मोदी और शाह की रणनीति बुरी तरह फेल होने की दस सबसे बड़ी वजहें
मोदी और शाह की रणनीति बुरी तरह फेल होने की दस सबसे बड़ी वजहें

Ten biggest reasons for Modi and Shah's strategy to fail badly
Selfishness prevailed over BJP first, then fear started dominating
नई दिल्ली। इतनी बड़ी हार के लिए भाजपा का अपना डर और स्वार्थ की राजनीति मुख्य रूप से ज़िम्मेदार रही। पूरा देश फतह कर लेने वाली भाजपा... दिल्ली की सात की सात लोकसभा सीटें जीत लेने वाली भाजपा... लोकसभा चुनाव में 70 में से 60 विधानसभा सीटों पर आगे रहने वाली भाजपा ने लोकसभा चुनाव के फौरन बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव क्यों नहीं कराया?
ख़ासकर तब, जबकि केजरीवाल उस वक्त बुरी तरह से डरे हुए थे, उनका मनोबल ध्वस्त हो चुका था, वे राज्यपाल से विधानसभा भंग न किए जाने की गुहार लगा रहे थे, सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को दोबारा रिझाने की कोशिश कर रहे थे। युद्ध और राजनीति में विरोधी पर वार करने का सबसे सही समय वही होता है, जब वह पस्त हो, लेकिन भाजपा ने आम आदमी पार्टी को दोबारा खड़ा होने का मौका दे दिया।
उस समय भाजपा ख़ुद जोड़-तोड़ से सरकार बनाने की घटिया राजनीति में उलझ गई। इसी कोशिश में उसने काफी वक़्त बर्बाद कर दिया। हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हुए, लेकिन दिल्ली में उसने चुनाव कराने में और देर की। इसका नतीजा यह हुआ कि पहले भाजपा पर स्वार्थ हावी था, फिर डर हावी होने लगा।
इसी डर की वजह से दिल्ली में हर्षवर्द्धन जैसे सबल और साफ़-सुथरी छवि के लोकप्रिय नेता के रहते उसने चुनाव से 20 दिन पहले किरण बेदी को इम्पोर्ट किया और पार्टी में असंतोष की आग भड़का ली। मनोज तिवारी जैसे नेताओं ने आवाज़ उठाने की कोशिश भी की, लेकिन उन आवाज़ों को दबा दिया गया। जब तक उसे अहसास हुआ कि फ़ैसला ग़लत हो गया, तब तक काफी देर हो चुकी थी। नतीजा फ्रस्ट्रेशन में आकर उसने और भी नकारात्मक प्रचार किया।
फालतू का दिखावा भी किया।
ओबामा के आगे-पीछे भी घूमे। टप-टप लार भी टपकाई। अलग-अलग नेताओं ने उल्टे-पुल्टे बयान भी दिये। कुछ सड़क-छाप नेताओं के सांप्रदायिक बयान भी आए। सारे दांव उल्टे पड़े। कुल मिलाकर, मई 2014 से लेकर फरवरी 2015 तक उसने क्रमशः अपनी स्थिति कमज़ोर की और आम आदमी पार्टी ने अपनी स्थिति मज़बूत की।
आम आदमी पार्टी पर उसका कोई हमला कारगर नहीं हुआ। जब उसने कहा कि केजरीवाल अपने वादे पूरे नहीं कर सके और कुर्सी छोड़कर भाग गए, तो लोगों ने पूछना शुरू किया कि जो वादे आपने किये थे, उनका क्या हुआ? लोगों के एकाउंट में अब तक क्यों नहीं आए 15 लाख रुपये? क्यों नहीं सुधरी दिल्ली में कानून-व्यवस्था? क्यों नहीं लगा भ्रष्ट अफसरों और पुलिस के द्वारा आम आदमी को सताए जाने पर लगी रोक?
ऐसे में, नतीजा अप्रत्याशित ज़रूर लग रहा है, लेकिन यह तो होना ही था!
/hastakshep-prod/media/post_attachments/QWcjkp3kHgNltnOsV4Nh.jpg)
मोदी और शाह की रणनीति बुरी तरह फेल होने की दस सबसे बड़ी वजहें देखिए-
- लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद विधानसभा चुनाव नहीं कराना।
- मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर हर्षवर्द्धन को आगे नहीं बढ़ाना।
- मतदान से सिर्फ़ 20 दिन पहले किरण बेदी को पार्टी में लाकर उन्हें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश कर देना। इसे न पार्टी पचा पाई, न पब्लिक पचा पाई।
- अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ नकारात्मक प्रचार और स्वयं मोदी का इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना।
- मोदी सरकार के नौ महीने के कामकाज की एंटी-इनकम्बेंसी और भाजपा नेताओं का घमंड।
- कांग्रेस के ज़्यादातर वोटों का आम आदमी पार्टी की तरफ शिफ्ट हो जाना।
- भाजपा के ख़िलाफ़ बिहार और यूपी की तर्ज पर एक छिपा हुआ ग्रैंड एलायंस बन जाना। इस वजह से एंटी-भाजपा वोटों का ज़बर्दस्त ध्रुवीकरण हुआ।
- कांग्रेस का "प्लान-ए" (देखें मेरी पिछली टिप्पणी- दिल्ली चुनाव और दिल की बात) कामयाब हुआ। उसने अपनी दोनों आंखें फुड़वाकर भाजपा की एक आंख फोड़ डाली।
- भाजपा के 20 दिन के परंपरागत ढर्रे वाले प्रचार के मुक़ाबले आम आदमी पार्टी का 9 महीने लंबा इमोशनल एनजीओ-स्टाइल्ड चुनाव-प्रचार।
- दिल्ली की जागरूक जनता ने पहले ही Modi for PM और Kejriwal for CM का मन बना लिया था।
दिल्ली चुनाव के बारे में मोटे तौर पर ये तीन बातें कही जा सकती हैं-
- यह चुनाव किसी राज्य की विधानसभा के चुनाव की तरह नहीं, नगर निगम के चुनाव की तरह था, जिसमें बेहद स्थानीय मुद्दे और लोगों की छोटी-छोटी चिंताएं हावी रहीं।
- इस चुनाव में वर्ग-संघर्ष साफ़ तौर पर देखने को मिला। उच्च और उच्च मध्य वर्ग एक तरफ। निम्न और निम्न मध्य वर्ग एक तरफ।
- ध्रुवीकरण पॉलिटिक्स की माहिर भाजपा के ख़िलाफ़ एंटी-भाजपा वोटों का ऐतिहासिक ध्रुवीकरण हुआ।
बहरहाल, क्या भाजपा इस हार से सबक लेगी? इस देश को अब साफ-सुथरी राजनीति और काम करने वाली सरकार चाहिए, जो जनता के रोज़मर्रा की मुश्किलें हल कर सकें। उन्हें लंबी-चौड़ी डींगे हांकने वाले लोग नहीं चाहिए। शायद मोदी और शाह इस बात को समझें और अपनी सोच और कार्यशैली में बदलाव लाएं।
अभिरंजन कुमार


