मसीहुद्दीन संजरी

पहले आसाराम फिर रामपाल और अब गुरमीत राम रहीम। संत और यौन शोषण का अपराध अपने आप ही शर्मिंदा करने वाला है। ऊपर से कानून और संविधान की धज्जियां उड़ाते भक्त वह भी अपने गुरू के इशारे पर। अब तक 30 लोगों की मरने खबर आ चुकी है और निश्चित है कि यह संख्या बढ़ने वाली है, सरकारी और निजी सम्पत्तियों का नुकसान सो अलग।

आखिर यह बाबा इतने ताकतवर कैसे बन जाते हैं कि सत्ता और प्रशासन के लिए चुनौती बन जाएं? सीधी सी बात है, सत्ता में उनकी पैठ। गुरमीत को मिली ज़ेड प्लस सुरक्षा इसका जीता जागता सबूत है।

सन् 2002 में गुरमीत पर अपनी शिष्या के यौन शोषण का आरोप लगा, मुकदमा कायम हुआ लेकिन ज़ेड प्लस सुरक्षा भी मिली। यह सब सत्ता और धर्म या कहिए कि राजनीति और धर्म का मिला जुला गोरख धंधा है।

साध्वी का आरोप था कि यौन शोषण से पहले गुरमीत ने उससे कहा था कि "सत्ता में मेरी गहरी पकड़ है। तुम्हारे घर वालों की नौकरियां खत्म करवा दूंगा। उन्हें बर्बाद करवा दूंगा। नेताओं को पैसा देता हूं। वोट दिलाता हूं। तुम्हारी कहीं कोई नहीं सुनेगा। चाहूं तो तुम्हें गोली मार दूं, तुम्हारा अंतिम संस्कार कर दूं। तुम्हारा परिवार मेरा भक्त है मुझ पर आंख बंद करके भरोसा करेगा"।

ऐसे में पडित जवाहर लाल नेहरू की दूर दर्शिता का कायल होना पड़ेगा। धर्म और धर्म गुरूओं से दूरी बना कर रखने की उनकी नीति का पालन किया गया होता तो शायद कोई धर्मगुरू सत्ता का करीबी होने का फायदा उठा इतना ताकतवर नहीं हो जाता कि खुद उसी के लिए भस्मासुर बन जाता। शायद इसीलिए पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि भारत का राष्ट्रपति किसी धार्मिक समारोह में शामिल होने के लिए सोमनाथ मंदिर जाए। राजेंद्र प्रसाद फिर भी गए थे। जो लोग पंडित नेहरू की उस राय को धर्म के विरूद्ध मानते थे उनके लिए इस घटना में एक सबक है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो कल को उ०प्र० में भी ऐसी घटना हो सकती है। हो सकता है कि पूरे देश के योगोन्मादी ऐसी ही किसी घटना के बाद सड़कों पर इसी तरह तांडव करते फिरें। योगा के प्रचार में तो पूरी सरकार लगी हुई है। हजारों करोड़ रूपये खर्च किए गए। जमीन एलाट की गई। योग गुरूओं का कद तो इससे बढ़ ही जाएगा। वह नए आसाराम, रामपाल या गुरमीत राम रहीम नहीं बनेंगे इसकी क्या ज़मानत है।