गैर भाजपा सरकार (Non-BJP government) के सामने सब से बड़ी चुनौती समाजी तानाबाना और संवैधानिक संस्थाओं की साख (Credentials of constitutional institutions) बहाली होगी

नयी लोक सभा और उसके बाद नयी सरकार के गठन में अब एक महीने से भी काम का समय बचा है, यद्धपि ऐसे तमाम इशारे मिल रहे हैं कि इस बार किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और क्षेत्रीय दल सरकार के गठन में सब से महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, इस लिए नतीजे आने के बाद के कुछ दिन काफी दिलचस्प जिज्ञासा पूर्ण और भारतीय लोकतंत्र (Indian democracy) के सब्ज़ी मंडी में बदल जाने का मंज़र भी देखेंगे।

उबैद उल्लाह नासिर

बहर हाल एक नयी सरकार (New government) तो बनेगी ही ऐसे में अगले पांच वर्षों के लिए देश में दो संभावनाएं प्रबल दिखाई दे रही है। पहली यदि जोड़-तोड़ कर मोदी जी दोबारा प्रधान मंत्री बन जाते हैं तो वह तमाम समस्याऐं जिन से आज देश जूझ रहा है हल होंगीं जस की तस रहेंगी या उनमें और बिगाड़ आएगा? लफ्फ़ाज़ी, ड्रामेबाज़ी, मीडिया मैनेजमेंट आदि के ज़रिये देश की चाहे जितनी गुलाबी तस्वीर पेश करने की कोशिश की जाए, पर सच्चाई यह है कि देश में रोज़गार के मोर्चे पर सब से बड़ी तबाही आयी है। मोदी जी ने सत्ता में आने से पहले प्रति वर्ष दो करोड़ नवजवानों को रोज़गार देने का वादा किया था, उस हिसाब से इन पांच वर्षों में 10 करोड़ नवजवानों को रोज़गार मिल जाना चाहिए था, लेकिनं नये रोज़गार मिलना तो दूरर रोज़गार में लगे लोग बेरोज़गार हो रहे हैं, जिसका नवीनमताम उदाहरण जेट एयरवेज के बेरोज़गार हुए बीस हज़ार कर्मचारी हैं।

इसके अलावा भारत संचार निगम लिमिटेड के लगभग पचास हज़ार कर्मचारियों के भी बेरोज़गार होने का खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि मोदी सरकार की खुली सरपरस्ती के कारण अम्बानी ग्रुप के जियो से वह मुक़ाबला नहीं कर सका।

मोदी सरकार की पॉलिसी रही है कि वह सार्वजनिक क्षेत्रों की कंपनियों के मुक़ाबले निजी क्षेत्र ख़ासकर अम्बानी और अडानी ग्रुप की कंपनियों की सरपरस्ती करती है, जिस से सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ, जिन में जनता की गाढ़ी कमाई कर अरबों खरबों रुपया लगा है बर्बादी के कगार पर पहुँच गयी हैं। क्या यह विवादस्पाद ही नहीं दुखद और हास्यस्पाद नहीं है कि देश का प्रधान मंत्री एक निजी कम्पनी के माल का ब्रांड अम्बेस्डर बन जाए और उस निजी कंपनी का माल सरकारी कंपनी के काउंटर से बिके ? लेकिन मोदी है तो मुमकिन है कि जियो का सिम लखनऊ के जनरल पोस्ट ऑफिस से बिके एक ओर भारत संचार निगम लिमिटेड के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने का पैसा नहीं है, दूसरी और उसके टावर्स को जियो प्रयोग ही नहीं कर रहा है बल्कि उस्का लगभग 500 करोड़ का किराया भी नहीं दे रहा है।

एयर इंडिया की तबाही पर बहुत कुछ पहले भी लिखा चुका है। अब सरकार ने एयर पोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के प्रबंधन में चलने वाले हवाई अड्डों को भी बेचना शुरू कर दिया है। विगत माह पांच बड़े हवाई अड्डे बेचे जा चुके हैं और इन में से शायद तीन हवाई अड्डे अडानी ग्रुप ने खरीदे हैं। इस निजीकरण के चलते कितने लोग बेरोज़गार हो रहे हैं, मोदी सरकार ने इन आंकड़ों को छुपाये रखने के लिए बेरोज़गारी के आंकड़े जारी करने पर पाबंदी लगा दी है, लेकिन आज इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के इस दौर में यह संभव नहीं है। खुद सरकारी संस्था नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाईजेशन के अनुसार देश में बेरोज़गारी की दर विगत 45 वर्षों में सब से ज़्यादा ऊंचाई पर पहुँच चुकी है। लेकिन मोदी सरकार "गोदी मीडिया" की मदद से अपने ही आंकड़ों की ऐसी जलेबी बना देती है कि जनता की नज़रों से सच्चाई ओझल हो जाती है।

देश के सब से पुराने सरकारी महकमों में एक महकमा डाक तार है। तार भेजने का रिवाज तो आधुनिक संचार माध्यमों के चलते खत्म हो ही गया, लेकिन डाक विभाग आज भी एक रुपया के पोस्ट कार्ड पर आज भी देश के सुदूर स्थानों तक पैगामरसानी का काम कर रहा है। अब यह महकमा भी मृत्यु शय्या पर है इसका घाटा अपनी सारी हदें पार कर चुका है इस मामले में इसने अन्य सभी विभागों को पीछे छोड़ दिया है। विगत तीन वर्षों में इसका घाटा डेढ़ सौ प्रतिशत बढ़ चुका है मोदी सरकार यदि दोबारा सत्ता में आती है, तो यह सभी विभाग कॉर्पोरेट घरानों के हाथों बिक जाएंगे. इसके हालत अभी से पैदा कर दिए गए हैं।

मोदी युग में जिस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां एक-एक कर के निजी हाथों को बेचीं जा रही है वह देश ख़ास कर समाज के निम्न गरीब वर्ग के लिए बहुत खतरनाक है। किसी भी सरकार की पहली ज़िम्मेदारी आम जनता को हो सके तो मुफ्त नहीं तो सस्ते में जन सेवाएं उपलब्ध कराना है, लेकिन मोदी जी ने इन सेवाओं को बीमा के नाम पर निजी हाथों को सौंप दिया है। फसल बीमा हो या स्वास्थ बीमा यह सब गरीब जनता की लूट का साधन बन गए हैं। बीमा कंपनियां इन से अरबों रुपया कमा रही हैं जबकि अवाम सही सेवायें पाने में असमर्थ हैं।

निजीकरण के कारण बेरोज़गारों की एक फ़ौज खड़ी की जा रही , जो देश और समाज के लिए हानिकारक ही नहीं खतरनाक भी हैं, क्योंकि बेरोज़गार व्यक्ति से थोड़ा पैसा दे कर कोई भी काम कराया जा सकता है।

अज़ीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी के एक सर्वे के अनुसार देश में नोटबंदी के बाद से क़रीब पचास लाख लोग बेरोज़गार हुए हैं। कहने को तो निजी क्षेत्र भी नौकरियां देते हैं, लेकिन उन में नौकरी करने वालों का कैसा शोषण होता है और कैसे उन्हें समाजी सुरक्षा से दूर रखा जाता है, यह किसी से ढका छुपा नहीं है। मोदी सरकार ने श्रम क़ानूनों में मूल भूत बदलाव कर के इनकी क़िस्मत पूरी तौर मालिकों के हाथ में दे दी है, अब वह किसी भी मुलाज़िम को किसी भी समय बिना नोटस दिए निकल सकते हैं।

वैश्विक पैमाने पर भी भारत हर मामले में दिन प्रति दिन पिछड़ता चला जा रहा है चाहे वैश्विक भुखमरी इंडेक्स जिसमें 2013 में 55 स्थान पर रहने वाला भारत अब 113 वें स्थान पर पहुँच गया अर्थात पांच वर्षों में भुखमरी लगभग दोगुनी से भी ज़्यादा हो चुकी है, चाहे वैश्विक खुशहाली इंडेक्स हो जिसमें भारत पाकिस्तान और बंगला देश जैसे देशों से भी पिछड़ चुका है।

आर्थिक क्षेत्र के बाद देश के सामने सब से बड़ी समस्या देश का बिखरता समाजी ताना बाना है, जिस प्रकार आरएसएस के एजेंडे के अनुसार देश के अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा, जिस प्रकार उन्हें क़दम क़दम पर दूसरे दर्जे का नागरिक होने का एहसास कराया जा रहा है, जिस प्रकार बहुसंख्यक वर्ग की आस्था के नाम पर अल्पसंख्यक वर्ग के संवैधानिक अधिकार तक छीनने की बात की जा रही। इस समस्या की लिस्ट बहुत लम्बी है अगर देश में इसी प्रकार बहुसंख्यक वाद चलता रहा और देश के मुसलमानों को म्यांमार के रोहंगिया चीन के काश्गर और श्री लंका के तमिल हिंदुओं की स्थिति पर पहुंचाने का षड्यंत्र जारी रहा तो भारत भी श्री लंका सीरिया और पाकिस्तान और म्यांमार की गति को पहुँच सकता है।

देश का सियासी और समाजी माहौल ऐसा बन गया है कि दहाइयों तक साथ रहने वाले हर दुःख दर्द खुशी गमी में एक दूसरे के सहयोगी अब हिन्दू मुसलमान की नज़र से देख रहे हैं। कई वर्षों तक साथ पढ़ने वाले बच्चे हिन्दू मुसलमान हो चुके हैं। पीट-पीट कर लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा है और लोग ही नहीं पुलिस भी तमाशा देख रही होती है, वीडियो बनाया जाता है। तिहाड़ जेल में मुस्लिम क़ैदी की पीठ पर गर्म लोहे से ॐ लिख दिया जाता है।

संविधान की शपथ लेने वाले मंत्रीगण हत्यारों का महिमा मंडान करते हैं। जमानत पर छूटने के बाद हत्यारों का हार फूल पहना कर स्वागत किया जाता है। आठ वर्ष की मासूम बच्ची का अपहरण होता है, उसके साथ दर्जनों लोग बलात्कार करते हैं, क्षेत्र का पुलिस अफसर मंदिर में मरणासन लड़की के लिये पुजारी से कहता है अभी उसे मरने न देना मैं उस से अंतिम बार बलात्कार करना चाहता हूँ। यही नहीं हत्यारों, क़ातिलों, बलात्कारियों के लिए तिरंगा यात्रा निकाली जाती है, जय श्रीराम के नारे लगते हैं।

समझ में नहीं आता राम कृष्ण गौतम नानक कबीर गाँधी के देश को किस मनहूस की नज़र लग गयी है। देश को इस हालत से निकलने के लिए अब गांधी को दोबारा पैदा होना होगा, वरना केवल सरकार बदलने से तो शायद समाज की यह विकृत नहीं बदलेगी।

नयी सरकार के सामने संवैधानिक संस्थाओं की साख और उनकी स्वायत्ता की बहाली भी एक बड़ा काम होगा क्योंकि यह संवैधानिक संस्थाएं बनायी ही इसिलिये गयी थीं कि लोक सभा में संख्या बल के कारण कोई शासक ताना शाह न बन जाये, वह क़ानून संविधान की आत्मा ही नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक परम्पराओं का भी पालन करे ताकि लोकतंत्र निचली सतह तक मज़बूत हो। मोदी जी ने ऐसी तमाम संस्थाओं में अपने और अपने संघ परिवार के आदमियों को बिठा कर उनकी साख बिलकुल खत्म कर दी है, यहां तक कि हाई कोर्ट का जज देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की वकालत करते हुए अपना फैसला लिखता है। एक दूसरा जज मोर के आंसू से मोरनी के प्रेग्नेंट होने की बात कहता है।

सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जज आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार प्रेस कांफ्रेंस कर के लोकतंत्र खतरे में होने पर अपनी चिंता व्यक्त करते हैं। चीफ जस्टिस पर यौन शोषण का इलज़ाम लगा कर उन्हें कथित तौर से दबाव में लेने की कोशिश की जाती है। केंद्रीय जांच एजेंसियां आय कर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय तो जैसे विपक्षी नेताओं के लिए टार्चर चैम्बर बन गए हैं। एनआईए दक्षिणपंथी आतंकवादियों को रिहा कराने के लिए मुक़दमा कमज़ोर कर रहे है और ट्रायल कोर्ट से मुक़दमा ख़ारिज हो जाने के बाद हाई कोर्ट में अपील नहीं कर रही है, पूरी न्याय व्यवस्था मज़ाक़ बन कर रह गयी है।

मोदी सरकार के हाथों देश चौतरफा बंटाधार हुआ है। इस पर एक लेख नहीं, बल्कि पूरी किताब लिखी जा सकती है, लेकिन अर्थव्यवस्था की बर्बादी अच्छी आर्थिक पॉलिसी से ठीक की जा सकती है, हालांकि केवल नोटबंदी के कारण क़रीब बीस वर्ष पीछे चली गयी अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने में काफी समय लगेगा, लेकिन उसे ठीक किया जा सकता है।

यदि गैर भाजपा सरकार बनती है तो उसके सामने सब से बड़ी चुनौती देश के समाजी ताने बाने और संवैधानिक संस्थाओं की साख बहाली होगी, इसके लिए लोकतंत्र और सेकुलरिज्म के लिए समर्पित नेता ही देश के नेतृत्व के लिए सब से उचित रहेगा सियासी ड्रामे बाज़ी से देश नहीं बनाया जा सकेगा।

Modi has divided the country all the way, it will take years to improve