मोदी की भाजपा का 31% वोट सुरक्षा कवच में रखना हुआ मुश्किल
मोदी की भाजपा का 31% वोट सुरक्षा कवच में रखना हुआ मुश्किल
मोदी की भाजपा का 31% वोट सुरक्षा कवच में रखना हुआ मुश्किल
साम्प्रदायिकता की भेंट नहीं चढ़े यह चुनाव
जयपुर। जैसे-जैसे देश लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे ही मोदी की भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। पाँच राज्यों में हुए या हो रहे विधानसभा चुनावों को मोदी की भाजपा साम्प्रदायिकता की राह पर ले जाने में नाकाम हुई है। इन चुनावों में जीत किसकी होगी यह तो आने वाली 11 दिसम्बर को मालूम चलेगा, लेकिन इतना ज़रूर पता चल गया है कि यह चुनाव साम्प्रदायिकता की भेंट नहीं चढ़े, हालाँकि मोदी की भाजपा की हर संभव कोशिश रही कि किसी तरह यह चुनाव साम्प्रदायिक हो जाए। इसके लिए उन्होंने अयोध्या में धर्म सभा बुलवाकर यह संदेश देने का प्रयास किया कि हम राम मन्दिर के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन बहुसंख्यक वर्ग यानी हिन्दू समाज ने इस मुद्दे की हवा निकाल दी, क्योंकि इसमें शामिल होने वाली संख्या को इतनी भारी संख्या बताई जा रही थी, लेकिन हुआ उसका उलटा। मुश्किल से चालीस हज़ार लोगों के पहुँचने की जानकारियाँ सामने आ रही हैं, जिससे मोदी की भाजपा के साम्प्रदायिक ग़ुब्बारे की हवा निकलती जा रही है।
अब भयभीत मोदी की भाजपा व उसकी रणनीतिकार आरएसएस तरह-तरह के फ़ार्मूले पेशकर देश को 2014 वाले ट्रैक पर ले जाने का भरपूर प्रयास कर रहा है, लेकिन बहुसंख्यक वर्ग के साथ-साथ मुसलमान भी इनकी रणनीतिक चालों को नाकाम करने का प्रयास कर रहे हैं।
अयोध्या में धर्म संसद इसी कूटनीति व रणनीतिक चाल का हिस्सा थी। इससे पहले भी मुसलमानों को आक्रोशित करने के प्रयास किए गए, लेकिन मुसलमानों ने टकराव की स्थिति पैदा ही नहीं होने दी। तीन तलाक़ का मामला भी उसी कूटनीतिक चाल का हिस्सा था, लेकिन मुसलमान ने इसे भी नाकाम कर दिया। कोई रिएक्शन नहीं किया जबकि यह उसके धार्मिक मामलों में सीधा-सीधा हस्तक्षेप था, लेकिन मुस्लिमों ने इस पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी। इतना ही नहीं मुस्लिम औरतों ने इसको ग़लत क़रार दिया।
यहाँ भी फेल हो गई भाजपा
और भी बहुत दलीले हैं जिससे यह साबित होता है कि मोदी की भाजपा व आरएसएस साम्प्रदायिक ग़ुब्बारे की हवा न निकले ऐसे मार्ग बनाती रहती है, लेकिन न तो बहुसंख्यक और न ही मुसलमान उनके मकड़जाल में फँस नहीं रहा है। इसी लिए हैरान परेशान मोदी की भाजपा व आरएसएस को कुछ सूझ नहीं रहा कि किस तरह 31 प्रतिशत वोट को सहेज कर रखे। हालाँकि इस 31 प्रतिशत वोट में 15-16 प्रतिशत वोट ऐसा है, जो साम्प्रदायिकता को पंसद नहीं करता, वह आरएसएस के द्वारा स्वयंभू गुजरात मॉडल के जाल में फँस गए थे। हिन्दुस्तान में साम्प्रदायिकता की कोई गुंजाईश नहीं है। चाहे बहुसंख्यक हिन्दू हो या मुसलमान, दोनों ही इसे एक सिरे से नकारते हैं। यह बात हिन्दुस्तान का इतिहास बताता है, हालाँकि कुछ ज़मीर फरोश मुस्लिम आरएसएस के एजेंडे को टीवी पर बैठकर उलटी सीधी डिबेट्स में हिस्सा लेकर ऐसे मामलों को बेवजह तूल देते हैं, जिनको समाज तवज्जो ही नहीं देना चाहता है। इसलिए मुझे यह कहने में गुरेज़ नहीं कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 विकास के मुद्दे पर होगा, जिसमें मोदी की भाजपा असफल सी दिखती है, क्योंकि वही चाहती है कि चुनाव साम्प्रदायिकता के आधार पर हो। विकास उसका मुद्दा ही नहीं लगता, अगर वह विकास पर चुनाव लड़ना व जीतना जानती तो कभी भी साम्प्रदायिकता के आधार पर चुनाव को ग़लत राह न पकड़ने देते।
हनुमान को दलित बताना, अली और बजरंगबली की बातें करना क्या बतलाता है, लेकिन उसकी इस तरह की सभी स्ट्रेटेजी फेल हो रही हैं। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में तो इतनी बुरी तरह से हार होने के क़यास लग रहे हैं कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
हर मोर्चे पर फेल मोदी की भाजपा के पास कोई जवाब नहीं है चाहे किसानों का मुद्दा हो या बेरोज़गारी। महँगाई व आर्थिक हालात भी ठीक नहीं हैं, इसलिए वह इन सब मुद्दों पर चर्चा करने से बच रही है।
अब यह तो आने वाले दिनों में और साफ हो जाएगा कि साम्प्रदायिकता का मकड़जाल जीतता है या सब का साथ सबका विकास। पाँचो प्रदेश के विधानसभा चुनाव के परिणाम यह तय करेगे कि आगामी चुनाव का ट्रैक क्या होगा।
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