ये देश है अंबानी-अडानी का
विवेक दत्त मथुरिया
उर्जित पटेल के अंबानी कनेक्शन व सिफारिश और केन्याई नागरिक होने के सवालों पर मीडिया की खामोशी उसकी गुलामी की दास्तां बयां कर रही है।
शिलाजीत खाकर कथित राष्ट्रवाद का अलाप रागने वाले एंकरों की जुबान को उर्जित पटेल से जुड़े विवादों पर लकवा मार गया।
एक विदेशी नागरिक जो अंबानी का मुलाजिम रह चुका है, उसके हवाले देश का खजाना किया जा रहा है।

यही है संघ और भाजपा का राष्ट्रवाद?
यह भी गहरी पड़ताल का सवाल है रघुराम राजन को लेकर सनसनी स्वामी का अभियान रिलायंस प्रायोजित थी?
जब अंबानी के मुलाजिम रहे दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग जनता की चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने दे रहे, वही सवाल बतौर आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को लेकर खड़ा हो गया है।
जो सरकार देश के किसानों की उपेक्षा कर अडानी के दाल कारोबार को ताकत देने के लिए मोजांबिक में तमाम सहूलियतों के वादों की गारंटी वहां किसानों को देकर दाल उत्पादन करने का करार करती है, वह किस तरह का राष्ट्रवाद है?
अंबानी-अडानी के हितों के संरक्षण की प्रतिबद्धता और उसके लिए काम करना मोदी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है।
अच्छे दिन तो कॉरपोरेट घरानों के आ गए हैं जो 'राम नाम की छूट है, लूट सके तो लूट...' की कहावक को चरितार्थ कर रहे हैं।

जनता अब बीते दिनों को जीवन का स्वर्णिम अतीत मानकर याद कर रही है।
आज राजनीति अर्थशास्त्र से तय होती है, जिसके कब्जे में खजाना उसके कब्जे में देश। और देश के खजाने की चाबी रिलायंस इंडस्ट्रीज के वफादार मुलाजिम रहे अर्थ उर्जित पटेल के हाथों में सौंपने का निर्णय मोदी सरकार कर चुकी है।
अफसोस मीडिया का मौन उसकी बेबसी को बयां कर रहा है। इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि आने वाले दिनों में रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति और अर्थ व्यवस्था का चरित्र कैसा रहेगा?

महंगाई और भ्रष्टाचार पर सरकार के मौन से समझा जा सकता है।

जनता की चुनी हुई मोदी सरकार लोकतंत्र के नाम पर अब तक सबसे बड़ा छलावा है, जिसके पैर जमीन पर नहीं और हवा में लटके आसमान की ओर सिर उठा कर झूछ बोलने में लगी है।
गत दो साल से मोदी सरकार कॉरपोरेट घरानों की हर संभव मदद का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रही जबकि जनता के बुनियादी सवालों की घोर उपेक्षा की जा रही है।
सरकार की नीतियों से यह अंबानी अडानी का देश बनता जा रहा है।