मोदी ग़रीबों से तप करा रहे हैं और अमीरों को मौज
मोदी ग़रीबों से तप करा रहे हैं और अमीरों को मौज
मोदी ग़रीबों से तप करा रहे हैं और अमीरों को मौज
शिवानन्द तिवारी
सनक में लिया गया है नोटबंदी का निर्णय
गत आठ नवंबर को प्रधानमंत्री जी ने पाँच और हज़ार के नोट रद्द किए जाने की घोषणा की थी।
रिजर्व बैंक के मुताबिक़ उस दिन देश मे पाँच और हज़ार के 15.44 करोड़ नोट चलन में थे।
आज एक महीना बाद रद्द किए गए नोटों मे से कल तक 11.5 करोड़ यानी कुल रद्द नोटों का 80 प्रतिशत बैंकों में वापस आ चुका है।
भारत सरकार के राजस्व सचिव के मुताबिक़ इस माह के अंत तक यानी रद्द नोटों को बैंकों मे जमा करने की अंतिम मोहलत तक लगभग सारे रद्द नोट बैंकों में वापस आ सकते हैं।
इसका अर्थ हुआ कि नगदी में काला धन होने का जो दावा किया जा रहा था वह ग़लत साबित हुआ। या वह कालाधन कम था जो भ्रष्ट बैंक पदाधिकारियों की सहायता से सफ़ेद कर लिया गया।
इस तरह नोटों को रद्द किए जाने का जो मुख्य मक़सद प्रधानमंत्री जी ने बताया था, वह ग़लत साबित हो रहा है।
नोटबंदी के पहले देश की आर्थिक हालत ठीक ठाक थी। स्वयं सरकार का दावा था कि हम दुनिया में सबसे तेज़ गति से विकास करने वाले देश हैं। हमारी विकास की गति चीन से भी तेज़ है।
पिछले दो-तीन वर्षों से देश का बड़ा हिस्सा सुखा से प्रभावित था। कुछ इलाक़ों में तो पीने के पानी तक का संकट उपस्थित हो गया था। लेकिन इस वर्ष बारिश बहुत अच्छी हुई। ख़रीफ़ की बहुत अच्छी फ़सल हुई है। रबी की फ़सल भी अच्छी होगी, इसकी संभावना दिखाई दे रही थी।
जब अर्थ व्यवस्था बिलकुल स्वस्थ हालत में दिखाई दे रही थी तो प्रधानमंत्री जी द्वारा उठाए गए इस क़दम का औचित्य समझ के बाहर है।
रिज़र्व बैंक द्वारा देश मे जारी कुल मुद्रा का 86 प्रतिशत पाँच और हज़ार रूपए के नोटों के रूप में ही था।
ठीक-ठाक चल रही अर्थव्यवस्था से इतनी बड़ी राशि निकाल लेना एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर से 86 प्रतिशत ख़ून निकाल कर उसे अधमरा बना दिए जाने के समान है।
सनक में उठाए गए क़दम से देश की अर्थव्यवस्था को कुल कितना नुक़सान पहुँचा है इसका अंतिम आकलन तो बाद में होगा। लेकिन रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कल जो आकलन बताया उसके अनुसार देश का विकास दर 7.6 से 7.1 प्रतिशत पर आ जाने की संभावना है।
यानी राष्ट्रीय आमदनी में 0.5 प्रतिशत की गिरावट आएगी।
ए. एन. सिंहा संस्थान, पटना के अर्थशास्त्र के प्रो. डी. एम दिवाकर के अनुसार आर्थिक सर्वे के आधार पर 2015-6 के वर्तमान मूल्य के आधार पर हमारा सकल राष्ट्रीय आय 1,34,09,892 करोड़ रू. था। इसमें 0.5 प्रतिशत की गिरावट अर्थ है, सकल घरेलू आय में 67,04,946 करोड़ की कमी या सकल घरेलू उत्पाद में यह 67,83,596 करोड़ है।
दिवाकर जी के मुताबिक़ नोटों की छपाई तथा देश भर में उनको पहुँचाने की लागत लगभग 1,28,000 करोड़ तक आ सकती है।
मनमोहन सिंह जी ने नोटबंदी के इस क़दम से सकल राष्ट्रीय उत्पाद में दो प्रतिशत गिरावट की आशंका व्यक्त की है।
अत: यह कहा जा सकता है किसी सकारात्मक आर्थिक सोच के आधार पर नोटबंदी का यह निर्णय नहीं लिया गया है।
इस फ़ैसले के द्वारा मोदीजी ग़रीबों से तप करा रहे हैं और अमीरों को मौज।
आगे आने वाले दिनों में इस क़दम का पूरा प्रभाव जब प्रत्यक्ष होगा तो जो भक्त आज उनका जयकारा लगा रहे हैं वही उनके प्राण के पीछे लगे दिखाई देंगे।


