ये युद्ध नहीं आसां... इतना तो समझ लीजे
ये युद्ध नहीं आसां... इतना तो समझ लीजे
ये युद्ध नहीं आसां...
राजेंद्र शर्मा
उड़ी में सैन्य शिविर पर आतंकी हमले के जवाब में, सितंबर की आखिरी से पहली सुबह हुई भारत की कथित ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के पांच दिन बाद भी करुण रूप से विडंबनापूर्ण स्थिति बनी हुई है।
विडंबना यह है कि भारत इसका दावा कर रहा है कि उसने सीमा पार, पाकिस्तान नियंत्रित क्षेत्र में आतंकवादी लांच पैडों पर हमला कर, अच्छी-खासी संख्या में आतंकवादियों को मारा या घायल कर दिया है।
दूसरी ओर पाकिस्तान, उतने ही जोर-शोर से अपनी सीमाओं के अंदर ऐसे किसी भी प्रहार से इंकार कर रहा है। हां! उसने भारत पर सीमा पर युद्ध विराम का उल्लंघन कर गोलाबारी करने का आरोप जरूर लगाया है, जिसमें उसके उसने अपने सैनिकों के मारे जाने की भी शिकायत की है।
विडंबना को गहरा करते हुए, संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से जब यह कहा गया कि नियंत्रण रेखा पर तैनात उसके प्रेक्षकों ने भारत की ओर से ऐसा कोई अतिक्रमण सीधे दर्ज नहीं किया था, तो संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधि को बाकायदा उसका खंडन ही करना पड़ा।
इस बीच पाकिस्तान बसों में भरकर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया प्रतिनिधियों को वे इलाके दिखाने ले गया है, जहां उसके दावे के अनुसार भारत ने कथित कार्रवाई की बात कही है और जहां ऐसी किसी कार्रवाई के निशान नहीं दिखाई दे रहे थे।
दूसरी ओर, भारत अपनी कार्रवाई के किसी भी तरह के साक्ष्य ही नहीं, आधिकारिक रूप से कार्रवाई से लेकर हताहतों की संख्या तक के विवरण देने से भी बचता ही रहा है। इस सबके चलते ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के भारत के दावों को अंतर्राष्ट्रीय जगत में और खासतौर पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में, कम से कम संदेह से परे मानकर नहीं चला जा रहा है।
फिर भी यह मानने का शायद ही कोई कारण हो कि कथित सर्जिकल स्ट्राइक की बात पूरी तरह कपोल-कल्पना है। इस सिलसिले में सूत्रों के रास्ते से अनौपचारिक रूप से सामने आए अलग-अलग विवरणों को लेकर उठाए गए सवाल तब और भी अप्रासांगिक हो जाते हैं, जब हम इस तथ्य को भी हिसाब में लेते हैं कि यह भारत की ओर से इस तरह की कोई पहली कार्रवाई नहीं थी। उल्टे, पिछली यूपीए सरकार के राज में 2013 में की गयी ऐसी ही कार्रवाई समेत, अब तक दसियों बार नियंत्रण रेखा के पार ऐसी जवाबी कार्रवाइयां की गयी हैं। लेकिन, जो चीज सितंबर की आखिरी तारीखों में हुई कार्रवाई को अब तक की ऐसी सभी कार्रवाइयों से अलग करती है, वह है इस कार्रवाई का भारतीय सेना तथा राजनीतिक प्रतिष्ठïान द्वारा अपनी कार्रवाई के रूप में स्वीकार किया जाना।
इससे पहले तक, ऐसी सभी कार्रवाइयों पर आधिकारिक रूप से भारत या तो चुप्पी साधे रहता था या उनसे इंकार ही कर दिया जाता था। इस बार भारत के खुद आगे बढ़कर ऐसी कार्रवाई का दावा किए जाने से, यह कार्रवाई गुणात्मक रूप से भिन्न रूप तथा भूमिका ले लेती है।
जहां अब तक की ऐसी सभी कार्रवाइयों का मकसद, सीमा पार से होने वाली कार्रवाइयों का ‘जवाब’ देना हुआ करता था, अब इस कार्रवाई ने भारतीय शासन की ओर से, पाकिस्तान के लिए, जिसमें सेना समेत पाकिस्तानी शासन से लेकर, प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से संरक्षणप्राप्त आतंकवादी गुट तक शामिल हैं, इसके कठोर औपचारिक संदेश का रूप ले लिया कि उसे उड़ी जैसे हमलों की कीमत चुकानी पड़ेगी।
यहां आकर सैन्य पहलू से कीमत चुकाने का तत्व, जो इससे पहले की ऐसी सभी कार्रवाइयों में भी मौजूद रहा होगा, गौण हो जाता है, औपचारिक संदेश का तत्व प्रधान हो जाता है। लेकिन, विडंबना यह है कि पाकिस्तान, सर्जिकल स्ट्राइक को ही झुठलाकर, इस संदेश को ही नकारने में लगा हुआ है।
वैसे ऐसी कार्रवाइयों के मामले में सितंबर से पहले तक की स्थिति और पाकिस्तान के अब भी ऐसी कार्रवाई को तथा इसलिए उसके संदेश को भी झुठलाने, दोनों के परिणाम एक जैसे हैं। यह दोनों ओर से सीमा पार कार्रवाई से होने वाले तनाव तथा टकराव के बावजूद, उसे दोनों देशों के बीच औपचारिक रूप से टकराव का रूप लेने की दिशा में बढ़ने से रोकता है।
इसके विपरीत, मोदी सरकार का सीमा पार ऐसी कार्रवाई करने का एलान, अगर अन्य कदमों से उसके प्रभाव को रोका नहीं जाए तो, दोनों देशों को ऐसे औपचारिक टकराव की दिशा में धकेलने का ही काम कर सकता है।
कहने की जरूरत नहीं है कि अगर पाकिस्तान, भारत की स्ट्राइक से इंकार ही नहीं कर रहा होता, तो उस पर तथा खासतौर पर उसकी सेना पर, इस कार्रवाई का तुर्की ब तुर्की जवाब देने का ऐसा दबाव होता, जिससे वह चाहकर भी बच नहीं सकता था।
बेशक, पाकिस्तान के इस इंकार के बावजूद, ऐसी कार्रवाई का दबाव कम नहीं है, जिसका अंदाजा दोनों देशों के बीच की नियंत्रण रेखा व अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर, युद्ध विराम के उल्लंघन की घटनाओं में आयी तेजी तथा बारामुला में राष्ट्रीय राइफल्स/ सेना के शिविर पर आतंकी हमले की घटनाओं से लगाया जा सकता है।
इसके बावजूद, सीमा पार कार्रवाई के भारत के दावे को पाकिस्तान के सच मानने की सूरत में, जवाबी कार्रवाई का यह दबाव कई गुना बढ़ गया होता।
वास्तव में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस दबाव और उससे जुड़े टकराव के बढ़ने के खतरों और उनसे बचने की जरूरत का, ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के अपने सारे प्रचार के बावजूद, मौजूदा भारत सरकार को भी एहसास है। तभी तो 29 सितंबर की कार्रवाई के फौरन बाद, डीजीएमओ ने पाकिस्तान के अपने समकक्ष से सीधे संपर्क कर, उसे इस कार्रवाई की जानकारी ही नहीं दी थी, उसे इसका भी भरोसा दिलाया था कि भारत की ओर से बस इतनी ही कार्रवाई होनी थी।
जहां पाकिस्तान के डीजीएमओ को कार्रवाई की जानकारी देना, पहले से भिन्न इस बार घोषित रूप से सीमा पार कार्रवाई करने की वृहत्तर कार्यनीति का हिस्सा था, जिसका विस्तार सेना तथा सरकार द्वारा उक्त कार्रवाई का श्रेय लिए जाने में हुआ, वहीं पाकिस्तान को इसका भरोसा दिलाया जाना कि बस इतनी ही कार्रवाई होनी थी, टकराव को सीमित रखने की चिंता से संचालित था।
भारत सरकार जहां यह जताना चाहती है कि वह उड़ी जैसे आतंकी हमलों का सीमा पार कर के भी जवाब देगी, वहीं वह यह भी बताना चाहती है कि उसकी तरफ से इस चक्र में हिसाब बराबर हुआ और इसलिए, सीमा पर टकराव बढ़ने का कोई कारण नहीं है।
युद्ध के बिना ही लाखों लोगों को विस्थापन की तकलीफ का सामना करना पड़ रहा
अचरज नहीं कि कथित सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सीमा पर बढ़ते टकराव के बीच, दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बात हुई है, जिसमें जाहिर है कि टकराव कम करने पर ही बात हुई होगी।
इसके बावजूद, न सिर्फ सीमाओं पर टकराव बढ़ा है बल्कि टकराव बढ़ने का पूर्वानुमान कर, दोनों ओर से सीमावर्ती इलाकों से नागरिक आबादी को हटाया गया है, ताकि नागरिक जानों का नुकसान कम से कम किया जा सके।
जाहिर है कि इसी तरह से माल यानी घरों, फसलों, मवेशियों आदि के नुकसान से नहीं बचा जा सकता है। युद्ध के बिना ही लाखों लोगों को विस्थापन की जिस तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है, वह इस विडंबना को करुण बनाता है।
दुर्भाग्य से ‘मुंह-तोड़ जवाब’ के जोश में इस भारी कीमत को हिसाब में लिया ही नहीं गया लगता है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि आतंकी ठिकानों पर सीमा पार कर स्ट्राइक करने न करने से अलग, ऐसी स्ट्राइक के श्रेय के दावे के साथ, न सिर्फ उक्त कीमत अनिवार्य रूप से जुड़ी हुई है बल्कि टकराव के बढ़ने की अपरिहार्यता भी जुड़ी हुई है, जिस पर अंकुश रखना आसान नहीं होगा।
हां! जब तक पाकिस्तान इस स्ट्राइक को ही नकार रहा है, टकराव बढ़ने की अपरिहार्यता पर भी अंकुश लगा हुआ है।
इस लिहाज से कथित सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय लेने की मोदी सरकार की रणनीति, जिसके नतीजों का सामने आना अभी शुरू ही हुआ है, वस्तुगत रूप से सिर्फ पाकिस्तान को ही नहीं, हमारे देश को भी काफी महंगी पड़ सकती है। पर मोदी सरकार का सारा ध्यान तो भारत में अपने समर्थक-आधार को सचमुच छप्पन इंच की छाती की मौजूदगी का भरोसा दिलाने पर ही लगा नजर आता है। उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के अगले पांच-छ: महीने में होने वाले चुनावों के लिए, छप्पन इंच की छाती का यह प्रदर्शन और भी जरूरी है। इसका भारत-पाकिस्तान संबंधों पर, वास्तव में सीमा पार से आतंकवाद की समस्या पर और खुद भारतीयों के एक हिस्से पर, वास्तव में क्या असर पड़ेगा, इसकी चिंता करने की फुर्सत सत्ता में बैठे स्वयंसेवकों को कहां! 0


