मोदी जी कितने सच्चे आंबेडकर भक्त?
मोदी जी कितने सच्चे आंबेडकर भक्त?

भाजपा और उसकी मार्ग दर्शक आर.एस.एस. की नीतियाँ तथा विचारधारा डॉ. आंबेडकर की समतावादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक विचारधारा के बिलकुल विपरीत है
अपने प्रसिद्ध लेख “राज्य और क्रांति” में लेनिन ने कहा है,
“मार्क्स की शिक्षा के साथ आज वही हो रहा है, जो उत्पीड़ित वर्गों के मुक्ति-संघर्ष में उनके नेताओं और क्रन्तिकारी विचारकों की शिक्षाओं के साथ इतिहास में अक्सर हुआ है. उत्पीड़क वर्गों ने महान क्रांतिकारियों को उनके जीवन भर लगातार यातनाएं दीं, उनकी शिक्षा का अधिक से अधिक बर्बर द्वेष, अधिक से अधिक क्रोधोन्मत घृणा तथा झूठ बोलने और बदनाम करने के अधिक से अधिक अंधाधुंध मुहिम द्वारा स्वागत किया. लेकिन उन की मौत के बाद उनकी क्रन्तिकारी शिक्षा को सारहीन करके, उसकी क्रन्तिकारी धार को कुंद करके, उसे भ्रष्ट करके उत्पीड़ित वर्गों को “बहलाने”, तथा धोखा देने के लिए उन्हें अहानिकर देव-प्रतिमाओं का रूप देने, या यूँ कहें, उन्हें देवत्व प्रदान करने और उनके नामों को निश्चित गौरव प्रदान करने के प्रयत्न किये जाते हैं.”
क्या आज आंबेडकर के साथ भी यही नहीं किया जा रहा है?
हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आंबेडकर राष्ट्रीय मेमोरियल के शिलान्यास के अवसर पर डॉ. आंबेडकर मेमोरियल लेक्चर दिया, जिस में उन्होंने डॉ. आंबेडकर के कृत्यों की प्रशंसा करते हुए अपने आप को आंबेडकर भक्त घोषित किया है. उनकी यह घोषणा भाजपा की हिंदुत्व की भक्ति के अनुरूप ही है, क्योंकि भक्ति में आराध्य का केवल गुणगान करके काम चल जाता है और उस की शिक्षाओं पर आचरण करने की कोई ज़रूरत नहीं होती.
मोदी जी ने भी डॉ. आंबेडकर का केवल गुणगान किया है जबकि उन की शिक्षाओं पर आचरण करने से उन्हें कोई मतलब नहीं है. यह गुणगान भी लेनिन द्वारा उपर्युक्त रणनीति के अंतर्गत किया जा रहा है.
कौन नहीं जानता कि भाजपा की हिंदुत्ववादी विचारधारा (Hindutva ideology of BJP) और आंबेडकर की समतावादी विचारधारा (Ambedkar's egalitarian ideology) में छत्तीस का आंकड़ा है. आइये इस के कुछ पह्लुयों का विवेचन करें.
What is the BJP's view on the caste and varna system?
अपने भाषण में मोदी जी ने कहा है कि डॉ. आंबेडकर ने जाति के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी परन्तु कौन नहीं जानता कि भाजपा का जाति और वर्ण व्यवस्था के बारे में क्या नजरिया है. डॉ. आंबेडकर ने तो कहा था कि जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज की स्थापना हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य है परन्तु भाजपा और उसकी जननी आर.एस.एस. तो समरसता के नाम पर जाति और वर्ण की संरक्षक है.
मोदी जी का जीभ कटने पर दांत न तोड़ने का दृष्टान्त भी इसी समरसता अर्थात यथास्थिति का ही प्रतीक है.
मोदी जी ने अपने भाषण में बाबा साहेब की मजदूर वर्ग के संरक्षण के लिए श्रम कानून बनाने के लिए प्रशंसा की है. परन्तु मोदी जी तो मेक इन इंडिया के नाम पर सारे श्रम कानूनों को समाप्त करने पर तुले हुए हैं. जिन जिन प्रदेशों में भाजपा की सरकारें हैं वहां-वहां पर श्रम कानून समाप्त कर दिए गए हैं. पूरे देश में सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में नियमित मजदूरों की जगह ठेकेदारी प्रथा लागू कर दी गयी है जिस से मजदूरों का भयंकर शोषण हो रहा है. बाबा साहेब तो मजदूरों की राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी के पक्षधर थे.
बाबा साहेब के बहुचर्चित “शिक्षित करो, संघर्ष करो और संगठित करो” के नारे को बिगाड़ कर “शिक्षित हो, संगठित हो और संघर्ष करो” के रूप में प्रस्तुत करते हुए मोदी जी ने कहा कि बाबा साहेब शिक्षा को बहुत महत्व देते थे और उन्होंने शिक्षित हो कर संगठित होने के लिए कहा था ताकि संघर्ष की ज़रुरत न पड़े.
इस में भी मोदी जी का समरसता का फार्मूला ही दिखाई देता है जबकि बाबा साहेब ने तो शिक्षित हो कर संघर्ष के माध्यम से संगठित होने का सूत्र दिया था. बाबा साहेब तो समान, अनिवार्य और सार्वभौमिक शिक्षा के पैरोकार थे. इस के विपरीत वर्तमान सरकार शिक्षा के निजीकरण की पक्षधर है और शिक्षा के लिए बजट में निरंतर कटौती करके गुणवत्ता वाली शिक्षा को आम लोगों की पहुँच से बाहर कर रही है.
अपने भाषण में आरक्षण को खरोंच भी न आने देने की बात पर मोदी जी ने बहुत बल दिया है. परन्तु वर्तमान में आरक्षण पर सब से बड़े संकट पदोन्नति में आरक्षण सम्बन्धी संविधान संशोधन का कोई उल्लेख नहीं किया. इसके साथ ही दलितों की निजी क्षेत्र और न्यायपालिका में आरक्षण की मांग को बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि निजीकरण के कारण आरक्षण के निरंतर घट रहे दायरे के परिपेक्ष्य में दलितों को रोज़गार कैसे मिलेगा.
मोदी जी ने इस बात को भी बहुत जोर-शोर से कहा है कि डॉ आंबेडकर औद्योगिकरण के पक्षधर थे परन्तु उन्होंने यह नहीं बताया कि वे निजी या सरकारी किस औद्योगीकरण के पक्षधर थे.
भारत के औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण में डॉ. आंबेडकर का योगदान (Contribution of Dr. Ambedkar in Industrialization and Modernization of India)
यह बात भी सही है कि भारत के औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण में जितना योगदान डॉ. आंबेडकर का है उतना शायद ही किसी और का हो.
डॉ. आंबेडकर ने ही उद्योग के लिए सस्ती बिजली, बाढ़ नियंत्रण और कृषि सिचाई के लिए ओडिसा में दामोदर घाटी परियोजना बनाई थी. इस के अतिरिक्त सेंट्रल वाटर एंड पावर कमीशन तथा सेंट्रल वाटरवेज़ एंड नेवीगेशन कमीशन की स्थापना की थी. हमारा वर्तमान पावर सप्लाई सिस्टम भी उनकी ही देन है.
राजकीय समाजवाद के प्रबल समर्थक थे डॉ. अंबेडकर
यह सर्विदित है कि बाबासाहेब राजकीय समाजवाद के प्रबल समर्थक थे जब कि मोदी जी तो निजी क्षेत्र और न्यूनतम गवर्नेंस के सब से बड़े पैरोकार हैं.
बाबासाहेब तो पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद को दलितों के सब से बड़े दुश्मन मानते थे. मोदी जी का निजीकरण और भूमंडलीकरण बाबासाहेब की समाजवादी अर्थव्यवस्था की विचारधारा के बिलकुल विपरीत है.
मोदी जी ने डॉ. आंबेडकर की एक प्रख्यात अर्थशास्त्री के रूप में जो प्रशंसा की है वह तो ठीक है. परन्तु बाबासाहेब का आर्थिक चिंतन (Babasaheb's economic thought) तो समाजवादी और कल्याणकारी अर्थव्यस्था का था, जिस के लिए नोबेल पुरूस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने उन्हें अपने अर्थशास्त्र का पितामह कहा है. इसके विपरीत मोदी जी का आर्थिक चिंतन और नीतियाँ (Modi's economic thinking and policies) पूंजीवादी और कार्पोरेटपरस्त हैं.
अपने भाषण में मोदी जी ने कहा है कि डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल को लेकर महिलाओं के हक़ में अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
यह बात तो बिलकुल सही है कि भारत के इतिहास में डॉ. आंबेडकर ही एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने दलित मुक्ति के साथ साथ हिन्दू नारी की मुक्ति को भी अपना जीवन लक्ष्य बनाया था और उन के बलिदान से भारतीय नारी को वर्तमान कानूनी अधिकार मिल सके हैं. बाबासाहेब ने तो कहा था कि मैं किसी समाज की प्रगति का आंकलन उस समाज की महिलायों की प्रगति से करता हूँ. इस के विपरीत भाजपा सरकार की मार्ग दर्शक आर.एस.एस. तो महिलाओं को मनुस्मृति वाली व्यवस्था में देखने की पक्षधर है.
मोदी जी ने डॉ. आंबेडकर का लन्दन वाला घर खरीदने, बम्बई में स्मारक बनाने और दिल्ली में आंबेडकर स्मारक बनाने का श्रेय भी अपनी पार्टी को दिया है.
वैसे तो मायावती ने भी दलितों के लिए कुछ ठोस न करके केवल स्मारकों और प्रतीकों की राजनीति से ही काम चलाया है. भाजपा की स्मारकों की राजनीति उसी राजनीति की पूरक है.
शायद मोदी जी यह जानते होंगे कि बाबा साहेब तो अपने आप को बुत पूजक नहीं बुत तोड़क कहते थे और वे व्यक्ति पूजा के घोर विरोधी थे. बाबा साहेब तो पुस्तकालयों, विद्यालयों और छात्रवासों की स्थापना के पक्षधर थे. वे राजनीति में किसी व्यक्ति की भक्ति के घोर विरोधी थे और इसे सार्वजनिक जीवन की सब से बड़ी गिरावट मानते थे. परन्तु भाजपा में तो मोदी जी को एक ईश्वरीय देन मान कर पूजा जा रहा है.
Serious differences between Sardar Patel and Dr. Ambedkar
मोदी जी ने अपने भाषण में सरदार पटेल और डॉ. आंबेडकर की तुलना की है. एक को राज के केन्द्रीकरण के लिए और दूसरे को समाज के केन्द्रीकरण के लिए. मोदी जी शायद यह नहीं जानते होंगे कि सरदार पटेल और डॉ. आंबेडकर में गंभीर मतभेद थे. सरदार पटेल ने तो डॉ. आंबेडकर के लिए कहा था कि हम ने डॉ. आंबेडकर के संविधान सभा में प्रवेश के सारे खिड़की दरवाजे बंद कर दिए हैं और उन्होंने डॉ. आंबेडकर को 1946 के चुनाव में हरवाया था. इस पर डॉ. आंबेडकर किसी तरह मुस्लिम लीग की मदद से पूर्वी बंगाल से जीत कर संविधान सभा में पहुंचे थे. इस के अलावा संविधान बनाने को लेकर भी उन में गंभीर मतभेद थे. एक बार तो डॉ. आंबेडकर ने संविधान बनाने से मना कर दिया था.
यह भी विचारणीय है कि सरदार पटेल मुसलमानों और सिखों के साथ दलितों को भी किसी प्रकार का आरक्षण देने के पक्षधर नहीं थे. दलितों को संविधान में आरक्षण तो गाँधी जी के हस्तक्षेप से मिल पाया था.
दलितों का कल्याण कैसे होगा?
अपने भाषण में मोदी जी ने दलित उद्यमियों को प्रोत्साहन देने का श्रेय भी लिया है.
मोदी जी जानते होंगे कि इस से कुछ दलितों के पूंजीपति या उद्योगपति बन जाने से इतनी बड़ी दलित जनसँख्या का कोई कल्याण होने वाला नहीं है. दलितों के अंदर कुछ उद्यमी तो पहले से ही हैं. दलितों का कल्याण तो तभी होगा जब सरकारी नीतियाँ जनपक्षीय होंगी न कि कार्पोरेटपरस्त. दलितों की बहुसंख्य आबादी भूमिहीन तथा रोज़गारहीन है जो उनकी सब से बड़ी कमजोरी है. अतः दलितों के सशक्तिकरण के लिए भुमिआबंटन और रोज़गार गारंटी ज़रूरी है जो कि मोदी सरकार के एजंडे में नहीं है.
उपरोक्त संक्षिप्त विवेचन से स्पष्ट है कि अपने भाषण में मोदी जी द्वारा डॉ. आंबेडकर का गुणगान केवल राजनीति के लिए उन्हें हथियाने का छलावा मात्र है. उन्हें डॉ. आंबेडकर की विचारधारा अथवा शिक्षाओं से कुछ भी लेना देना नहीं है. सच तो यह है कि भाजपा और उसकी मार्ग दर्शक आर.एस.एस. की नीतियाँ तथा विचारधारा डॉ. आंबेडकर की समतावादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक विचारधारा के बिलकुल विपरीत है.
यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान में कांग्रेस पार्टी भी डॉ. आंबेडकर को हथियाने का अभियान चला रही है.
मायावती तो अपने आप को डॉ. आंबेडकर की उत्तराधिकारी होने का दावा करती रही हैं. वास्तविकता यह है कि भाजपा सहित यह सभी राजनैतिक पार्टियाँ डॉ. आंबेडकर को हथिया कर दलित वोट प्राप्त करने की दौड़ में लगी हुयी हैं जब कि किसी भी पार्टी का दलित उत्थान का एजंडा नहीं है. अब यह दलितों को देखना है कि क्या वह इन पार्टियों के दलित प्रेम के झांसे में आते हैं या डॉ. आंबेडकर से प्रेरणा लेकर अपने विवेक का सही इस्तेमाल करते हैं.
एस.आर. दारापुरी


