सुन्दर लोहिया
सवाल यह है
कि अमितशाह पर जब गम्भीर आरोप के तहत सीबीआई की अदालत में फर्जी मुठभेड़ के मामले चल रहे हैं, तो उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना कर पार्टी अपने आप को न्याय व्यवस्था से ऊंचा मनवाना चाहती है या यह सिद्ध करना चाहती है क्योंकि उसे संसद में भारी बहुमत हासिल है इसलिए वह जो चाहे कर सकती है। सीबीआई की अदालत से हाज़री के सम्मन को कई बार टाल देने के बाद उस दण्डाधिकारी को तबदील कर देने से मोदी सरकार यह बताना चाहती है कि आज की परिथतियों में कानून और संविधान सत्ता की सेवा मे जुट गये हैं ? इसलिए सत्ता की छत्रछाया में सुरक्षित अपराधी विशेषाधिकार प्राप्त कर लेता है। चाहे कुछ भी हो भाजपा का इस प्रकार से न्यायपालिका की अवहेलना करके संवैधानिक संकट को जन्म दे रही है। इसलिए सभी पार्टियों और भाजपा के भीतर देशभक्त लोगों को नरेन्द्र मोदी और आरएसएस की लोकतन्त्र और संविधान को छिन्न भिन्न करने वाली फासरवादी कोशिशों को रोकने की यदि कोशिश नहीं की तो अगला चुनाव लड़ने का मौका भी नहीं मिलेगा। इस मामले में सवाल यह है कि क्या इस देश में कानून सब नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है या नेता कानून से ऊपर होते हैं ?
सवाल यह है
कि कानून किसी सिद्धान्त को ध्यान में रख कर बनाये जाते हैं। मसलन भ्रष्टाचार विरोधी कानून भ्रष्टाचार को रोकने के नज़रिये से तैयार किया गया है न कि लालू प्रसाद यादव या यदुरेपा जैसे मुख्यमन्त्रियों को जेल भिजवाने के लिए। सीधा सा मतलब यह हे कि कानून बनाते वक्त किसी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखा जायेगा तो कानून बनाने की पूरी प्रक्रिया दूषित हो जायेगी क्योंकि उस स्थिति में कानून उस व्यक्ति को नुकसान या लाभ पंहुचाने की दृष्टि से तैयार किया जायेगा जिससे कानून भले ही विधायिका द्वारा पास कर दिया जाये कानून की मूलभावना के विरुद्ध ही माना जायेगा। इस समय प्रधानमन्त्री के निजी सचिव की नियुक्ति को लेकर जो बहस चल रही थी उसमें मूल मुद्दा यानि यह कानून बनाये जाने से पहले ही वह व्यक्ति तय हो गया था। नृपेन्द्र मिश्र की नियुक्ति को जब ग़ैरकानूनी बताया गया तो सरकार की भूल को सुधारने के लिए कानून लाया गया जो न्यायप्रक्रिया के अनुकूल नहीं माना जा रहा है। जहां तक प्रधानमन्त्री के निजी सचिव का चुनाव उनके विशेषाधिकार का क्षेत्र अवश्य है लेकिन उनका विशेषाध्किार भी तो कानून की सीमाओं का उल्लंघन नहीं कर सकता। मुद्दा यह नहीं है कि प्रधानमन्त्री अपनी मर्जी़ का सचिव नहीं चुन सकता बल्कि मुद्दा यह है कि ऐसा करते हुए क्या प्रधानमन्त्री देश की विधायिका द्वारा पास किया हुआ नियम किसी एक व्यक्ति के लिए तोड़ा जा सकता है? भाजपा पूरा जोर इस बात पर दे रही है कि प्रधानमन्त्री के विशेषाधिकार का मामला है और इस तरह पूरे प्रकरण को कानून की प्रक्रिया से निकाल कर उसके क्रियान्वयन पर केन्द्रित करके भटकाने में कामयाब हो गई है।
सवाल यह है कि
गृह मन्त्रालय की डेढ़ लाख के लगभग फाइलें को कूड़ा मानकर जलाने के आदेश प्रधानमन्त्री ने दिये और उस पर अमल किया गया। हल्ला मचा कि इन फाइलों में महात्मा गान्धी की हत्या से जुड़ी वे फाइलें हैं जिसमें तत्कालीन मन्त्रीमण्डल के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय दर्ज थे। आाशंका यह बताई गई कि उसमें आरएसएस के बारे लिया गया निर्णय भी दर्ज था जिसे नष्ट करने के मकसद से फाइलों को जलाने के आदेश दिये गये। गृहमन्त्री का बयान कुछ अन्तराल के बाद आता है महात्मा गान्धी की हत्या सम्बन्धी फाइल सुरक्षित है। फिर भी लगभग ग्यारह हज़ार फाइलें ही नष्ट की गई हैं। भाजपा ने गान्धी हत्या से जुड़ी फाइलें जलाने का मुद्दा केन्द्र में लिया और फाइलों को जलाने की जो प्रशासनिक प्रक्रिया अपनाई जाती है उस पर बहस को टाल दिया। इस मामले में सरकारी फाइलों को नष्ट करने की जो विधिसम्मत प्रक्रिया है उसके उल्लंघन से भी ज़्यादा विवादास्पद मामला तो अन्य आपराधिक मामलों से जुडा है जिनमें प्रमुखतः अयोध्या के तथाकथित विवादास्पद ढांचा बाबरी मस्जिद के ध्वंस तथा मालेगांव समझौता एक्स्प्रैस से जुड़ी सरकारी एजेन्सियों की तहकीकात के दस्तावेज और उनसे जुड़ी अनेक जानकारियां दर्ज हो सकती हैं जिनका भाजपा पार्टी के कई शीर्ष नेताओं के अदालतों में लटके विचाराधीन मामले शामिल हो सकते हैं जिनके बारे गृहमन्त्री ने कोई उल्लेख नहीं किया है। इसलिए सवाल यह है कि ऐसे मामलों की फाइलें जि़न्दा है या उन्हें अग्नि की भेंट चढ़ाया जा चुका है?
सुन्दर लोहिया, लेखक वरिष्ठ साहित्यकार व स्तंभकार हैं। आपने वर्ष 2013 में अपने जीवन के 80 वर्ष पूर्ण किए हैं। इनका न केवल साहित्य और संस्कृति के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है बल्कि वे सामाजिक जीवन में भी इस उम्र में सक्रिय रहते हुए समाज सेवा के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं। अपने जीवन के 80 वर्ष पार करने के उपरान्त भी साहित्य और संस्कृति के साथ सार्वजनिक जीवन में सक्रिय भूमिकाएं निभा रहे हैं। हस्तक्षेप.कॉम के सम्मानित स्तंभकार हैं।