सोशल मीडिया पर एक नया नारा (A new slogan on social media) चला है, 'मोदी है तो मुमकिन है.' (Modi hai to Mumkin hai). हमारे पत्रकार मित्र संजय सिंह के अनुसार यह नारा स्वयं मोदी जी ने ही दिया है। न चाहते हुए भी एक अन्य पत्रकार मित्र की वाल पर हमने जो तात्कालिक प्रतिक्रिया दी, उसे यहां भी संलग्न कर रहा हूं।

मुमकिन है, मोदी जी हैं तो जुमलेबाजी मुमकिन है। झूठे वादे मुमकिन हैं। बेरोजगारी में वृद्धि और बेरोजगारों का मजाक मुमकिन है। किसानों की बदहाली मुमकिन है। उनकी आत्महत्याओं का जारी रहना मुमकिन है। दिवालिया हो रहे पूंजीपति अनिल अंबानी को बिना किसी अनुभव के रक्षा (राफेल) सौदों में हिस्सेदारी मुमकिन है।

प्रधानमंत्री के मुखारविंद से-तक्षशिला बिहार में है! मुमकिन है। गुप्तवंश के थे, चंद्रगुप्त, यह मुमकिन है।

सिकंदर के 'दीने इलाही बेड़े' के पटना के पास गंगा में डूबना मुमकिन है।

गुरु गोरखनाथ, नानक देव और संत कबीर का एक साथ मगहर में मिल बैठकर चिंतन करना मुमकिन है।

शिमला समझौता इंदिरा गांधी और बेनजीर भुट्टो के साथ होना मुमकिन है।

नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद आतंकवाद और नक्सलवाद की कमर टूट जाने के दावे के बाद भी आतंकवादी, नक्सली हमले मुमकिन है।

पेट्रोलियम पदार्थों के दाम आसमान छूते रहना मुमकिन है। रुपये के आईसीयू में सिसकते रहना मुमकिन है।

मोदी जी हैं तो और भी बहुत कुछ मुमकिन है! अब उनका प्रधानमंत्री नहीं बन पाना मुमकिन है।

( जयशंकर गुप्त, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, देशबन्धु के कार्यकारी संपादक हैं। )

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