यथार्थ से अलगाव को बढ़ावा देती है संघ की विचारधारा
यथार्थ से अलगाव को बढ़ावा देती है संघ की विचारधारा
आरएसएस का मिथकीय माया संसार
आरएसएस की सबसे बड़ी वैचारिक मुश्किल यह है कि वह मिथकों को ही जीवन का सर्वस्व मानता है। समस्त सांस्कृतिक-राजनीतिक-आर्थिक समस्याओं के समाधान मिथकों में ही खोजता है। संघियों का दिमाग या तो विकसित नहीं है या फिर धूर्त हैं ! सामाजिक विकास के वास्तविक कारकों को ये लोग देखने की कोशिश ही नहीं करते। इनकी समग्र गतिविधियां देखते हुए लगता है ये धूर्त हैं और आम जनता की पिछड़ीचेतना का शोषण करने के लिए मिथकों के तर्कजाल को फेंकते रहते हैं।
आरएसएस के मोहपाश में फंसे शिक्षित मध्यवर्ग में बड़ा हिस्सा उन लोगों का है जो शिक्षित तो है लेकिन शिक्षित होने का अर्थ तक नहीं जानता। शिक्षित वह होता है, जिसमें य़थार्थ देखने की चेतना हो, यथार्थ के कारक तत्वों को खोजने की जिसमें जिज्ञासा हो और निजी चेतना और सामाजिक चेतना को युगानुरूप बदलने की जिसमें दिलचस्पी हो। संयोग की बात है संघी चेतना से बंधा मध्य वर्ग सामाजिक और निजी परिवर्तन की प्रक्रिया से अनभिज्ञ है या फिर उसमें चेतना परिवर्तन की आकांक्षा और क्षमता का अभाव है। संघ से बंधे मध्य वर्ग में एक तबका अवसरवादी भी है जो जानता है कि संघ झूठ बोल रहा है लेकिन राजनीतिक-आर्थिक स्वार्थ के कारण वे उससे जुड़े हुए हैं। इससे सामाजिक परिवर्तन बाधित हुआ है, संघ का वैचारिक रुपान्तरण बाधित हुआ है। फलतः संघ में किसी भी किस्म की मौलिक परिवर्तनेच्छा पैदा ही नहीं हुई। संघ की समूची कार्यप्रणाली, नीतियां और आचरण देखकर यही लगता है कि उन्होंने मिथकों में जीने का मार्ग सचेत रूप से चुना है। संघ के लिए मिथक ही विज्ञान है, राजनीति, नीति, समाजनीति, जीवनमूल्य, जीवनशैली आदि है। उनके जितने भी तर्क हैं वे सब मिथककेन्द्रित हैं। संघ के मिथक केन्द्रित चिन्तन का सबसे घातक परिणाम है यथार्थ से अलगाव। यथार्थ से अलगाव के कारण वे न तो प्राचीन भारत को ठीक से देख पाते हैं और नहीं मध्यकालीन भारत को देख पाते हैं। आधुनिक भारत का प्रत्येक आधुनिक विचार उनको नापसंद है।
संघ की विचारधारा यथार्थ से अलगाव को बढ़ावा देती है। वे जिस समाज में रहते हैं उसके विकास की प्रक्रियाओं और सामाजिक नियमों, नीतियों आदि पर बातें नहीं करते, वे हमेशा अतीतजीवी की तरह अतीत में भ्रमण करते हैं। अतीत को भी वे पुराणकथाओं और अविवेकवाद के आलोक में देखते हैं। फलतः वे न तो सही ढंग से अतीत को देख पाते हैं और न वर्तमान की समस्याओं को ही देख पाते हैं। यह काम वे शातिर ढंग से करते हैं। जिससे वे आम जनता को अपने मिथककेन्द्रित माया संसार में बांधे रखें। मिथक केन्द्रित माया संसार शासक वर्गों का और खासकर लुटेरे वर्गों का सबसे बड़ा रक्षा कवच होता है। यही वजह है कि सारी दुनिया में तकनीकी और विज्ञान का महाबिगुल बजाकर अंधाधुंध लूट मचाने वाली कंपनियां आरएसएस को खुलकर चंदा देती हैं और कारपोरेट मीडिया उसे जमकर कवरेज देता है। कारपोरेट घराने जानते हैं कि आरएसएस के नेता मूर्खतापूर्ण बातें कर रहे हैं, वे जानते हैं कि सामाजिक अनुभव, विज्ञान और अन्य वैज्ञानिक प्रक्रियाएं उनके तर्कों के खिलाफ हैं, इसके बावजूद वे संघ को चंदा देते हैं, संघ के बंदे को पीएम बनाने में खुलकर मदद करते हैं, क्योंकि संघ एक बड़ा काम करता है, वह आम जनता की चेतना में यथार्थ के प्रति अलगाव की चेतना पैदा करता है। आम जनता यदि यथार्थ को अलगाववादी नजरिए से देखेगी तो उसे चीजें साफ और सीधी नजर नहीं आएंगी। यही वजह है प्रत्येक संघी नेता के बयान और राजनीतिक यथार्थ में कभी भी कहीं पर भी सामंजस्य नजर नहीं आता। यथार्थ और राजनीति,यथार्थ और समाज, यथार्थ और संस्कृति, यथार्थ और विज्ञान आदि सवालों पर संघ के समस्त मुहावरे, नारे, भाषण, आचरण आदि यथार्थ से अलगाव और मिथक केन्द्रित नजरिए पर टिके हैं। हमें यह बात समझनी होगी, मिथक तो यथार्थ नहीं है। मिथक तो मिथक है। हमारा समाज, यथार्थ में जीता है, मिथक में नहीं जीता। यहां तक कि संघी नेताओं का जीवन भी यथार्थ में चल रहा है। ऐसी स्थिति में आम लोगों में बार-बार मिथकों का संघ के द्वारा प्रचार-प्रसार वस्तुतः समाज को पीछे धकेलने की सचेत साजिश है और इसमें एक हद तक उनको सफलता भी मिली है, क्योंकि हमारे शिक्षित मध्यवर्ग में संघ या ऐसे ही किसी संगठन के खिलाफ खड़े होने की सामाजिक चेतना अभी तक पैदा ही नहीं हुई है। मध्य वर्ग निडर होकर मिथकों के आर-पार जिंदगी देखने की समग्र दृष्टि अभी तक विकसित नहीं कर पाया है। संघ चालाकी के साथ मध्य वर्ग की इस कमजोरी का खुलकर फायदा उठा रहा है। जरूरत है इस मध्य वर्ग को मिथकों के बाहर आकर सोचने, यथार्थ केन्द्रित होकर सोचने की शक्ति प्रदान की जाय।
O- जगदीश्वर चतुर्वेदी


