फैसले के बाद सबकी निगाहे आजम खान पर है जिन्होंने बाबरी आंदोलन का लम्बा संघर्ष किया था । अयोध्या विवाद के फैसले पर आजम खान ने कहा - हाईकोर्ट का यह फैसला नजीर न बन जाए जो सबूतों ,तथ्यों और तर्कों की बजाय मजहबी आधार पर दिया गया है । सन १९४७ में सरहदें खुली थी जिन्हें जाना था वे चले गए जो यहाँ रुके वे बापू ,नेहरु ,पटेल और कलाम के उस भरोसे पर रुके जिसमे सभी धर्म सभी समुदाय से बराबरी की बात कही गई थी । जो यहाँ रुके उन्होंने जिन्ना का नारा ख़ारिज कर दिया था । हमारा संविधान तो धर्मनिरपेक्ष है फिर आस्था और मजहब के आधार पर फैसले का क्या अर्थ ?

अंबरीश कुमार
लखनऊ , सितम्बर । अयोध्या विवाद पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद जो भी फार्मूला सामने आ रहा है उसमे मुस्लिम पक्षकारों से एक तिहाई जमीन छोड़ अयोध्या में दूसरी जगह दूसरे नाम की मस्जिद बनाने का सुझाव है । इसपर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के पूर्व संयोजक आजम खान ने कहा - यह सुलह समझौता नहीं हेकड़ी है है । आजम खान ने यह टिप्पणी जनसत्ता से बात करते हुए की । आजम खान जहाँ देश की राजनैतिक व्यवस्था निराश है वही यह भी मानते है कि अब चारा भी क्या है और आगे कहा -जीना तेरी गली में ,मरना तेरी गली में । पर उन लोगों की यह ख़ामोशी खौफ और दहशत की है जो १९४७ में इस देश को छोड़ किसी मजहबी देश में नहीं गए ।
अयोध्या विवाद के फैसले के बाद जहाँ भगवा ब्रिगेड के चेहरे खिल उठे थे वही दूसरे समुदाय ने जो ख़ामोशी ओढी वह अभी भी बरक़रार है और रहने वाली भी है । इतिहासकार मुखर है तो समाजवादी पार्टी से लेकर वाम और धुर वामपंथी पार्टिया भी इस मुद्दे पर पहल कर संविधान और कानून का का सवाल उठा रही है । अस्सी के दशक में जब मंदिर आंदोलन तेज हुआ तो बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने भी आंदोलन छेड़ा और आंदोलन की पहचान बने तेजतर्रार नेता आजम खान । आज आजम खान के पास कोई पार्टी नहीं है तो इस मुद्दे के बाद सत्ता में आई समाजवादी पार्टी के पास राष्ट्रीय स्तर का कोई मुस्लिम चेहरा भी नही है । यह बात मुलायम सिंह भी महसूस कर रहे है और आजम खान भी । फैसले के बाद सबकी निगाहे आजम खान पर है जिन्होंने बाबरी आंदोलन का लम्बा संघर्ष किया था । अयोध्या विवाद के फैसले पर आजम खान ने कहा - हाईकोर्ट का यह फैसला नजीर न बन जाए जो सबूतों ,तथ्यों और तर्कों की बजाय मजहबी आधार पर दिया गया है । सन १९४७ में सरहदें खुली थी जिन्हें जाना था वे चले गए जो यहाँ रुके वे बापू ,नेहरु ,पटेल और कलाम के उस भरोसे पर रुके जिसमे सभी धर्म सभी समुदाय से बराबरी की बात कही गई थी । जो यहाँ रुके उन्होंने जिन्ना का नारा ख़ारिज कर दिया था । हमारा संविधान तो धर्मनिरपेक्ष है फिर आस्था और मजहब के आधार पर फैसले का क्या अर्थ । अब तो सोच के सारे रास्ते बंद हो गए है । गजब फैसला है ,टाइटिल सूट का फैसला होना था । यह बताना था कि वहा मंदिर था या बाबरी मस्जिद थी । पर यहाँ तो बंटवारा कर दिया गया । हम तो यह जानना चाहते थे कि मस्जिद थी की नहीं । मस्जिद भी पूरी, आधी नहीं क्योकि अगर मंदिर होगा तो भी पूरा होगा और मस्जिद होगी तो भी पूरी होगी । इसमे तकल्लुफ किस बात का जो बंटवारा कर दिया । कानून का सम्मान कहाँ हुआ ।
यह पूछने पर कि हाशिम अंसारी नाराज है क्योकि आप बाबरी मस्जिद आंदोलन के बाद फैजाबाद नही गए ? आजम खान ने कहा - हाशिम अंसारी बुजुर्ग है नब्बे साल की उम्र हो गई कुछ तथ्य वे भूल रहे है । जब १९९२ में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई तो मैंने कहा अब बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का कोई औचित्य नही बचा अब तो बाबरी मस्जिद री कंस्ट्रक्शन कमेटी बने । फिर भी मै कई बार फैजाबाद गया ।
अयोध्या पर जो बात चल रही है ? यह कौन लोग बात कर रहे है और किसने इन्हें बातचीत का अधिकार दिया है । फिर बातचीत तो बराबरी पर होती है एक पक्ष का एलान है कि एक इंच जमीन नहीं देंगे मस्जिद वहां नही बनेगी । कल्याण सिंह से लेकर तोगड़िया जो भाषा पहले दिन से बोल रहे है उसका क्या अर्थ है । जो पहले हुआ वही तो आप भी कर रहे है । फिर कैसे समझौता होगा और जो हो भी जाए वह किसको मान्य होगा ।
जो खामोश माहौल है उसका क्या अर्थ है ? यह दहशत और खौफ की ख़ामोशी है । जो बोलेगा उसका क्या हश्र हो ? देश की एक बड़ी आबादी मायूस है और यह मायूसी खतरनाक है । हमें तो देश की राजनैतिक व्यवस्था से बहुत निराशा हुई है । मुल्क इंसाफ से महरूफ हो जाए यह ठीक नही है ।
मुलायम सिंह से लेकर वाम दलों ने यह सवाल तो उठाया ? मुलायम सिंह ने सिर्फ एक बयान जारी किया । क्या समाजवादी पार्टी में लौटने वाले है क्योकि जिन अमर सिंह की वजह से आप नाराज थे वे पार्टी से बाहर है ? मेरा अमर सिंह से विरोध नही था और आप को पता होना चाहिए जब अमर सिंह और जयाप्रदा को समाजवादी पार्टी से निकाला गया तो मैंने सख्त एतराज करते हुए बयान भी दिया । जब मन हो किसी को इस तरह निकलने का क्या अर्थ ।
गौरतलब है कि आजम खान एक बार फिर सक्रीय होते नजर आ रहे है और मुस्लिम समुदाय की एक बड़ी आबादी उन्हें आज भी उम्मीद की निगाहों से देखती है । कांग्रेस पर वे फिर हमलावर है और अयोध्या विवाद के पीछे उसी की बड़ी भूमिका मानते है । ऐसे में मुलायम सिंह के लिए वे फिर मददगार साबित होंगे । वैसे भी पहले अमर सिंह और बाद में कल्याण सिंह के चलते वे पार्टी से अलग हुए थे । कल्याण सिंह अब समाजवादी पार्टी और मुलायम से अलग हो चुके है इसलिए उनके पार्टी में लौटने की उम्मीद बढ़ रही है ।
जनसत्ता