यूपी में ओवैसी तो स्थापित करने के लिए संसद का इस्तेमाल
यूपी में ओवैसी तो स्थापित करने के लिए संसद का इस्तेमाल
नई दिल्ली। संसद में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (All India Majlis-e-Ittehadul Muslimeen) के मुखिया और हैदराबाद से सांसद चुने गए असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) शपथ लेने के लिए उठते ही भाजपा सांसदों का जय श्रीराम का नारा लगाना (Slogan of Jai Shriram of BJP MPs) उसके जवाब में ओवैसी का अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाने (Sloganeering of Owaisi of Allah-Hu-Akbar) को सामान्य घटना नहीं माना जा सकता है। यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत हुआ है।
दरअसल जो खेल कभी भाजपा ने उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के साथ मिलकर खेला था वही खेल अब ओवैसी के साथ मिलकर खेल रही है। राजनीति के चतुर खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने उस खेल का फायदा उठाते हुए मुस्लिम वोटबैंक ऐसा कब्जाया कि भाजपा को सत्ता में आने में 19 साल लग गए। अब जब सपा की बागडोर मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव के हाथ में है, पार्टी के दो फाड़ हो चुके हैं। पार्टी खेवनहार मुलायम सिंह लगभग पार्टी से दरकिनार कर दिए गए हैं। पार्टी के दूसरे स्तंभ शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी बना ली है। ऐसे में पार्टी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है तो भाजपा को उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटबैंक को ठिकाने लगाने का अच्छा अवसर हाथ लग गया है।
ओवैसी को भाजपा ने उत्तर प्रदेश में ही इस्तेमाल करने के लिए तैयार किया है। सपा का मुस्लिम वोटबैंक काटने के लिए यह सब खेल चल रहा है। यही वजह है कि ओवैसी अपने भाषणों में भाजपा के साथ ही सपा को भी टारगेट करते हैं। जो तीखी भाषा कभी मुलायम सिंह भाजपा के खिलाफ बोला करते थे वही भाषा आजकल ओवैसी बोल रहे हैं। भाजपा का ओवैसी को उतर प्रदेश में स्थापित करने का मकसद मो. आजम खान के वजूद को भी कम करना है।
यही रणनीति भाजपा ने लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा को घेरकर बनाई थी। शिवपाल यादव को सपा का वोट काटने के लिए लगाया गया था तो चंद्रशेखर आजाद को मायावती का।
वैसे भी संसद की इस घटना पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ चाहिए। भाजपा को जनता ने प्रचंड बहुमत इसी राष्ट्रवाद के नाम तो दिया है। भाजपा के पास जय श्रीराम के अलावा और कुछ राष्ट्रवाद तो है नहीं। जो लोग आजादी और संविधान दोनों के विरोधी थे। राष्ट्रवादी कैसे हो सकते हैं ? जिन लोगों के पास हिन्दू मुस्लिम के अलावा कोई दूसरा मुद्दा न हो वे सबका साथ सबका विकास के नारे को कैसे चरितार्थ कर सकते हैं।
हम क्यों भूल जाते हैं कि इन लोगों के एजेंडे में किसान, मजदूर और गरीब है ही नहीं। तो फिर इनसे क्यों जमीनी मुद्दों की अपेक्षा करते हैं। पुलिस भी जब किसी व्यक्ति को किसी आरोप में गिरफ्तार करती है तो उसका पिछला रिकार्ड देखा जाता है। भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों का रिकार्ड क्या है यह किसको मालूम नहीं।
दिलचस्प बात यह है कि जब संसद में जय श्रीराम के नारे लग रहे थे तो सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाले प्रधानमंत्री खुद वहां पर मौजूद थे। सोचने का विषय यह है कि यदि ऐसे ही संसद में मुस्लिम अल्ला हु अकबर और ईसाई यीशु के नारे लगाने लगे तो फिर संसद की स्थिति क्या होगी ?
दरअसल भाजपा यही तो चाहती है कि सड़क से लेकर संसद तक देश में जय श्रीराम और अल्ला हु अकबर के नारे गूंजे। इससे भाजपा को दोहरा फायदा हो रहा है। एक तो उसका परम्परागत हिन्दू वोटबैंक उससे सट रहा है। दूसरा लोगों का ध्यान जन समस्याओं से हट रहा है।
दरअसल ओवैसी को खड़ा करने वाली भाजपा ही तो है। भाजपा ने जैसे ओवैसी का इस्तेमाल कांग्रेस के खिलाफ महाराष्ट्र में किया था वैसे ही सपा के खिलाफ उत्तर प्रदेश में करने जा रही है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की बीमारी का कारण भी तो यही है। जो खेल भाजपा उनके साथ मिलकर खेलती रही है। उस खेल के लिए भाजपा ने अब ओवैसी को चुन लिया है।
1991 में मुलायम सिंह ने विवादित ढांचे को ढहाने से रोकने का बहाना बनाकर कारसेवकों पर गोली चलवा कर ही तो उत्तर प्रदेश का मुस्लिम वोटबैंक कब्जाया था। मुस्लिम वोटबैंक जब जब सपा से छिटकने को होता था तब तब मुलायम सिंह कारसेवकों पर गोली चलवाने की बात कर मुस्लिमों को रिझा लेते थे।
भाजपा भी तो यही चाहती थी कि मुलायम सिंह की हिन्दू विरोधी बातों को भुनाया जाए। जो नूरा कुश्ती सपा और भाजपा की हुआ करती थी उसी कुश्ती की भूमिका भाजपा अब ओवैसी के साथ मिलकर बना रही है।
यह भाजपा का मुलायम सिंह से प्रेम ही तो था कि जब 1996 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह के सामने संभल से भाजपा ने डीपी यादव को टिकट दिया था। जब डीपी यादव अटल बिहारी वाजपेई से जीत का आशीर्वाद मांगने गए तो उन्होंने यह कहकर आशीर्वाद देने से इंकार कर दिया था कि संसद में मुलायम सिंह जैसे नेता की जरूरत है। 2003 में मायावती से समर्थन वापस लेकर मुलायम सिंह की सरकार बनवाने वाली भाजपा ही तो थी।
ऐसा नहीं है कि यह नारा ओवैसी के शपथ लेते समय ही लगा हो। पश्चिम बंगाल के आसनसोल लोकसभा सीट से सांसद बने बाबुल सुप्रियो के शपथ ग्रहण से पहले भी भाजपा सांसदों ने जय श्री राम के नारे लगाए। जब ये नारे लग रह थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके पीछे ही बैठे थे। मतलब प्रधानमंत्री की उनको मौन स्वकृति थी। यह भी इसलिए हुआ, क्योंकि भाजपा को बंगाल भी अपने अनुकूल जमीन दिखाई दे रही है।
देखने में आता है कि भाजपा के शीर्ष नेता और कार्यकर्ता छोटी से छोटी सभाओं से लेकर बड़ी से बड़ी रैलियों में जयश्री राम के नारे लगाते रहे हैं। पीएम मोदी भी कई मौकों पर जय श्री राम के नारे लगाते दिखे। जहां-जहां भाजपा को अपने अनुकूल जमीन दिखाई देती है। वहां-वहां भाजपा जय श्रीराम के नारों का अभियान छेड़ देती है। पश्चिम बंगाल में भी भाजपा यही कर रही वहां जय श्री राम का नारा भाजपा के लिए सत्ता प्राप्ति का हथियार बन गया है। वहां भाजपाई जय श्रीराम का इस्तेमाल वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चिढ़ाने के लिए कर रहे हैं। संसद में जो मुस्लिम सांसद चुनकर गए हैं उनको वहां चिढ़ाया जा रहा है।
भाजपा ने 1991 जब उत्तर प्रदेश की सत्ता हथियाई थी तो यही जय श्री राम का नारा था। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के नाम पर हुए भाजपा के आंदोलन के बलबूते भाजपा ने उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता प्राप्त की थी। 1999 में केंद्र की सत्ता का स्वाद भी भाजपा ने राम के सहारे ही चखा था। अब 2014 के बाद 2019 में भी मोदी की सरकार इसी जय श्रीराम के नारे के बल मिली है।
भले ही पाकिस्तान को लेकर राष्ट्रवाद का माहौल बनाया गया हो पर भाजपा का राष्ट्रवाद पाकिस्तान की आड़ में मुस्लिमों के खिलाफ माहौल बनाकर हिंदुओं को एकजुट करना था, जिसमें वे लगातार सफल हो रहे हैं।
इसमें दो राय नहीं कि राम हिन्दुओं के साथ ही सभी धर्म के लोगों के आस्था के प्रतीक हैं। रामलीला के मंचन के समय हिन्दुओं के साथ ही मुस्लिम, ईसाई के साथ ही सिख वर्ग के लोग भी देखे जा सकते हैं। लालकिले पर होनी वाली रामलीला में तो हनुमान का रोल एक-एक मुस्लिम युवा करता है। वॉलीवुड में तो विभिन्न धर्मों के रोल में विभिन्न धर्मों के कलाकार होते हैं।
दरअसल राम अब आस्था का प्रतीक नहीं रह गए हैं। अब उनके नाम का नारा भाजपा के लिए सत्ता हथियाने का हथियार बन गया है। यही वजह है कि यह नारा मंदिरों से ज्यादा अब राजनीतिक मंचों पर ज्यादा सुनने को मिल रहा है। अब तो संसद में भी पहुंच गया है।
यह नीति भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों की शुरू से ही रही है कि जहां मुस्लिम बस्ती हो वहां जुलूस निकालकर उन्हें उकसाने वाले नारे लगाओ। अब यही काम भाजपा संसद में भी करने लगी है। मतलब अब संसद में जन समस्याओं पर बहस कम और धर्म पर आधारित नारे ज्यादा लगेंगे।
चरण सिंह राजपूत
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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