वाकई लोकतंत्र खतरे में ! DGP न्यायपालिका पर उठाए सवाल, कहा- जज अपने हिसाब से करने लगे हैं कानून की व्याख्या

नई दिल्ली, 28 जुलाई। यह अजीबोगरीब समय है। मोदीराज में 70 सालों में पहली बार हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों ने जनता के सामने आकर कहा कि लोकतंत्र खतरे में है। इन जजों को आगाह किए हुए ज्यादा समय भी नहीं बीता कि मध्यप्रदेश के डीजीपी ऋषिकुमार शुक्ला ने देश की न्यायपालिका पर सवाल उठाते हुए कह दिया कि जज अपने हिसाब से कानून की व्याख्या

करने लगे हैं।

पत्रिका.कॉम कि एक ख़बर “जज अपने हिसाब से करने लगे हैं कानून की व्याख्या, DGP न्यायपालिका पर उठाए सवाल” कहती है,

“मध्यप्रदेश के डीजीपी ऋषिकुमार शुक्ला ने देश की न्यायपालिका पर सवाल उठाए हैं। राजधानी में शुक्रवार को एससी-एसटी वर्ग के प्रति संवेदनशीलता विषय पर आयोजित पुलिस विभाग के सेमिनार में उन्होंने कहा, आज कल जज साहब अपने हिसाब से ही कानून की व्याख्या करने लगे हैं।“

ख़बर के मुताबिक डीजीपी ने कहा

"हमने पढ़ा है कानून अंधा होता है, और जज साहब को कानून की मंशा के साथ बिना किसी भेदभाव के काम करना चाहिए, लेकिन अब ऐसा हो नहीं रहा। डीजीपी ने कहा कि यह बहुत परेशानी की बात है कि जज के अब खुद के पक्ष और विचारधारा हैं, जो फैसलों में बहुत ज्यादा नजर आने लगे हैं। यह चिंताजनक समय है।“

ख़बर के मुताबिक डीजीपी ने कहा

"अब यह माना जाने लगा है कि हर पुलिस अधिकारी कानून का पालन नहीं करना चाहता। अभी सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग पर निर्णय दिया है, उसमें भी उन्होंने माना है कि पुलिस कार्रवाई नहीं करती है, तो पुलिस के विरुद्ध विधिक कार्रवाई की जाएगी।:

"मेरा मानना है कि समाज में जो तनाव है उस पर पुलिस को विधिक प्रावधानों के तहत नियंत्रण करना है। यह भी ध्यान रखना है कि समाज में व्यवस्था बनी रहे।“

एससी-एसटी एक्ट के बारे में चर्चा करते हुए डीजीपी ने कहा कि “सोशल मीडिया पर बने माहौल ने मुश्किल बढ़ाई है। हाल ही में एक मामले में एक वर्ग विशेष ने दूसरे वर्ग के व्यक्ति को एक्ट विशेष में आरोपी बनाया, लेकिन जज ने उसे जमानत देने से ही इनकार कर दिया।”

मानवाधिकार कार्यकर्ता, भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापमं के व्हिसिल ब्लोअर डॉ. आनन्द राय ने कहा कि "माननीय मुख्य न्यायाधीश को मामले का संज्ञान लेना चाहिए"

DGP Rishi Kumar question raised on Judiciary