मोदी ने एक झटके में निपटा दिए उत्तर के सारे दिग्गज
मोदी ने एक झटके में निपटा दिए उत्तर के सारे दिग्गज
आडवाणी जोशी ही नहीं कल्याण सिंह से लेकर टंडन तक राजनीति से बाहर हुए
अंबरीश कुमार
नई दिल्ली। उत्तर भारत में पहले जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी का तीस साल से ज्यादा समय तक का शीर्ष नेतृत्व एक झटके में राजनीति से बाहर धकेल दिया गया है। इसमें मंदिर आंदोलन के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नायक लाल कृष्ण आडवाणी से लेकर कल्याण सिंह शामिल हैं। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनैतिक शैली है। जिसका मूलमंत्र है जिसने भी विरोध किया उसे पूरी तरह निपटा दो। खासकर जनाधार वाले ज्यादातर नेता अब हाशिए पर हैं।
आडवाणी ने लोकसभा चुनाव का चेहरा मोदी हो इसका विरोध किया तो मुरली मनोहर जोशी ने बनारस की सीट को लेकर विरोध किया था। अड़े तो टंडन भी थे पर चुनाव में टिकट ही नहीं मिला। आडवाणी और जोशी दोनों चुनाव जीत कर सांसद पहुंचे थे पर अब पार्टी की संसदीय राजनीति से बाहर कर दिए गए हैं। जो चुनाव नहीं लड़े मसलन कल्याण सिंह और लालजी टंडन तो वे अब राजभवन भेज दिए गए हैं। ध्यान से देखे भगवा ब्रिगेड का उत्तर भारत का समूचा शीर्ष नेतृत्व राजनीति से बाहर हो चुका है। एक बचे हैं राजनाथ सिंह। वे चैनल पर सफाई दे रहे हैं और इस सफाई में उनकी राजनैतिक मजबूरी भी दिख रही है। इसका राजनैतिक अर्थ समझ में आ जाना चाहिए। कांग्रेस में कामराज प्लान आया था और सारे बुजुर्ग निपटा दिए गए थे, यह भाजपा का मोदी प्लान है जिसमें वे अपने आसपास के उम्र वालों को भी नहीं छोड़ रहे हैं। कांग्रेस में इंदिरा गाँधी ने जब पुराने दिग्गजों से मोर्चा लिया था तब वे युवा थीं पर आज मोदी साठ पार के नेता हैं जो ज्यादातार नौकरियों की रिटायर्मेंट की उम्र होती है इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि यह कोई युवा आक्रोश है। यह बुजुर्ग बनाम अति बुजुर्ग का टकराव कहा जा सकता है पर इसके पीछे खुन्नस की राजनीति ज्यादा है इसलिए इसका विरोध भी हो रहा है। दूसरे यह राजनीति ज्यादा दूर तक की नहीं है। मोदी पार्टी की राजनीति में वर्चस्व के लिए कद्दावर नेताओं को ठिकाने लगा रहे हैं इसलिए इसकी प्रतिक्रिया होनी तय है। यह किसी मार्गदर्शक मंडल बनाने से नहीं रुकने वाली।
अब सबसे बड़ी परीक्षा संघ परिवार की है जो राजनीति में शुचिता और नैतिकता की बात करता है। राजनैतिक तपस्या और समर्पण की बात करता है। मोदी ने चुनाव हारने वाली स्मृति ईरानी को मंत्री बनाकर संघ को भी सन्देश दिया था। जानकारों की मानें तो यह बहुत से नेताओं को पचा नहीं था पर सभी विवाद नहीं पैदा करने के पक्ष में थे। पर मोदी ने लगातार वही किया जो वे चाहते थे। और आगे भी वही करने वाले हैं। अमित शाह को वही करना है जो मोदी को पसंद हो इसलिए सरकार और संगठन दोनों मोदी की जेब में हैं। ना तो कल्याण सिंह राजनीति और अपनी जमीन छोड़ना चाहते थे और ना ही लालजी टंडन। पर दोनों कोई भी राजनैतिक टिप्पणी के लायक भी नहीं बचे हैं और कुर्ता शेरवानी का नाप दे रहे हैं। इन सबके बाद बाद उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक बड़ा नेता बचा है राजनाथ सिंह। पर वे चुनौती दे पाएंगे यह कहना मुश्किल है। कल्याण सिंह ने एक दौर में वाजपेयी को चुनौती दी थी तो बाद में उमा भारती ने आडवाणी को। उसके बाद जोशी आदि बचे थे पर अब सभी हाशिए पर जा चुके हैं। अब कमान पूरी तरह मोदी के हाथ में आ चुकी है। वे दंगों के आरोपी संगीत सोम को जेड श्रेणी की सुरक्षा देकर हिंदू तुष्टिकरण भी कर रहे हैं तो वाराणसी में कई योजनाओं की शुरुआत कर विकास का एजेंडा भी दिखा रहे हैं। मोदी का राजनैतिक मॉडल हिंदुत्व और विकास दोनों का है। खाली विकास से वोट नहीं मिलता और खाली हिंदुत्व से कोई छवि नही गढ़ी जा सकती। और इन दोनों के साथ संगठन और सरकार पर एकछत्र राज भी होना चाहिए। इसलिए हर बाधा दूर की जा रही है। यही वजह है विरोध की आवाज उठाने वाला शीर्ष नेतृत्व का बड़ा हिस्सा निपटा दिया गया है।
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