संघ परिवार का ताजा अभियान हिंदुओं के कल्याण के लिए मुक्तबाजारी चौतरफा सत्यानाश है तो इस पूरे देश के हर नागरिक के लिए सलवा जुड़ुम का स्थाई बंदोबस्त है।
किसी भूगोल की समूची जनसंख्या को आत्मघाती गृहयुद्ध में झोंक देना साम्राज्यवाद का पुराना दस्तूर है।
हिंदू साम्राज्यावाद के पुनरूत्थान का महाकाव्य अब नये सिरे से लिखा और पढ़ा जा रहा है। इसको लिखने वाले संजोग से हमारे हमपेशा लोग हैं जिनकी भाषा, दक्षता, शैली और कामकला से मैं अपने रोजमर्रे की जिंदगी में रोजाना दो दो हाथ करता हूं।
रामायण की अगली कड़ी
महाभारत और उसके तहत लिखे गये भागवत गीता का कोई सिक्वेल नहीं लिखा गया था तब। महाभारत को बल्कि रामायण की अगली कड़ी कह सकते हैं।
रामायण में त्रेता के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो मनुस्मृति अनुशासन के लिए शंबूक की हत्या करते हैं और लंका विजय के बाद अपनी पति सीता की अग्निपरीक्षा लेने के बाद भी उन्हें भरोसा नहीं होता कि रावण के अशोक वन में उनका सतीत्व कैसे और कितना अक्षुण्ण है।
मनुस्मृति अनुशासन
रामराज्य में ब्राह्मण पुत्र की अकाल मृत्यु के बाद मनुस्मृति अनुशासन भंग होने का बोधोदय होने पर घनघोर बियांबां में ज्ञान के लिए निषिद्ध बहिष्कृत शूद्र शंबूक को तपस्यारत देखकर राम उनका वध कर देते हैं तो एक प्रजाजन धोबी के सीता पर लगाये लांछन के आधार पर बिना सीता से कोई बात किये छलपूर्वक उन्हें भाई लक्ष्मण के साथ वनवास पर भेज देते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने राजसूय यज्ञ में स्वर्ण सीता का अभिषेक भी करते हैं और उसी राजसूय में रामायण का गान गाते हैं उनके जुड़वां बेटे लव और कुश। इसी राजसूय के मौके पर अयोध्या की राजसभा में फिर सीता का आविर्भाव होता है और स्वर्ण सीता के मुखातिब होकर विद्रोहिनी सीता फिर अग्निपरीक्षा न देकर पाताल प्रवेश का विकल्प चुनते हैं और सरयू में भगवान श्रीराम जलसमाधि लेते हैं।
यह युद्ध वचन हिंदुत्व
इन्हीं राम को विष्णु का अवतार त्रेता का बताया जाता है और इस हिसाब से महाभारत, रामायण का सीक्वेल है क्योंकि महाभारत के महानायक भगवान श्रीकृष्ण हैं और कर्मफल सिद्धांत के दर्शन मध्ये धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे वे स्वजनों के वध के लिए एकलव्य का अंगूठा गुरुवर द्रोण की गुरुदक्षिणा में कट जाने और सूतपुत्र कहे जाने वाले सूर्यपुत्र अपने ही बड़े भाई कर्ण के उनके मुकाबले खड़े हो जाने के बाद सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बतौर द्रोपदी को जीतकर मातृवचन रक्षार्थ शास्त्र सम्मत तौर पर पूर्व जन्म में द्रोपदी की तपस्या पर शिव के वर के मुताबिक पांच पति के प्रावधान के तहत भाइयों से साझा करने वाले अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं और यह युद्ध वचन हिंदुत्व है, हिंदुत्व का बीजमंत्र और मनुस्मृति अनुशासन गीता है, जो अब भारत का इकलौता राष्ट्रीय पवित्र ग्रंथ बनने वाला है।
वैसे हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ चारों वेद हैं, जिनको केंद्रित वैदिकी सभ्यता है। उपनिषद तमाम भी पवित्र हैं। तमाम पुराण पवित्र हैं। पवित्र है मूल महाकाव्य रामायण भी।
पवित्र हैं ब्राह्मण, शतपथ और स्मृतियां।
धर्मांतरित लोग किस जाति के होंगे?
गीता को एकमात्र राष्ट्रीय पवित्र ग्रंथ बनाने के बाद दूसरे पवित्र ग्रंथों का संघ परिवार क्या करने वाला है, यह उसी तरह नामालूम है कि गीता महोत्सव के तहत लालकिले पर अघोषित दावा करने के बाद संघ परिवार जो भारत के सारे विधर्मियों का धर्मांतरण करने का अभियान छेड़ा हुआ है, इस महा शुद्धि अभियान में धर्मांतरित लोग किस जाति के होंगे।
अछूत और शूद्र बना दिये गये
वैसे आर्यों नें हजारों सालों से अनार्यों को, द्रविड़ों को, हूणों को, शकों को किन्नरों और गंधर्वं को, वध्य होने से बचे राक्षसों, दानवों, दैत्यों, दस्युओं और असुरों का भी धर्मांतरण किया है। वध्यमय बौद्धमय भारत के तमाम बौद्ध अब आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं हैं।
वे सारे बौद्ध भी हिंदुत्व में धर्मांतरित हैं और अखंड बंगाल जो सबसे अंत तक यानी ग्यारहवीं सदी तक बौद्धमय रहा, वहा इस्लाम आ जाने से ज्यादातर बौद्ध जाति व्यवस्था में शामिल होने से इंकार करते हुए मुसलमान हो गये और बाकी बौद्ध हिंदुत्व का अंगीकार करते हुए अछूत और शूद्र बना दिये गये।
आर्यों की तरह ही विदेशी मूल के शक, कुषाण और हूणों को छोड़कर बाकी तमाम लोग आज के बहुसंख्य शूद्र हैं।
कुषाण तो पहले बौद्ध बने और सम्राट कनिष्क कुषाण ही हैं।
शक, हूण और कुषाण, मंगोलों की तरह भारतीय इतिहास और भूगोल को मध्यएशिया से जोड़ते रहे हैं। इन्हीं शक हूण कुषाण और मंगोल और मध्य एशिया से आये पठानों के अलावा जो भी धर्मांतरित होकर हिंदू बने वे या तो शूद्र हैं या फिर अछूत।
अखंड अनादि अनंत जाति व्यवस्था
हिंदुत्व की इस अखंड अनादि अनंत जाति व्यवस्था में इस महाउपद्वीप के तमाम देशों के तमाम धर्म भी शामिल हैं और सिखी, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, ईसाई और इस्लाम में भी जाति बंदोबस्त का संक्रमण हो गया है और फिलहाल इस आलेख में उसका ज्यादा खुलासा किये जाने की जरुरत नहीं है।
गुरु ग्रंथ साहेब को बनायें राष्ट्रीय पवित्र ग्रंथ
हमारे सहकर्मी मित्र रंजीत लुधियानवी ने तो फेसबुकिया स्टेटस में दावा किया है कि अगर भारत में किसी ग्रंथ को राष्ट्रीय पवित्र ग्रंथ माना जाना चाहिए तो वह है गुरु ग्रंथ साहेब।
मैं उनके इस अभिमत का समर्थन करता हूं।
क्योंकि सिखी में गुरुग्रंथ साहेब ही सर्वोच्च सत्ता है और उसका कोई ईश्वर नहीं है।सिखों के लिए उनके तमाम गुरु ही सबकुछ हैं और वे ईश्वर भी नहीं है।
ईश्वर की अनातिक्रम्य सत्ता के बिनागुरु ग्रंथ साहेब सिख सर माथे लिये चलते हैं और अपनी सारी जिंदगी उसके मुताबिक चलते हैं,वह शायद पवित्रतम ही है।
हमने रंजीत लुधियानवी से निवेदऩ किया है कि वे अपने इस मंतव्य के पक्ष में वाजिब दलीलें जरुर पेश करें।
सिख संगत से भी वही निवेदन है।
Understanding Castes for their Annihilation
कल ही हमने हस्तक्षेप के साथ अपने तमाम ब्लागों में अपने आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े का आलेख Understanding Castes for their Annihilation पोस्ट किया है।
यह आलेख आनंद ने अनुराधा गांधी की जाति विमर्श पुस्तक के तेलुगु संस्करण की भूमिका बतौर लिखा है जो अभी छापा नहीं है।
आनंद की अनुमति से इसे हमने साझा किया है।
इस आलेख का रियाज जितनी जल्दी अनुवाद कर दें,हम उतनी ही जल्दी इसे हिंदी में साझा करेंगे और बाकी भारतीय भाषाओं में सक्रिय मित्र इसका अनुवाद करें तो उन भाषाओं में भी इसे साझा किया जा सकेगा।
और हम उन सभी मित्रों से ऐसा करने का अनुरोध भी कर रहे हैं।
जाति उन्मूलन के एजेंडे को समझने के लिए जाति को समझना भी जरुरी है।
चोल सम्राटों के वीर विक्रम के पुण्यस्वरुप
बहरहाल जैसे भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिणात्य के तामिलभाषी चोल सम्राटों के वीर विक्रम के पुण्यस्वरुप सुदूर कंबोडिया से लेकर इंडोनेशिया, बाली, सुमात्रा, जावा से लेकर फिलीपींस तक रामराज्य का विस्तार रहा है।
हमारी समझ में नहीं आता राम से तो हमारा इतना प्रेम है लेकिन हिंदू साम्राज्य के भूगोल को हकीकत बनाने वाली भाषा तामिल को हम संस्कृत के मुकाबले तनिक भाव क्यों नहीं देते।
जिस तरह समूचे एशिया के इतिहास भूगोल पर भारतीय महाकाव्यों रामायण और महाभारत का व्यापक असर है, उसी तरह अमेरिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया का जो विकसित विश्व है वह ट्राय के काठ का घोड़ा है।
जो अब नई दिल्ली में धायं-धांय चल रहा है और उसके पेट से विदेशी सेनाओ की अनंत आवक है तो विदशी पूंजी भी वहीं से अबाध है।
ग्रीक त्रासदियां ग्लोबल सत्ता विमर्श
विकसित देशों के नवजागरण, उनकी भाषा, साहित्य और संस्कृति पर यूनानी महाकाव्य की धमक है और यूनाने की ही ग्रीक त्रासदियां ग्लोबल सत्ता विमर्श है।
हमारे आसपास कितने ही राजा आदोपियास, हैमलेट, ओथेलो, आंतिगोने, मैकबेथ और रोमन सम्राट नीरो और जूलियस सीजर कंधे और घुटने की मार से हमें रोजाना लहूलुहान कर रहे हैं हम नहीं जान सकते।
जीं हां, शेक्सपीयरन ट्रेजेडी का मूल भी ग्रीक त्रासदियां हैं।
जैसे आदिकवि वाल्मीकि के बाद संस्कृत के सबसे बड़े कवि कालिदास का यावतीय लेखन मनुस्मृति वृतांत और आख्यान है।
सूफी संत बाउल धाराएं
संस्कृत महाकाव्यधारा के अंतिम महाकवि कवि जयदेव ने जो गीत गविंदम के जरिेये लोक मार्फत उस अलौकिक दिव्य मनुस्मृति अनुशासन को तोड़कर वैष्णव मत का प्रवर्त्तन किया तो उसकी अंतरात्मा से सूफी संत बाउल धाराएं निकल पड़ी जिसकी वजह से आज का यह लोकतंत्र है और शायद बना भी रहेगा।
मौजूदा हिंदुत्व की बुनियाद
महाभारत का कोई फालोअप है नहीं। परीक्षित कथा भी महाभारत का ही हिस्सा है।
इसलिए कुरुक्षेत्र के महाविनाश के बाद भारतीय जनपदों का इतिहास भूगोल के आख्यान किसी भारतीय महाकाव्य में नहीं है।
गौर करने वाली बात यह है कि रामायण महाभारत के अलावा दूसरे पवित्र ग्रंथों में मनुस्मृति अनुशासन का खुलासा कहीं नहीं है।
हालंकि तमाम पुराणों, स्मृतियों, ब्राह्मणों और शतपथ ग्रंथों में इसी अनुशासन पर्व का महिमा मंडन है और सतीकथा इसका अंतिम बिंदू अधुनातन है।
वैदिकी साहित्य यानी वेदों और उपनिषदों में जो वर्ण व्यवस्था है, उसका अंत तो गौतम बुद्ध की क्रांति से ही हो गया था।
वैदिकी सभ्यता का आवाहन करते हुए पुरुषतांत्रिक स्थायी सत्ता आधिपात्य बंदोबस्त लागू करने के हिंदुत्व एजंडे में इसी कारण शायद चारों वेदों और तमाम उपनिषदों के मुकाबले भागवत गीता पवित्रतम है।
जो चरित्र और आचरण,स्थाई भाव से पुराण मात्र है और वेदों और उपनिषदों के उत्कर्ष से उसकी तुलना की ही नहीं जा सकती। उसे उपनिषद कहना इतिहास विरोधी है।
O- पलाश विश्वास
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