आप भले ही केजरीवाल एण्ड कम्पनी की हो लेकिन जनशक्ति पूरे देश की धरोहर है।
संघ को रयूमर स्प्रैडिंग संघ की जाता था जिसका ताज़ा उदाहरण गडकरी का यह बयान है...
सुन्दर लोहिया
आम आदमी पार्टी का दिल्ली में राज्य सरकार के गठन से कांग्रेस और भाजपा दोनों प्रमुख पार्टियों की राजनीतिक प्रासंगिकता को संदिग्ध बना दिया है। भाजपा ने सबसे ज्यादा सदस्य होते हुए भी सरकार बनाने का जोखिम न उठाकर वास्तव में दिल्ली की जनता के साथ विश्वासघात किया। अब जनता, आप के साथ खड़ी नज़र आने लगी तो उसे अपनी राजनीतिक ग़लती का अहसास हुआ और तब दिल्ली राज्य के चुनाव के प्रभारी नितिन गडकरी को इसमें कांग्रेसी षड़यन्त्र दिखाई देने लगा। उन्होंने गैर जिम्मेदाराना तरीके से आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने एक उद्योगपति के माध्यम से भाजपा की जीत को रोकने के लिए दूसरी बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए उकसाया है। ग़ैर भाजपा राजनीतिक क्षेत्रों में गडकरी के इस बयान को आरएसएस के स्वयंसेवक की सही भूमिका निभाने की कोशिश बताया जा रहा है। इसका खुलासा करते हुए एक पत्रकार मित्र ने कहा कि संघ को रयूमर स्प्रैडिंग संघ की जाता था जिसका ताज़ा उदाहरण गडकरी का यह बयान है। आज़ादी के बाद जनान्दोलन के माध्यम से सत्ता परिवर्तन का यह दूसरा अवसर है जिस पर जनता भरोसा कर रही है।
इस बीच अटलबिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार ने भी पांच साल तक राज तो किया लेकिन मंदिर बनाने के अपने वायदे को अगले चुनाव के दांव पर लगाने के चक्कर में जनता का विश्वास खो गये। दस साल तक सोनिया गांधी के प्रधानमन्त्री पद का त्याग करने वाले आदर्शवाद के प्रति कृतज्ञता भाव से बर्दास्त कर रहे है। इन सब अनुभवों को देखते हुए आदर्शवाद के प्रति देश के बौद्धिक वर्ग की आशंकाओं को नकारा नहीं जा सकता। इसके अलावा खुद आप का अब तक का राजनीतिक सफर भी कई आशंकाओं को पैदा करने वाला रहा है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आप पार्टी नेताओं और अफसरों के पीछे तो हाथ धो कर पड़ी हुई है लेकिन कॉरपोरेट सैक्टर के भ्रष्टाचार का कहीं भी विरोध नहीं कर रही। जिस तरह से कांग्रेस सरकार ने रिलांयस के दबाव में आकर प्राकृतिक गैस और ऊर्जा मन्त्री जयपाल रेड्डी को हटाकर मोइली को मन्त्री बनाया जिसने आते ही रेड्डी द्वारा रिलायंस के खिलाफ तैयार करोड़ों रूपये के जुर्माना प्रस्तावित करने वाले मामले को पलट दिया और हाल ही में फिर उसी मोइली को को पर्यावरण का विभाग जयन्ती नटराजन से छीन कर जब दिया तो कारपोरेट जगत में खुशी की लहर दौड़ गई और जनता को बताया जा रहा है कि पर्यावरण विकास के रास्ते में अड़चन पैदा करके आर्थिक प्रगति का रोड़ा बन गया था इसलिए मोइली को कार्यभार सौंपा गया। इस बारे कांग्रेस के प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार राहुल गान्धी आदर्श हाऊसिंग सोसायटी के मामले पर महाराष्ट्र की कांग्रेसी सरकार को पुनर्विचार का उपदेश सुनाकर ईमानदारी का श्रेय तो ले रहे हैं लेकिन वह रिलांयास जैसी कम्पनियों को दी जाने वाली गैरकानूनी छूट के बारे में चुप क्यों हैं? इसलिए यह आशंका निराधार नहीं हो सकती कि इस पूरी राजनीति की बागडोर कारपोरेट सैक्टर के हाथों संचालित हो रही हो।
इसके बावजूद इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आप पार्टी के आविर्भाव से राजनीतिक पार्टियों की सोच में कुछ सकारात्मक परिवर्तन की सम्भावनाएं दिख रहीं हैं। इसके संकेत शपथ ग्रहण के दिन घटित घटना से मिल जाते हैं जब रेलवे विभाग ने उनकी सम्पत्ति पर बनाये गये अस्थाई घरौंदों को तोड़ने का फरमान लागू किया गया। यह फरमान कितना अमानवीय है इसे छोड़ते हुए देखें कि इससे कांग्रेस और भाजपा जैसी ताकतवर पार्टियों की चूलें कैसे हिली जब आप के कार्यकत्र्ताओं ने बिना शोर शराबा किया उनके पुनर्वास के लिए तम्बू लगाने के लिए गड्ढे खोदने शुरू कर दिये और अपनी नैया डूबती देख युवा कांग्रेस और भाजपा का युवामोर्चा भी काम में जुट तो गया लेकिन मीडिया को नोट करवाना पड़ा कि वे फलां पार्टी से हैं। इस देश में राजनीतिक आन्दोलनों को ही महत्त्वपूर्ण मानने की मानसिकता के कारण कई महत्त्वपूर्ण सर्वसमावेशी आन्दोलन मीडिया की कृपादृष्टि आकर्षित नहीं कर पाये जो दलगत राजनीति से अलग थे। इस तरह के लोक आधारित आन्दोलन का सूत्रपात केरल शास्त्र साहित्य परिषद के मार्गदश्न में 1989 में सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के रूप में किया गया था। बाद में भारत ज्ञान विज्ञान समिति ने राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के सहयोग से पूरे देश में आयोजित किया।
जिस आम आदमी के आर्थिक विकास की बात अरविन्द केजरीवाल कर रहे हैं उसके शैक्षणिक उत्थान की आधार शिला राष्ट्रीय साक्षरता अभियान के दौरान रखी जा चुकी है। वास्तव में आम आदमी पार्टी के इस आन्दोलन को राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के उदघोषित लक्ष्यों की अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है जिसमें लिखा गया है-‘जनता अपनी बदहाली के कारणों को जाने उनसे मुक्ति पाने की दिशा में संगठनबद्ध होकर प्रयास करें और देश के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें।’ इसके अलावा केरल में कम्यूनिस्ट सरकार के तत्वावधान में पीपुल्स प्लानिंग के अंतर्गत वार्ड स्तर पर योजना का निर्माण सत्ता के विकेन्द्रीकरण का उदाहरण है। हैरानी इस बात पर है कि जिन लोगों को अपनी विचारधारा के क्रियान्वयन के लिए आगे आना चाहिए था वे शंकाग्रस्त हो कर पीछे हट रहे हैं और सोच रहे हैं कि ये लटके झटके हैं जो कामयाब नहीं होंगे। होना यह चाहिए कि आप पार्टी को इन नीतियों से विचलित होने से रोकने के लिए इनमें सक्रियता से सहयोग देते ताकि कहीं अगर केजरीवाल डगमगाये तो वे उसे सही दिशा की ओर ले जा सकें।
दरअसल मीडिया इस परिघटना को केजरीवाल केन्द्रित करके इसके जनपक्ष को छुपाने की कोशिश कर रहा है। अरविन्द ने अन्ना की दलगत राजनीति के प्रति झिझक से उपर उठ कर एक राजनीतिक पार्टी के गठन का जोखम उठाया और मरणासन्न आन्दोलन को नया जीवन प्रदान किया है। उसके इस साहस की सराहना की जानी चाहिए क्योंकि अन्ना के भ्रष्टाचारविरोधी आन्दोलन से जो जन ऊर्जा सृजित हुई थी उसे प्रवाहमान होने के लिए जिस प्रकार के माध्यम की ज़रुरत थी वह केजरीवाल के प्रयत्नों से प्राप्त हुआ है ज़रूर लेकिन उसे यदि व्यक्ति केन्द्रित कर दिया जायेगा तो उसकी वास्तविक शक्ति लुप्त हो सकती है। वास्तविक शक्ति इस मामले में लोकशक्ति है। इस अभियान की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है कि इसके माध्यम से लोगों ने अपनी संवैधानिक शक्ति को पहचान लिया है। केजरीवाल ने शपथ ग्रहण करने से पहले एक बार फिर जनता से रुबरू होकर संवाद स्थापित करके लोकशक्ति को मान्यता देकर राजनीति की गति को नई दिशा प्रदान की है। अब यह सभी देशभक्त ताकतों का फर्ज़ बनता है कि इस ज्वाला को बुझने न दें। आप को विचलन और भटकाव से बचाने के लिए जनपक्षधर ताकतों की एकजुटता समय की मांग है। आप भले ही केजरीवाल एण्ड कम्पनी की हो लेकिन जनशक्ति पूरे देश की धरोहर है।
सुन्दर लोहिया, लेखक स्वतंत्र समीक्षक हैं।