ये चिरकुट प्रवृत्ति के लोग अपराधी हैं नेता जी के
ये चिरकुट प्रवृत्ति के लोग अपराधी हैं नेता जी के
ये चिरकुट प्रवृत्ति के लोग अपराधी हैं नेता जी के
अरविन्द विद्रोही
भोर की प्रथम किरण ने रात्रि के गहन अंधकार को दूर करने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है। यही प्रकृति का शाश्वत नियम है कि घोर अंधकार को खत्म करने के लिए रौशनी की एक किरण पर्याप्त होती है फिर यहाँ तो साक्षात् सूर्य देव अपने पथ पर अग्रसरित हैं।।
जीवन के इस सफ़र में चिंता भी है और चिंतन भी। चिंता पारिवारिक दायित्वों - उदर पूर्ति के साधनों की पूर्ति की और चिंतन सामाजिक-राजनैतिक - लेखकीय दायित्वों की पूर्ति के लिए करना पड़ता है।
संतोष की बात सिर्फ इतनी रहती कि तमाम दुश्वारियों के बावजूद कोई भी दायित्व अधूरा नही रहता। हाँ जद्दोजहद, जोखिम उठाना पड़ता अक्सर और कभी-कभी मन मसोस के रहना भी पड़ता।
जब-जब सफर समर में भी तब्दील होता, मैं रणभूमि में अपनी भूमिका निभाने में कतई संकोच - परहेज नही करता हूँ। युद्ध के श्रीगणेश के पश्चात् सूर्यास्त के पूर्व क्या रुकना क्या थकना ? पर यह भी स्मरण रखता कि धर्मयुद्ध में युद्ध में जीत हासिल करने हेतु नाना प्रकार के षड्यंत्र भी होते और अधर्म का मार्ग भी अपनाया जाता है सो दृष्टि रहती हर एक योद्धा पर, शस्त्र के हर एक वार पर भी और रणभूमि से दूर महलों से रचे जा रहे चक्रव्यूह से भी।
विनम्रता, सरलता, सौम्यता, उदारता भद्रजनों, आमजनों, दुखियारों, अपनों के प्रति प्रदर्शित करना - होना ही उचित है बाकि दुष्टों, भितरघातियों, शत्रुओं के प्रति सिर्फ और सिर्फ दंड - शौर्य - पराक्रम का प्रदर्शन ही सर्वोचित मार्ग होता।। राज्य में शांति, सुखहाली, समृद्धि और विकास का मार्ग दुष्टों के दमन, भितरघातियों के मान मर्दन- संहार एवं शत्रुओं के सम्पूर्ण सर्वनाश से ही प्रशस्त होगा, वर्ना यह सिर्फ बाधाएं उत्पन्न करेंगे, षड्यंत्र रचेंगे। निरंतर युद्ध में उलझा शासक जनहित के कार्यों को करने और जनहित रक्षक होने के बावजूद शासन सत्ता से सिर्फ इसलिए दूर हो जाता क्योंकि राजमहल के षड्यंत्रों, युद्ध के कारण वो आम जनता से दूर हो जाता है।
भोर हो ही गई अब निकलना ही होगा गंतव्य की तरफ क्योंकि वक़्त कम है और दुश्वारियाँ अत्यधिक .......
एक बात बताऊँ इस जिंदगी के सफर के समर में पहले उम्मीद थे अब विश्वास हो तुम
सुनो सुनो ......
तुम्हारी चिंता है फिर से सरकार बनाना लेकिन अब हमारा फैसला है सबसे पहले समाजवादी पुरोधा नेता जी मुलायम सिंह यादव - राष्ट्रीय अध्यक्ष के चेहरे पर रौनक लाने की फिर सरकार तो बनेगी ही नेता जी के नेतृत्व में ........
सरकार और सत्ता - पद, प्रतिष्ठा, कुर्सी प्राप्ति और जबरन कब्जेदारी से लाख गुना बेहतर है अपने पिता, अपने बुजुर्ग, अपने अभिभावक, अपने अगुआ के स्वाभिमान - सम्मान की रक्षा करना और उनका स्नेह - प्यार - विश्वास - सानिध्य हासिल करना।।
पुनः लिख रहा हूँ ताकि सनद रहे — बगैर नेता जी के क्या हासिल होगा ?
एक प्रसन्नता की बात तो है समाजवादी साथियों — चिरकुट प्रवृति के जो लोग नेता जी की हैसियत और रुतबे पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे थे वे अब नेता जी के नेतृत्व को स्वीकार रहे हैं, लेकिन इनके इस छलावे में हमें आना नही है। यह अपराधी हैं नेता जी के — ये अपराधी हैं हमारे समाजवादी पुरोधा हमारे बुजुर्ग आदरणीय मुलायम सिंह यादव के .,, इनको इनके इस अपराध का दंड मिलेगा ही सिर्फ निर्णय हो जाने दो .....
और बात करते हो संख्या बल की पुनः लिख रहा हूँ मत करो वे बातें जो चुभती हैं धरतीपुत्र को ....
लिखूँगा संख्या बल पर भी लेकिन इच्छा है कि लिखने की नौबत न आये .....
जय समाजवाद - जय मुलायम - डॉ लोहिया अमर रहे— अरविन्द विद्रोही


