जगदीश्वर चतुर्वेदी

यूपी अतिरिक्त राजनीतिक सजगता की मांग करता है। यूपी में पीएम मोदी-आरएसएस के बड़े दांव लगे हैं, वे प्रत्येक विकल्प पर काम कर रहे हैं।

मोदी की भाषा सुनें, उम्मीदवारों के भाषण सुनें और यूपी के चुनाव घोषणापत्र को देखें तो पाएंगे इन सबमें गहरा तालमेल है। इस समय यूपी के चुनाव को विभिन्न दलों ने विभिन्न वस्तुओं के लालच-लोभ में डुबो दिया है। अब वहां राजनीतिक बातें दिल बहलाने के लिए हो रही हैं, असल में पर्दे के पीछे लोभ-लालच का खेल चल रहा है।

यूपी के दलितों का समर्थ हिस्सा सीधे आरएसएस की ओर भागता नजर आ रहा है, इनमें अनेक करोड़पति दलित भी हैं। उदीयमान दलित मध्यवर्ग को आरएसएस सीधे प्रभावित करने की कोशिश में है, इससे निचले स्तर के लोगों को नोटों के जरिए खरीदने की रणनीति पर मोदी एंड कंपनी काम कर रही है।

सवाल यह है दलितों की बस्तियों में आरएसएस-भाजपा के लोगों के प्रवेश को विपक्ष रोक पाता है या नहीं ?

आरएसएस के लोग लेह-लद्दाख के अनुभवों को यूपी के दलितों में लागू करने जा रहे हैं। लेह-लद्दाख में हिन्दुओं के न्यूनतम वोट भी न होने पर भाजपा ने लोकसभा सीट जीतकर दिखाई है और वहां पर उसने यह खेल सिर्फ नोटों के बल पर किया, बड़े पैमाने पर वोटरों को अपने साथ ले जाने में उसे मदद मिली।

नोटों का खेल सबसे बड़ा खेल है, नोटबंदी के बाद एक ही पार्टी नोटों के खेल में सबसे आगे है वह है भाजपा। इसलिए दलितों-अल्पसंख्यकों की बस्तियों में नोटों के खेल को रोकने के लिए विशेष निगरानी रखने की जरूरत है।

लेह-लद्दाख में मैंने एक सप्ताह तक घूमकर निचले स्तर पर यह पाया कि बड़े पैमाने पर भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में नोट बांटकर वह सीट जीती थी, प्रत्येक दाता में 1500 रूपये बांटा गया, पैसा कांग्रेस-पीपुल्स कॉफ्रेंस ने भी बांटा था, लेकिन 1000रूपये प्रति मतदाता की दर से, नोटों की वर्षा ने अंततः राजनीति की हत्या कर दी, नोटों को जिता दिया, समाज को लोभी बना दिया, लेह-लद्दाख में दोनों दलों से जनता ने नोट लिए।

यूपी को बचाना है तो नोटों की राजनति को बेनकाब करो।