुलाई को विधानसभा मार्च किया जाएगा, उसके बाद हाईकोर्ट रांची में मोतीलाल की मौत की जिम्मेवार पुलिस पर मुकदमा फाईल किया जाएगा और झारखंड के सभी 81 विधायकों, 14 सांसदों व 4 राज्यसभा सदस्यों को मोतीलाल की मौत से संबधित सारे दस्तावेज दिये जाएंगे। उल्लेखनीय है कि इन सारे घटनाक्रमों के लगातार हलचल के बावजूद पुलिस प्रशासन कुंभकर्णी नींद सोया है। उनके द्वारा न तो मोतीलाल की मौत के कारणों को लेकर कोई जांच की जा रही है और न ही जनता द्वारा किये जा रहे सवालों पर कोई प्रतिवाद हो रहा है। जो पुलिस पर हो रहे संदेह को मजबूत आधार देने को काफी है कि मोतीलाल की हत्या जान बुझ कर की गई है। जिसका कारण मात्र यह है कि पारसनाथ की तलहटी में बसे आदिवासी लोग प्रशसन व शासन तंत्र की किसी जनविरोधी कार्यवार्ही का विरोध न कर सके। घटना में शासनतंत्र व प्रशासनिक संतिप्तता इस बात से भी मजबूत होती दिखती है कि पारसनाथ गिरिडीह संसदीय क्षेत्र तथा विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है और दोनों ही जनप्रतिनिधि रवीन्द्र कुमार पाण्डेय व निर्भय शाहाबादी भाजपा के सांसद व विधायक है, दोनों ही जनप्रतिनिधि ढोलकट्टा की घटना के एक माह बीत जाने और इतने जन प्रतिरोध के बाद भी न तो घटनास्थल का दौरा किया, न ही मृतक मोतीलाल के परिवार से मिला, न ही उक्त घटना पर कोई बयान ही जारी किया है।
दूसरी तरफ पुलिस मुख्यालय झारखण्ड द्वारा 16 जून को ही सीआईडी जांच का आदेश दे दिया गया है, बावजूद आजतक ऐसा कोई भी दल न तो गांव गया है और न ही पीड़ित या गांव के लोगों से मिला है।
विशद कुमार
स्वतंत्र पत्रकार


