आपातकाल के बाद यह दूसरी मर्तबा है जब मीडिया बहुत बेशर्मी से कॉरपोरेट और सांप्रदायिक ताकतों के पक्ष में हुंकार भर रहा है- गताडे
“सांप्रदायिकता से एकजुट होकर करें संघर्ष”
‘मीडिया की सांप्रदायिकता’ विषय पर परिचर्चा और किताबों का लोकार्पण
मीडिया स्टडीज ग्रुप का आयोजन
नई दिल्ली 5 अप्रैल 2014
मीडिया स्टडीज ग्रुप की तरफ से शुक्रवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में ‘मीडिया की सांप्रदायिकता’ विषय पर परिचर्चा और 4 किताबों का लोकार्पण किया गया। ग्रुप की तरफ से ये कार्यक्रम उसके द्वारा प्रकाशित होने वाली दो शोध पत्रिकाओं जन मीडिया (हिंदी में) और मास मीडिया (अंग्रेजी में) के दो वर्ष पूरे होने पर आयोजित किया गया। इस मौके पत्रकारों और अकादमिक कार्यों से जुड़े लोगों ने आगामी आमचुनाव-2014 में सांप्रदायिक ताकतों के सत्ता हथियाने की कोशिशों के आहट के बीच सभी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों को इसके खिलाफ एकजुट होने की अपील की है।
मेनस्ट्रीम के संपादक सुमीत चक्रवर्ती के अनुसार, “हम अभी मोदी के उभार के रूप में प्रतिक्रियावादी क्रांति और अंधेरा को देख रहे हैं।”
इस परिचर्चा में सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष गताडे, जेएनयू के प्रोफेसर एस.एन. मालाकार और राकेश बटब्याल, वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया और शाहीन नजर तथा संस्कृतिकर्मी चित्रकार गोपाल नायडू ने भी बात रखी।
सुमित चक्रवर्ती ने कहा कि कॉरपोरेट मीडिया भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के पक्ष में खुलकर प्रचार कर रहा है ताकि उनके नेतृत्व में बनने वाली अधिनायकवादी सरकार बड़े व्यापारिक घरानों और कॉरपोरेट की बढ़ावा दे।
हिन्दुत्व के हमलों को रोक पाने में वामपंथी पार्टियों की असफलता पर अफसोस जाहिर करते हुये उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों को एकजुट होकर संघर्ष करना चाहिए।
सुभाष गताडे ने सांप्रदायिक और फासीवादों ताकतों की तरफ इशारा करते हुये कहा कि भारत, 1930 में जर्मनी में फासीवादी दौर का गवाह बन रहा है। गताडे के अनुसार ऐसे नाजुक वक्त में अखबारों पर उनके मालिकों का सीधा नियंत्रण हो गया है और संपादक की आजादी खत्म हो गई है। उन्होंने दावे के साथ कहा कि आपातकाल के बाद यह दूसरी मर्तबा है जब मीडिया बहुत बेशर्मी से कॉरपोरेट और सांप्रदायिक ताकतों के पक्ष में हुंकार भर रहा है।
उन्होंने कहा कि अभी हाल में आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार किए गए मुस्लिम युवाओं को लेकर जिस तरह से मीडिया ने रिपोर्टिंग की है वो काफी शर्मनाक है। मीडिया इस्लामोफोबिया से ग्रस्त है और वो लोगों के जेहन में ‘मुसलमान आतंकवादी होते हैं’ इस तरह की रूढ़ी रोप रही है।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने मीडिया को सांप्रदायिक पूर्वाग्रह निर्माण के लिये जिम्मेदार ठहराते हुये कहा कि “मुख्यधारा की मीडिया ही मुसलिम आतंकवाद जैसी भाषा का इस्तेमाल करती है जो हिन्दुत्ववादी ताकतों को समाज को धर्म के आधार पर बांटने मदद करती है।”
सांप्रदायिकता और नवउदारवाद को जोड़ते हुये प्रो. एस.एन. मालाकार ने कहा कि इस आमचुनाव में दो मुख्य प्रतिद्वंदी दल भाजपा और कांग्रेस को यूएसए की कॉरपोरेट लॉबी समर्थन दे रही है। उन्होंने रामविलास पासवान और उदित राज जैसे नेताओं के भाजपा के साथ जुड़ने की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि दलित समुदाय से आने वाले इन नेताओं ने अपने निहित स्वार्थों के लिये मनुवादी भाजपा से जुड़कर बहुत नुकसान पहुंचाया है।
प्रो. राकेश बटब्याल ने कहा कि सांप्रदायिकता पर जीत तब तक नहीं हासिल की जा सकती जब तक कि धर्मनिरपेक्षता में विश्वास ना हो।
चित्रकार गोपाल नायडू ने 1969 के नागपुर दंगों का हवाला देते हुये बताया कि उस समय भी मीडिया ने बहुत गलत रिपोर्टिंग की थी। लेकिन वाम और जनवादी लोगों के विरोध ने उसे सही रिपोर्टिंग करने पर मजबूर किया।
इस मौके पर मीडिया की सांप्रदायिकता पर आधारित लोकार्पित हुई किताबें हैं – ‘देशभक्ति गाने, क्रिकेट और राष्ट्रवाद’ (2014), ‘मीडिया और मुसलमान (2014)’, ‘मीडिया की सांप्रदायिकता (2014)’, और ‘इंबेडेड जर्नलिज्म:पंजाब (2014)। इन सभी किताबें को मीडिया स्टडीज ग्रुप, दिल्ली ने प्रकाशित किया है।