मोदी-केजरीवाल में मार्केटिंग 'वार'
मोदी-केजरीवाल में मार्केटिंग 'वार'
मोदी के विकास की असली तस्वीर सामने आने लगी
मोदी को उनकी ही भाषा में में जवाब दे रहे केजरीवाल
अंबरीश कुमार
नई दिल्ली। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को उनकी ही भाषा में में जवाब अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी दे रही है। केजरीवाल से असहमत होने वाले भी इस बात को मान रहे हैं। आज गुजरात में केजरीवाल के दौरे के दौरान गुजरात पुलिस ने जिस ढंग से बाधा डाली वह अब मोदी के गले की हड्डी बनती जा रही है। केजरीवाल गुजरात में मोदी के विकास की असली तस्वीर दिखाने निकले थे और उसकी बानगी उन्होंने देश को दिखा भी दी। वे एक अस्पताल में गए जंहा न कोई मरीज था न नर्स। दो ठो डाक्टर गुजरात में स्वास्थ्य व्यवस्था की सारी कहानी सुना रहे थे किसी को कुछ कहने की जरुरत ही नहीं थी।
जब पुलिस ने केजरीवाल को कानून की भाषा समझाने की कोशिश की तो उसका जवाब भाजपा को दिल्ली में मिला और सारा मुद्दा राष्ट्रीय बन गया। केजरीवाल को रोकने के बाद दिल्ली समेत कई शहरों में हिंसा हुई और पत्थर, लाठी सब चला। भाजपा और आप दोनों के राजनैतिक तौर तरीकों पर देश हैरान जरूर है क्योंकि शुचिता वाली पार्टी है। एक चाल चरित्र और चेहरे वाली तो दूसरी 'स्वराज' वाली। पर दोनों राजनीति सामने है। यह एक राजनैतिक कौशल है जिसमें अन्ना हजारे फेल है और केजरीवाल माहिर। अन्ना हजारे अब राजनीति के बाजार में खड़े होकर अपनी मार्केटिंग कर रहे हैं, विज्ञापन के जरिए। इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है कि जो व्यक्ति समाज और देश बदलने का माद्दा रखता था वह विज्ञापन के बाजार में खड़ा होकर ममता बनर्जी के लिए वोट मांग रहा हो। जबकि केजरीवाल इसके उलट सड़क के संघर्ष में चल रहे हैं।
केजरीवाल की राजनीति से ही मोदी के राजनैतिक हमले की लाइन लेंथ बिगड़ सकती है। क्योंकि दोनों ही राजनैतिक मार्केटिंग के जरिए राजनीति में दखल दे रहे हैं। दिल्ली को छोड़ बाकी देश में दोनों का समर्थक वर्ग भी लगभग एक जैसा है। शहरी मध्य वर्ग जिसमें अगड़ी जातियों की बड़ी हिस्सेदारी है। यह तबका सामजिक न्याय के परम्परागत तौर तरीकों के के खिलाफ है। आरक्षण के खिलाफ है। देशभक्ति की भावना से इतना ओतप्रोत है कि कब उसे अपने देश में एक वर्ग विशेष के लोग खलने लगते है पता नहीं चलता। अब यह दोनों का जो साझा वोट बैंक है यही निर्णायक भी हो सकता है, पर तब जब बंटे नहीं। दिल्ली के चुनाव से पहले यह समूचा वोट मोदी की थैली में जा रहा था। अब इसमें केजरीवाल सेंध लगा रहे हैं। इससे केजरीवाल को कोई ख़ास फायदा तो नहीं होगा पर भाजपा का नुकसान ज्यादा होगा। केजरीवाल तो अन्य राज्यों में डेढ़ दो फीसद बेस वोट बैंक से शुरुआत करेंगे जो मीडिया के माहौल से बना है। पर भाजपा अलग-अलग राज्यों में दस बारह फीसद से लेकर बीस फीसद बेस वोट बैंक से शुरुआत करेगी।न ऐसे में केजरीवाल की यह कटौती घातक हो सकती है। उदाहरण छतीसगढ़ है जहाँ भाजपा बस्तर में बुरी तरह हार चुकी है। अब अगर उसके वोट बैंक में आप ने दो फीसद की भी कटौती की तो खेल बिगड़ जाएगा। यह एक उदाहरण है। इसलिए केजरीवाल भाजपा के लिए ज्यादा बड़ा खतरा है। लखनऊ में मोदी की रैली का हल्ला पीटने के बावजूद मंगलवार को संघ की बैठक में अगर अपेक्षा से कम भीड़ आने पर नेताओं को कसा गया तो इसे हवा का रुख जान सकते है। लंदन विश्वविद्यालय की शोध छात्रा प्रज्ञा धीतल जो चुनावों पर शोध कर रही है वे भी इस रैली में आई थी और कहा -मीडिया के सारे लोग कम भीड़ कि चर्चा तो कर रहे थे पर दूसरे दिन किसी भी अख़बार ने इस बात को लिखा नहीं। क्या मुख्यधारा का मीडिया किसी दबाव में है ? यह सवाल बहुत कुछ कह देता है ऐसे में केजरीवाल जो कर रहे हैं वह मीडिया के जरिए लोगों तक पहुँच तो रहा है। भले एक हिस्सा इसमें कतरब्योंत कर रहा हो।
जनादेश न्यूज़ नेटवर्क


