मौत से पहले रिहाई की आस
मौत से पहले रिहाई की आस
प्रबुद्ध गौतम
डॉ. खलील चिश्ती : मौत से पहले रिहाई की आस
भारत-पाकिस्तान का बंटवारा 63 साल बाद भी दोनों देशों के नागरिकों के लिए एक त्रासदी बना हुआ है। बंटवारे के बाद लाखों लोग इधर से उधर गए। कुछ परिवार अपना सबकुछ छोड़ पाकिस्तान जाने के बाद भी भारत में बचे रिश्तेदारों से अपना मोह नहीं छोड़ सके। यही दबाव था कि समय-समय पर दोनों मुल्कों की सरकारों को लोगों के मिलने-जुलने के लिए ट्रेन या बस सेवाएं शुरू करने पर बाध्य करती रही। यहां लोग अब भी एक-दूसरे के मुल्क में रह रहे अपने परिवार वालों से मिलने आते-जाते रहते ह
ैं। डॉ. खलील भी तब अपनी बीमार मां से मिलने आए और अब भारत की जेल में इस संदेह में घुट-घुट के जी रहे हैं कि क्या वह मरने से पहले अपनी सरजमीं पाकिस्तान लौट पाएंगे?
उन्हें रिहा करने की मांग के लिए पहले पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट की अपील के बाद भारत के सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायधीश मारकण्डे काटजू ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को व्यक्तिगत रूप से पत्र लिखकर डॉ. खलील को संविधान की धारा 161 के तहत माफी देने की अपील की है। राजस्थान के राज्यपाल शिवराज पाटिल ने भी डॉ. चिश्ती की दया याचिका पर हस्ताक्षर कर गृहमंत्रालय को भेज दिया है। हालांकि यह अनिश्चितता अब भी बरकरार है कि भारत उन्हें जीते जी रिहा करेगा या नहीं?
78 वर्षीय डॉ. खलील चिश्ती की कहानी 1992 से शुरू होती है, जब वह अजमेर अपनी बीमार मां से मिलने आए थे। अजमेर में वह अपने छोटे भाई जमील चिश्ती के साथ ठहरे थे। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के पहले डॉ. खलील चिश्ती का पूरा परिवार अजमेर में ही रहा करता था। डॉ. चिश्ती की शुरुआती पढ़ाई अजमेर के तोपदारा के सरकारी स्कूल में हुई। यह तब की बात है, जब भारत-पाकिस्तान एक ही देश हुआ करते थे। विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए कराची चले गए। वहां पर उनके बड़े भाई पहले से ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन उसी दौरान अंग्रेजों ने भारत को आजाद करने का निर्णय लिया। दोनों देशों के बीच बंटवारे की लड़ाई शुरू हो गई। बंटवारे के बाद दोनों भाई कराची में ही रह गए, जबकि उनका आधा परिवार, जिसमें मॉं-बाप व छोटा भाई जमील शामिल था, भारत के अजमेर मंे ही रहे। बंटवारा उनके दिलों को नहीं बांट सका और प्रत्येक कुछ वर्षोंं के बाद वो अपने परिवार के साथ वक्त बिताने के लिए भारत आते रहे।
कराची यूनिवर्सिटी के वीरोलॉजी एण्ड माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. चिश्ती शिक्षा के क्षेत्र में जाने माने नाम हैं। पाकिस्तान सहित सउदी अरब, यूके, ईरान, श्रीलंका और नाइजीरिया में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
1992 में भी वे अपनी बीमार मां से मिलने के लिए आए थे। लेकिन इस बार वह शायद गलत समय पर भारत में मौजूद थे। क्योंकि शायद यहीं से उनकी जिंदगी ने यू टर्न ले लिया। 14 अप्रैल, 92। उनके भाई के परिवार और पड़ोसियों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया। झगड़े में पड़ोसी परिवार के एक व्यक्ति की मौत हो गई। जिसके चलते खलील चिश्ती सहित इनके भाई परिवार के सभी पुरुषों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 व 307 के तहत मामला दर्ज किया गया।
हत्या के इस मामले में डॉ. खलील चिश्ती को पुलिस द्वारा तुरंत हिरासत में ले लिया गया, परंतु बीस दिनों बाद उन्हें जमानत मिल गई। पुलिस ने उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया। अब उनके पाकिस्तान जाने का रास्ता बंद हो गया। आगे किसी प्रकार के कोई समस्या न हो इसके लिए व अजमेर में ही शहर के बाहर स्थित अपने भाई के फार्म हाउस में रहने लगे। अदालत में मुकदमा चलता रहा-चलता रहा, ठीक वैसे ही जिसके लिए भारतीय न्यायपालिका जानी जाती है। फैसला घटना के 19 वर्षों बाद, 31 जनवरी 2011 को आया। डॉ. चिश्ती को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। जब आधी से अधिक उम्र गुजार दी तब, उम्रकैद की सजा। अब वह अजमेर की सेंट्रल जेल के अस्पताल में वापस पाकिस्तान में अपने परिवार से मिलने की आस लिए रिहाई की दुआ कर रहे हैं। उनके परिवार में सुनने की शक्ति खो चुकी पत्नी के अलावा बेटे-बेटियां और नाती-पोतें हैं, जो उनकी घर वापसी की राह देख रहे हैं।
कविता श्रीवास्तव : डॉ. खलील के रिहाई की प्रयास कर रही है
खलील इस समय हृदय सहित कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। वर्ष 2008 में उन्हें गंभीर हृदयघात हुआ। पिछले वर्ष भी उन्हें उस वक्त गंभीर हृदयघात हुआ जब उनकी कमर की हड्डियों को जोड़ने के लिए ऑपरेशन चल रहा था। उनकी दयनीय शरीरिक स्थिति को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि सुनवाई के दौरान जेल से कोर्ट व कोर्ट से जेल की यात्रा के लिए सहारे की जरुरत होती है। उनकी कमर की चोट इतनी गंभीर है कि वे खुद से चल सकने में पूरी तरह से अक्षम है। चलने के लिए वॉकर का उपयोग भी बमुशिकल कर पाते हैं। अस्पताल के वार्ड में टॉयलेट का इस्तेमाल कर पाना उनके लिए कष्टदायक होता है।
ऐसे में भी राजस्थान हाई कोर्ट की जयपुर बेंच ने मार्च में उनकी सजा माफी की अर्जी को खारिज कर दिया। हालांकि उनकी रिहाई के लिए भारत के मानवाधिकार संगठनों की लड़ाई ने कुछ रंग दिखाया है और उम्मीद की जा रही है कि भारत सरकार इस पर सकारात्मक रुख अपनाएगी।
डॉ. खलील चिश्ती की रिहाई की लड़ाई लड़ रही पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टिज पीयूसीएल राजस्थान की सचिव कविता श्रीवास्तव कहती हैं कि ‘‘कुछ दिनों पूर्व भारत की सुप्रीम कोर्ट की अपील पर पाकिस्तान में कैद गोपाल दास नामक भारतीय को रिहा किया गया है। इसको ध्यान में रखते हुए भारत सरकार को भी डॉ. चिश्ती को भी रिहा करना चाहिए। इसे भारतीय सरकार का एक सराहनीय कदम माना जाएगा। पाकिस्तान की सिविल सोयायटी की ओर से भी डॉ. चिश्ती की रिहाई को लेकर अपील होती रही है।’’


