मोदी नहीं बचा पायेंगे भाजपा को उप्र में बड़ा झटका लगने से
मोदी नहीं बचा पायेंगे भाजपा को उप्र में बड़ा झटका लगने से
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अंबरीश कुमार
लखनऊ 15 जनवरी। भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तर प्रदेश में वह असर दिखाई नहीं पड़ रहा है जिसकी भाजपा को उम्मीद थी। प्रदेश में मोदी की कई रैलियाँ हो चुकी हैं और मुजफ्फरनगर में दंगा भी, बावजूद इसके उत्तर प्रदेश पर किसी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का असर नहीं दिख रहा है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार बन जाने के बाद प्रदेश के शहरी इलाकों में करीब दो तीन फीसद वह वोट जो हर चुनाव में माहौल देख कर बहता है वह आप पार्टी को गया तो भाजपा को मोदी का चेहरा सामने करने के बावजूद बड़ा झटका लग सकता है। पहले इस तबके का ज्यादा वोट मोदी को जा रहा था पर पिछले पंद्रह दिन में आम आदमी पार्टी के चलते मोदी का असर कम होता नजर आ रहा है। पूर्वांचल में पहले मोदी को लेकर नौजवानों में जो उत्साह बढ़ रहा था वह दिल्ली में आप के आने बाद बदल रहा है।
इस सबके बावजूद मुख्य लड़ाई बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी में ही सिमटती नजर आ रही है। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह अब तक कई बड़ी रैली कर चुके हैं और बुधवार को मायावती की सावधान रैली होने जा रही है जिसके लिये बड़ी संख्या में लोग आ भी चुके हैं। साफ़ है लड़ाई सपा और बसपा में ही होनी है।
इस रैली को लेकर समाजवादी पार्टी हमलावर है तो बसपा के नेता तैयारी में जुटे हैं। सपा का हमला नया नहीं है। समाजवादी पार्टी ने आज इस सावधान रैली को लेकर कहा- ढोंग करना तो कोई बसपा सुप्रीमो मायावती से सीखें। एक ओर मुजफ्फरनगर के नाम पर 15 जनवरी,2014 को सादगी से जन्मदिन मनाने का एलान, लेकिन करोड़ों खर्च कर लखनऊ में इस दिन भीड़ लाने की व्यवस्था, फिर 25 जनवरी, 2014 को दिल्ली में परिवार वालों के साथ जन्मदिन मनाने की स्वयं घोषणा। दो-दो बार जन्मदिन मनाने का सुश्री मायावती का यह दोहरा आचरण सिर्फ जनता की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश है। वैसे भी मुजफ्फरनगर से उनका कोई सम्बंध नहीं रहा है। उनकी वहाँ राहत कार्यो में न कोई भूमिका रही है और न ही संवेदना। वे पीड़ितों का दर्द जानने भी वहाँ नहीं गयी हैं। पीड़ितों के नाम पर राजनीति कर वे उनके दर्द का मजाक बना रही हैं।
पार्टी प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी के मुताबिक बसपा अध्यक्ष के जन्मदिन के लिये जबरन चंदा वसूली तो होती ही है इसके नाम पर कालाधन को सफेद करने का भी इंतजाम होता है। बसपा के सांसद, विधायकों और पदाधिकारियों से चौथ वसूली होती है। इससे बसपा की पूर्व मुख्यमंत्री की तिजोरियाँ भरती हैं और वर्ष प्रतिवर्ष उनकी आय में हवाई छलाँग लग जाती है। दलित के नाम पर उन्होंने अपनी वैभवशाली जिन्दगी का बचाव करने और अपने परिवारवालों की सम्पदा वृद्धि को ही सही ठहराने का काम किया है। कभी उन्होंने किसी दलित के आँसू पोछे हों और उनके दुःखदर्द में शिरकत की हो, इसका उदाहरण ढूँढने से भी नहीं मिलने वाला है।
समाजवादी पार्टी का यह विरोध उनकी राजनीति को भी दर्शाता है क्योकि बड़ी चुनौती उसे बसपा से ही समूचे प्रदेश में मिलनी है। समाजवादी पार्टी को ज्यादा चिंता मुस्लिम वोटों की है जिसे कांग्रेस भरमा रही है। मुलायम सिंह यादव इसी वजह से नाराज भी हुये क्योंकि राहुल गाँधी से लेकर लालू प्रसाद यादव ने मुजफ्फरनगर को लेकर राजनैतिक टिपण्णी की। पर मुलायम सिंह उन तीन फीसद नौजवान वोटों की चिंता नहीं कर रहे हैं जिसने पार्टी को विधान सभा चुनाव में छप्पर फाड़ बहुमत दिया था। यही आप पार्टी को शहरी इलाकों में वोटों का फायदा पहुँचा सकता है तो मोदी की बढ़त भी रुक सकती है। मुलायम सिंह इस बार परम्परागत तरीके की राजनीति कर रहे हैं और पिछले विधान सभा चुनाव में अखिलेश ने जिस नई राजनीति की शुरुआत की थी वह कहीं पीछे जाती नजर आ रही है। यही वजह है कि पार्टी के परम्परागत वोट बैंक के चलते मुलायम लोकसभा चुनाव में अपनी ताकत भले दिखा दें पर वह बढ़त नहीं मिलती नजर आ रही है जो विधान सभा में मिली थी।


