This agricultural law is a law of violation of the freedom of the farmer.

मोदी के कृषि क़ानून (Modi's agricultural law) कृषि क्षेत्र में पूंजी के एकाधिकार की स्थापना के क़ानून हैं। आगे हर किसान मज़दूरी का ग़ुलाम होगा। इसके बाद भूमि हदबंदी क़ानून (Land ceiling law) का अंत भी जल्द ही अवधारित है। तब उसे कृषि के आधुनिकीकरण की क्रांति कहा जाएगा। ये कृषि क़ानून किसान मात्र की स्वतंत्रता के हनन का क़ानून है।

Modi's MSP does not mean minimum support price but the maximum selling price

आज मोदी के एमएसपी का अर्थ न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं, अधिकतम विक्रय मूल्य हो चुका है - Maximum Saling Price। एमएसपी फसल के ख़रीदार के लिए नहीं, किसानों के लिए बाध्यता स्वरूप होगा ताकि कृषि व्यापार के बड़े घरानों को न्यूनतम मूल्य में फसल मिल सके ; उनका मुनाफ़ा स्थिर रह सके। आगे से फसल बीमा की व्यवस्था कृषि व्यापार के बड़े घरानों के लिए होगी ताकि उन्हें फसल के अपने सौदे में कोई नुक़सान न होने पाए। किसान से कॉरपोरेट के लठैत, पुलिस और जज निपट लेंगे।

अब क्रमश: गन्ना किसानों की तरह ही आगे बड़ी कंपनियों के पास किसानों के अरबों-खरबों बकाया रहेंगे। ऊपर से पुलिस और अदालत के डंडों का डर भी उन्हें सतायेगा। कृषि क्षेत्रों तेज़ी के साथ धन की निकासी का यह एक सबसे कारगर रास्ता होगा।

किसान क्रमश: कॉरपोरेट की पुर्जियों का ग़ुलाम होगा। उसकी बकाया राशि को दबाए बैठा मालिक उसकी नज़रों से हज़ारों मील दूर, अदृश्य होगा। अदालत-पुलिस व्यापार की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तत्पर होगी।

इन कृषि क़ानूनों से कृषि क्षेत्र में मंडियों के कारोबार और पूरे भारत के कोने-कोने से मोदीखानों के विशाल संजाल की पूर्ण समाप्ति की दिशा में ठोस क़ानूनी कदम उठाया है। यह भारत में रोज़गार के एक बड़े अनौपचारिक क्षेत्र के समूल उच्छेदन की तरह होगा।

According to BJP, now farmers are mere terrorists

इस विषय पर आज बीजेपी की प्रमुख प्रवक्ता कंगना रनौत ने कहा है कि कृषि क़ानूनों का विरोध करने वाले तमाम लोग आतंकवादी हैं। अर्थात् बीजेपी के अनुसार अब किसान मात्र आतंकवादी है। इसी से पता चलता है कि आने वाले दिनों में प्रवंचित किसानों के प्रति मोदी सरकार का क्या रवैया रहने वाला है।

Kangana Ranaut is the sum of Sambit Patra and Smriti Irani in BJP

जो लोग कंगना को बीजेपी का प्रवक्ता कहने में अतिशयोक्ति देखते हैं, उन्हें शायद यह समझना बाक़ी है कि तमाम फासिस्टों के यहाँ भोंडापन और उजड्डता नेतृत्व का सबसे बड़ा गुण होता है, जो समय और उनके प्रभुत्व के विकास की गति के साथ सामने आता है। कंगना रनौत अनुपम खेर, मनोज तिवारी और बॉलीवुड के कई बड़बोले मोदी-भक्तों का बिल्कुल नया, अद्यतन शक्तिशाली संस्करण है। सब जानते हैं कि उसे मोदी-शाह का वरद्-हस्त मिला हुआ है।

यदि किसी ने मनोज तिवारी की किसी भोजपुरी फ़िल्म को देखा हो तो कहते हैं कि वहाँ उसकी फूहड़ता अपने परम रूप में दिखाई देती है। उसी से पता चलता है कि एक प्रदेश का अध्यक्ष बनने के लिये भाजपा में आदमी के किस गुण का सबसे अधिक महत्व होता है ? संबित पात्रा का उदाहरण भी भिन्न नहीं हैं। अब आगे कंगना ही उसके स्थान की हक़दार हो सकती है। उसे जेड सिक्योरिटी किसी गोदी मीडिया ने नहीं दी है। वह एब्सर्डिटी की मोदी राजनीति का एक स्वाभाविक रूप है। उसके ज़रिये राजनीति में कामुकता वाले एक अतिरिक्त कोण को भी लाया जा रहा है। वह हेमा मालिनी नहीं है। खुले आम अपनी अनीतियों का ढिंढोरा पीटती रही है।

लातिन अमेरिका की राजनीति में कामुक प्रतीकों के प्रयोग की तरह ही कंगना भारत की राजनीति में सीधे कामुकता के एक नए तत्व के प्रवेश का हेतु बने तो इसमें अचरज की कोई बात नहीं होगी। वैसे यह भी कह सकते हैं कि वह भाजपा में संबित पात्रा और स्मृति ईरानी का योगफल है; अर्थात् मोदी राजनीति में शीर्ष तक जाने का एक अचूक नुस्ख़ा है। उसकी झाँसी की रानी वाली छवि से सारे शस्त्रपूजक संघ के स्वयंसेवक भी ईर्ष्या करेंगे।

कृषि क़ानूनों को पास करने का मोदी सरकार का तरीक़ा भी आगे के तेज राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में बहुत कुछ कहता है। किसी भी घटना क्रम का सत्य कुछ शर्तों के साथ हमेशा उसमें अपनाई जा रही पद्धतियों के ज़रिये ही व्यक्त होता है। वे शर्तें निश्चित रूप में घटना विशेष, ख़ास परिस्थिति और अपनाई गई खास पद्धति से जुड़ी होती हैं। मोदी हिटलर के अनुगामी है जिसने राइखस्टाग को अचल कर दिया था, विपक्ष के सदस्यों की भागीदारी को नाना हिंसक-अहिंसक उपायों से अचल करके सारी सत्ता को अपने में केंद्रीभूत कर लिया था।मोदी के राजनीतिक अभियान की सकल दिशा हिटलर ही है। संसद में उनके हर कदम को इससे जोड़ कर देखा जाना चाहिए।

Arun Maheshwari - अरुण माहेश्वरी, लेखक सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, सामाजिक-आर्थिक विषयों के टिप्पणीकार एवं पत्रकार हैं। छात्र जीवन से ही मार्क्सवादी राजनीति और साहित्य-आन्दोलन से जुड़ाव और सी.पी.आई.(एम.) के मुखपत्र ‘स्वाधीनता’ से सम्बद्ध। साहित्यिक पत्रिका ‘कलम’ का सम्पादन। जनवादी लेखक संघ के केन्द्रीय सचिव एवं पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव। वह हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।मोदी ने राज्य सभा से इन क़ानूनों को जबरिया पास कराने में राज्य सभा के उपाध्यक्ष हरिवंश का इस्तेमाल किया है। आज वही हरिवंश सदस्यों के आचरण से दुखी होने का नाटक करते हुए उपवास पर बैठे हुए हैं। हरिवंश नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। इतिहास में उनके गले में हमेशा हिटलर का सक्रिय सहयोगी होने का पट्टा लटका हुआ दिखाई देगा। संसदीय पद्धतियों से इंकार सरासर संसद की हत्या है। विषय का सत्य प्रयुक्त पद्धतियों से भी ज़ाहिर होता है।

आज भारत के कोने-कोने में किसान सड़कों पर उतर रहे हैं। हम फिर से दोहरायेंगे - ये क़ानून मोदी की कब्र साबित होंगे।

-अरुण माहेश्वरी

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