युग चेतना और स्वतंत्र चेतना के प्रतीक थे हरिऔध जी
युग चेतना और स्वतंत्र चेतना के प्रतीक थे हरिऔध जी
अयोध्या सिंह उपाध्यक्ष “हरिओध” “प्रिय प्रवास”के बहाने
सुनील दत्तता
आजमगढ़। साहित्य, समाज और संस्कृति का घनिष्ठ संबंध है। युगदृष्टा रचनाकार जिस साहित्य का सृजन करता है, वह समाज के विषमताओं, संवेदनाओं, संघर्षों को रेखांकित ही नहीं अपितु उसे उपयुक्त दिशा-बोध भी प्रदान करता है। इसके साथ ही देश का परिस्थितियों का सांस्कृतिक जीवन भी प्रस्तुत करता है।
संस्कृति किसी राष्ट्र की आत्मा होती है-पूरा विश्व, ग्लोबल विलेज की दुनिया में जकड़ रहा है। साहित्य की दिशा भी समाज के साथ आगे बढ़ रही है। आधुनिक कविताएँ जो कभी भारतेंदु के गीतों और हरिओध, मैथिलीशरण की राष्ट्रीय कविताओं में अपनी पहचान बनाती थी वह “आधुनिकता” और “उत्तर आधुनिकता” के तकनीकी मुहावरों में देखी जा रही है।
समाजवाद-मार्क्सवाद से बढ़कर वैश्वीकरण उदारवाद और मुक्त व्यापार के प्रसार के साथ हम अपनी जड़ से कटकर अर्थिक युग के एक यंत्र बनते जा रहे हैं, ऐसे समय में साहित्य स्वयँ कितना महत्वपूर्ण रह जाता है यह विचारणीय है?


