पछास का 9वां सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न.............
पछास का 2 दिवसीय 9वां सम्मेलन 31 अक्टूबर-1 नवंबर को दिल्ली में आयोजित किया गया। सम्मेलन में संगठन के उत्तराखण्ड, यूपी तथा दिल्ली से आए प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। 31 अक्टूबर को पूरे दिन व 1 नवंबर की दोपहर तक बंद सत्र चलाया गया। बंद सत्र के दौरान पिछले 2 सालों में देश-दुनिया में आए बदलावों पर गहन विचार-विमर्श करते हुए तथा इन बदलावों की रोशनी में अपने लिए नए कार्यभार चुनते हुए राजनीतिक व सांगठनिक रिपोर्ट को ध्वनि मत से पारित किया गया। संगठन को आगामी सम्मेलन तक नेतृत्व देने के लिए नए नेतृत्व का चुनाव भी बंद सत्र के दौरान किया गया।
‘अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति’, ‘राजनीतिक परिस्थिति’ व ‘छात्र नौजवान और शिक्षा जगत’ हिस्सों में विभाजित राजनीतिक रिपोर्ट को बहस के लिए प्रस्तुत करते हुए पछास के महासचिव ने कहा कि पूंजीवादी शासको की तमाम कोशिशों व लफ्फाजियों के बाद भी आज विश्व बाजार 2008 की मंदी से नहीं उबर पाया है। उल्टा मंदी के दौरान सरकारों द्वारा पूंजीपतियों को दी गयी रियायतों व बेलआउट पैकेजों के चलते यह संकट सरकारों पर आन पड़ा है। सरकारों पर निरंतर बढ़ता कर्ज, बढ़ता बजट घाटा, साम्राज्यवादी देशों में बढ़ती बेरोजगारी इस बात की तसदीक करती है कि शासकों के पास पूंजीवादी संकट का कोई हल नहीं है।
सरकारों से प्राप्त इन रियायतों से जहां पूंजीपति वर्ग और अधिक मालामाल हुआ है, वहीं दूसरी तरफ इसका सारा बोझ सरकारों ने देश-दुनिया के मेहनतकशों पर डाला है। शिक्षा, स्वास्थ जैसी बुनियादी जरूरतों के बजट में कमी, ठेके पर रोजगार, छंटनी आज सभी देशों की हकीकत बन चुकी है। जिसने पहले से तबाह मेहनतकश जनता की जिंदगी को रसातल में पहुंचा दिया है। यह पूंजीवादी व्यवस्था की क्रूर सच्चाई है कि इन संकटो के लिए जिम्मेदार पूंजीपति वर्ग इस दौरान भी मालामाल हुआ है तो मजदूर-मेहनतकश बर्बाद।
अर्थव्यवस्था में आए इन संकटों ने इन देशों के भीतर राजनीति को भी प्रभावित किया है। दक्षिणपंथी ताकतों की बढ़ती ताकत व कुछ देशों में इनका सत्ता प्राप्त कर लेना, देश-दुनिया की मेहनतकश जनता के सामने नयी चुनौती पेश करता है। यह इस बात को भी साबित करता है कि अपने पतन के दौर में पूंजीवाद खुद को बचाए रखने के लिए ऐसे ही ब्रहमराक्षस पैदा करेगा। ऐसे दौर में केवल समाजवादी क्रांति ही पूंजीवाद-साम्राज्यवाद की इन समस्याओं से मेहनतकशों को निजात दिला सकती है।
राष्ट्रीय परिस्थिति पर बोलते हुए उन्होने कहा कि बीते 2 सालों में देश के भीतर भारतीय पूंजीपति वर्ग व संघ के गठजोड़ से गुजरात दंगों के गुनाहगार फासिस्ट मोदी का केन्द्र में सत्ताशीन होना एक बड़ी परिघटना बनती है। कांग्रेस की जनविरोधी नीतियों व भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता के सामने पूंजीवादी मीडिया ने मोदी नाम का ऐसा ‘जादूगर’ खड़ा किया, जिसके पास सभी समस्याओं का रामबाण इलाज था। परन्तु पिछले डेढ़ सालों ने ये साबित किया है कि लम्पट पूंजीवाद के दौर में पूंजीपति वर्ग के द्वारा पैदा किए गए नए-नए ‘विकास-पुरूष’ भी लम्पट-झूठे-लफ्फाज ही होगें। पूंजीपति वर्ग के लिए आर्थिक नीतियों को तेजी से लागू करना, पूंजी के रास्तों से सभी बंधनों को साफ करना, श्रम कानूनों में बदलाव कर श्रम को पूंजी की बेड़ियों में और अधिक कसना, किसानों की जमीनों को छीन उन्हें देशी-विदेशी पूंजी मालिकों पर न्यौछावर करने के लिए ‘भूमि अधिग्रहण कानून’ में बदलाव करना, प्राकृतिक संसाधनों को साम्राज्यवादियों को औने-पौने दामों पर बेच उन्हें मेहनतकशों के श्रम की लूट के लिए आमंत्रित करना ही मोदी नित भाजपा सरकार का अब तक का एजेण्डा रहा है। इन नीतियों का कुल परिणाम मेहनतकशों को बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी, गरीबी, घटते जीवन स्तर के रूप में चुकाना पड़ रहा है। तबाह-बर्बाद जनता इनके खिलाफ एकजुट हो विद्रोह न कर दे इसके लिए आरएसएस के हजारों कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर समाज में साम्प्रदायिकता का जहर घोल अपना हिन्दू राष्ट्र का सपना पूरा करने में लगे हैं। मोदी के सत्तासीन होने के बाद से ही बेलगाम संघी गुण्डे प्रत्येक जनवादी ताकत पर हमला बोल रहे हैं। शिक्षा में बदलाव के जरिए आम छात्रों के दिमागों में भगवा जहर घोलने की तैयारी की जा रही है। संघी-फासिस्ट ताकतें पहले के मुकाबले कई गुना ताकतवर हुयी हैं। मोदी नित भाजपा सरकार के सत्ताशीन होने के बाद से भारतीय राज्य का फासीवादी राज्य में बदलते जाने के खतरे और अधिक बढ़ गए हैं। इसे केवल मजदूर वर्ग के नेतृत्व में चलने वाला आंदोलन ही चुनौती दे सकता है। छात्रों-नौजवानों को भी इन काली ताकतों के खिलाफ आंदोलनों को खड़ा करते हुए संघर्ष का शंखनाद फूंकना होगा।
राजनीतिक रिपोर्ट के ‘छात्र-नौजवान व शिक्षा जगत’ वाले हिस्से को बहस के लिए पेश करते हुए उन्होने कहा कि पूरी दुनिया के शासकों द्वारा शिक्षा पर हमला बोला जा रहा है। भारतीय शासक भी शिक्षा के निजीकरण की अपनी योजना को निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं। साथ ही शिक्षा को पूंजीपतियों की जरूरतों के मुताबिक ढालने के लिए सीबीसीएस व एफवाईयूपी जैसे प्रोग्राम ला रहे हैं। सरकारों के निरंतर घोषणाओं के बाद भी बेरोजगारी अपने चरम पर है। बेरोजगार, हताश युवा तेजी से साम्राज्यवादी पतित उपभोक्तावादी संस्कृति के जाल में फंसकर नशे व अवसाद का शिकार हो रहा है। ये संस्कृति उसकी लड़ाकू क्षमता व रचनात्मकता को खत्म कर उसे समाज से काट रही है। छात्रों-नौजवानों को समाज की समस्याओं से खुद को जोड़ते हुए व्यवस्था बदलाव के लिए आगे आना होगा।
महासचिव ने पिछले 2 सालों के संगठन के कामों का लेखा-जोखा रखते हुए सांगठनिक रिपोर्ट पेश की। सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों ने रिपोर्ट पर गंभीरता पूर्वक बात करते हुए संगठन की समस्याओं को भी चिन्हित किया। छात्र-नौजवानों को अधिक से अधिक क्रांतिकारी छात्र राजनीति से जोड़ते हुए छात्र आंदोलन को विकसित करने के लक्ष्य लिये गए। सम्मेलन ने अपने नेतृत्व का चुनाव करते हुए साथी कमलेश को अध्यक्ष व साथी महेन्द्र को महासचिव चुना।
सम्मेलन में शहीदो को श्रद्धांजलि, शिक्षा के भगवाकरण के खिलाफ, हिंदू फासीवाद का बढ़ता खतरा, महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा के विरोध में, वैश्विक आतंकवाद का विरोध करो, जनसंघर्षो के समर्थन में तथा वैश्विक जनसंघर्षो के साथ एकजुट हो संबंधित प्रस्ताव भी ध्वनि मत से पारित किए गए।
‘यूथ इण्टरनेशनल’ गीत व जोरदार नारों के साथ सम्मेलन के बंद सत्र का समापन किया गया।
खुले सत्र की शुरूआत डीयू में एक जोरदार जुलूस निकाल कर की गयी। छात्र संघर्षो, बेरोजगारी व पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ नारों से डीयू की सड़कों को गुजांयमान करते हुए जुलूस सम्मेलन स्थल पर पहुंचा, जहां पछास के नवनिर्वाचित अध्यक्ष ने सभा को सम्बोधित किया। खुले सत्र के दौरान ‘जहां रोशनी होती है’ तथा ‘सद्गति’ नाटको का मंचन कर साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास व जातीवाद पर हमला बोला गया। प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच, बरेली के साथियों ने क्रांतिकारी गीतों से पछास के सम्मेलन के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित की।
खुले सत्र में आए विभिन्न छात्र, मजदूर, महिला, शिक्षक व जनवादी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी अपनी बात रखते हुए सम्मेलन के सफलतापूर्वक आयोजन पर बधाई दी तथा पछास के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित की।
(विज्ञप्ति)