यही कुंठा सावरकर के आगे वीर लगाकर भगत सिंह के समकक्ष खड़ा करने की कोशिश करती है
यही कुंठा सावरकर के आगे वीर लगाकर भगत सिंह के समकक्ष खड़ा करने की कोशिश करती है

यही कुंठा किसी मुगलसराय को बदल कर दीनदयाल कर देती है और किसी सावरकर के आगे वीर लगाकर भगत सिंह के समकक्ष खड़ा करने की कोशिश करती है.
हैं दोनों चश्मे की दुकानें और दोनों आस-पास पर एक मियां बाजार और दूसरी माया बाजार में. ये चश्मे के नंबर का दोष नहीं बल्कि राजनीतिक दोष है. इसलिए चश्मे के शीशे को साफ करने की जरूरत नहीं. गोरखपुर को जो नहीं जानते होंगे उनको ये मजाक लग सकता है.
मौजूदा दौर को समझने के लिए इस राजनीतिक प्रयोगशाला को समझना जरूरी है, जिसने मियां बाजार को माया बाजार, अली नगर को आर्य नगर, शेखपुर को शेषपुर और न जाने क्या- क्या कर दिया.
| राजीव यादव, लेखक स्वतंत्र पत्रकार, सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता व राज्य प्रायोजित आतंकवाद के विशेषक्ष हैं। |
आजादी के बाद पितृहन्ता इस राजनीति ने न सिर्फ महात्मा गांधी की हत्या की बल्कि उसने हर उन प्रतीकों को मिटाने की कोशिश की जिससे वो हिन्दू समाज में कुंठा को बढ़ा सकें. यही कुंठा किसी मुगलसराय को बदल कर दीनदयाल कर देती है और किसी सावरकर के आगे वीर लगाकर भगत सिंह के समकक्ष खड़ा करने की कोशिश करती है.


