यह सिर्फ एफ.टी.आई.आई. की नहीं हम सभी की लड़ाई है!
यह सिर्फ एफ.टी.आई.आई. की नहीं हम सभी की लड़ाई है!
नई दिल्ली। 6 अगस्त 2015 को दिल्ली स्थित हिंदी भवन में ‘हम क्यों संघर्ष कर रहे है एफ.टी.आई.आई के लिए’ मुद्दे पर विहान सांस्कृतिक मंच और दिशा छात्र संगठन द्वारा गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में एफ.टी.आई.आई. (पुणे) के छात्र विकास उर्स, साक्षी गुलाठी, और प्रतीक व किशलय ( एफ.टी.आई.आई. के पूर्व-छात्र) और आनन्द स्वरूप वर्मा, नीलाभ अश्क, विवान सुन्दरम, रामशरण जोशी, पंकज बिष्ट रहे।
इस गोष्ठी की शुरुआत में विकास उर्स ने कहा हमें दुख कि हमारे जायज संघर्ष को सरकार द्वारा गलत रूप में पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा सवाल व्यक्तिरूप से कुछ लोगों के लिए नहीं हैं। लेकिन इन लोगों के चयन में किसी प्रक्रिया पूरी तरह गैर-जनवादी है।
गोष्ठी में प्रतीक ने कहा कि यहां जो छात्र संघर्ष कर रहे उनकी बात तो सुनी तो नहीं जा रही है उल्टा पुलिस के डण्डे के बल पर कुचल रही है।
यह ज्ञात हो की पुणे के फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के छात्र गजेन्द्र चौहान के अध्यक्ष के रूप में और चार अन्य लोगों जैसे अनघा घैसास, नरेंद्र पाठक, राहुल सोलपुरकर की नियुक्ति के विरोध में पिछले 55 दिनों से हड़ताल पर बैठे हैं।
इन 55 दिनों में एफ.टी.आई.आई. और अन्य छात्रों द्वारा पूरे देश भर में दर्जनो विरोध प्रदर्शन किये जा चुके हैं, दिल्ली में ही तीन बड़े प्रदर्शन आयोजित किये जा चुके हैं मगर न तो सरकार ने अभी तक छात्रों की मांगों को गंभीरता से लिया है और न ही उनसे बात करनी की कोई पहल की है। उल्टा संघ के माउथपीस से लेकर भाजपा सरकार के सदस्यों ने छात्रों को देशद्रोही, हिंदुत्व विरोधी, नक्सलवादी होने की उपाधियों से नवाज़ा है। एफ.टी.आई.आई के पिछले अध्यक्षों की सूची में अडूर गोपालकृष्णन, श्याम बेनेगल, यू आर अनंथकृष्णमूर्ति, सईद अख्तर मिर्ज़ा जैसे कलाकार शामिल हैं, पर गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति कई सवालों को खड़ा करती है। कला के क्षेत्र में चौहान का योगदान पिछले किसी भी अध्यक्ष के मुकाबले न के बराबर है।
गजेन्द्र चौहान की काबिलियत के नाम पर कोई प्रमाण है तो वह भारतीय जनता पार्टी के पिछले 3 दशकों से सदस्य होना और साथ ही संघ की विचारधारा का वाहक होना। अपने कई साक्षात्कारों में गजेन्द्र चौहान संघ परिवार और मोदी जी के गुण गान करते देखे गए हैं। इसके साथ ही इनके चयन और नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया की पारदर्शिता के ऊपर भी छात्रों ने अपना विरोध जताया है। मगर गौर करने की बात है कि छात्रों के ज़बरदस्त विरोध के बावजूद अभी तक इस मामले में सरकार की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की गयी। छात्रों को यह डर है कि ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति से अभिव्यक्ति की आज़ादी एवं कलात्मक आज़ादी के लिए ख़तरा पैदा हो सकता है।


