रंग दे बसंती चोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. ब्राह्मणवाद की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला.
रंग दे बसंती चोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. ब्राह्मणवाद की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला.
फिर वही सरफरोशी की तमन्ना है
कायनात भी वहीं हैं, मुल्क की सरजमीं भी वही है
आर एस पर हल्ला बोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला.
रंग दे बसंती चोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला.
ब्राह्मणवाद की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला.
फोटोशॉप की सरकार की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला .
सड़कें बोल रही हैं जुबान मुहब्बत की
अब सारी दीवारें ढहाने का वक्त है!
हमें टुकड़ा-टुकड़ा हिंदुस्तान नहीं,
इंसानियत का मुकम्मल मुल्क चाहिए!
मुल्क ने फिर अंगड़ाई ली है!
फिर रंग दे वसंती चोला है!
अब तो यकीन मान लें दोस्तों कि शहीदे आजम भगत सिंह मरे नही हैं और न मरे हैं हमारे ख्वाब। न आजादी का सर कोई कुचल सके हैं और न गुलामगिरि की जंजीरें गहने बन सके हैं।
गांधी अगर मरे होते तो फिर फिर नाथुराम को जिंदा बनाने की जरूरत न होती।
अगर हमारे बाबासाहेब मरे होते तो भव्य राममंदिर में उन्हें दफनाने का चाकचौबंद इंतजाम नहीं होता।
अगर दाभोलकर, पनसारे, कलबुर्गी मरे होते तो हजारोहजार ये जवां हुजूम जाति उन्मूलन के खिलाफ नारे बुलंद नहीं कर रहा होता।
हिंदुस्तान की कसम खाने वाले लोगों, सरहदों में कैद लोगों, दीवारों में महाभारत मंडल कमंडला का रचकर इस जन्नत को दोजख बनाने वाले लोगों गौर से देखो कि हमारे जिगर के टुकड़े, हमारे कलेजे के टुकड़े बदलाव के नारे बुलंद कर रहे हैं और मुल्क को कत्लगाह में तब्दील करने वालों के खिलाफ तारीक न रचा है उनका किरदार।
हमारे कलेजे के टुकड़ हर्गिज नहीं हारेगें।
हमारी आंखों की रोशन पुतलियां कटकटेले अंधियारे में भी भोर का आगाज करेंगी और हमारा मुल्क इंसानियत का मुकम्मल मुल्क होगा। अंधेरे के तमाम विषेले जीवों जंतुओं की जहर सुनामी के खिलाफ आज सड़क पर मार्चाबंद गोलबंद हैं हमारे कलेजे के टुकड़े।
फिर सरफरोशी की तमन्ना है। फिर इंकलाब है।
सियासत की हाथीदांत मीनारों में गहरी पैठी मनुस्मृति देख लें कि उनके बंटवारे की बुनियाद पर खड़ा तिलिस्म अब ढहने को ही है।
बिटिया जिंदाबाद। हमारी तमाम बिटिया हर जुलूस के आगे आगे हैं। उनके हाथों में मशालें हैं। वे रोशनी के सितारे हैं आसमान के फरिश्ते। हमारी माताओं, बहनों और बेटियों की अस्मत की कसम है नौजवानों कि अब कयामत का यह मंजर बदलना चाहिए।
फिर सरफरोशी की तमन्ना है। फिर इंकलाब है।
फिर सरफरोशी की तमन्ना है। फिर इंकलाब है।
हाथों में हाथ लेकर देखो, दो कदम साथ साथ चलकर देखो, तो देख भी लो शैतानी दोजख में कैसे जलकर खाक होते हैं वे जो इस मुल्क को दोजख बनाने पर आमादा हैं।
सड़कें बोल रही हैं जुबान मुहब्बत की
अब सारी दीवारें ढहाने का वक्त है!
हमें टुकड़ा-टुकड़ा हिंदुस्तान नहीं,
इंसानियत का मुकम्मल मुल्क चाहिए!
मुल्क ने फिर अंगड़ाई ली है!
फिर रंग दे वसंती चोला है!
हमें इन बच्चों पर फक्र हैं जिनने सियासत को हरा दिया है।
सड़क पर तमाम झंडों का रंग एकाकार कर दिया है और इंसानियत का मुकम्मल नक्शा खींचा है।
सड़कें बोल रही हैं जुबान मुहब्बत की
अब सारी दीवारें ढहाने का वक्त है
हमें टुकड़ा टुकड़ा हिंदुस्तान नहीं
इंसानियत का मुकम्मल मुल्क चाहिए
हमें कोई आधा अधूरा कश्मीर नहीं चाहिए।
हमें टुकड़ों में बंटा मुल्क नहीं चाहिए।
हमें इंसानियत को बांटने वाली सियासत नहीं चाहिए।
हमें इंसानियत को बांटने वाला मजहब नहीं चाहिए।
हमें कश्मीर चाहिए तो कश्मीर के हर इंसान के लिए उनके हक हकूक चाहिए।
हमें सोनी सोरी के लिए उतना ही न्याय चाहिए जितना कि खुदकशी कर रहे किसानों को चाहिए, जितना कि बेदखल होते जल जंगल जमीन को चाहिए, कटे हुए बेरोजगार हाथों को चाहिए।
हमें रोहित वेमुला के लिए उतना ही न्याय चाहिए जिसका हकदार देश का चप्पा-चप्पा है। जिसका हकदार हर मेहनतकश है।
हमें रोहित वेमुला के लिए जितना इंसाफ चाहिए, उतना ही इंसाफ इरोम शर्मिला और नंगी होकर आजादी की मांग कर रही मणिपुर की माताओं को चाहिए। हमें जुल्मोसितम के इस कयामती मजर से रिहाई चाहिए कि आजादी की जंग अभी खत्म हुई नहीं है।
हमें उतनी ही आजादी नागौर में ट्रैक्टर से कुचल दी गयी औरतों के लिए चाहिए या रोज-रोज बलात्कार की शिकार मां बहन बेटी की बेइज्जत अस्मत को चाहिए।
हमें कामदुनी के लिए उतना ही न्याय चाहिए जितना न्याय उजाड़े गये आदिवासियों को चाहिए, जिनकी लाशों पर तामीर है उनकी सियासत का शीश महल।
सत्तर के दशक में हमारी पीढ़ी के साथ बाबासाहेब नहीं थे।
हम तब आधी अधूरी मुल्क की आधी अधूरी लड़ाई लड़ रहे थे और इसीलिए सियासत में जमींदोज हो गये।
मुकम्मल इंसानियत के मुल्क के लिए सियासत की शिकस्त जरूरी है। मुकम्मल हिदुस्तान के लिए फिर भगत सिंह चाहिए।
हमारे बच्चे हमारे पुरखों की पूरी विरासत के साथ कदम कदम साथ साथ हैं।
उन्हें नीला सलाम।
उन्हें लाल सलाम।
जयभीम कामरेड।
हमारी जान, हमारा खून, हमारी हड्डियां उन्हीं के नाम।
यही विरासत की खुशबू हमारी वसीयत है।
यही विरासत हमारी सियासत है।
यही विरासत हमारा मजहब है।
इंसानियत के अलावा हमारी कोई सियासत नहीं है।
इंसानियत के अलावा हमारा कोई मजहब नहीं है।
इंसानियत के अलावा हमारी कोई पहचान नहीं है।
इंसानियत के अलावा हमारा कोई वजूद नहीं है।
न रोहित वेमुला की कोई जात है।
न कन्हैया की कोई जात है।
और न खालिद की कोई जात है।
जात के नाम बेइज्जती नहीं चाहिए।
हमें जिहाद नहीं चाहिेए और न हमें कोई मजहबी मुल्क चाहिए।
अब मौका है कि बाबासाहेब का मिशन पूरा हो।
अब सही मौका है कि हमारे कलेजे के टुकड़े जात पांत को खत्म करके, सियासत को करारी शिकश्त देकर हर आंधी तूफान के मुखातिब हैं।
सात दशक बाद यह पहला मौका है।
हाथ से जाने न दें, साथी।
हाथों में हाथ रखें।
मानव शृंखला बना लें।
मुहब्बत के इस पैगाम को बैरंग न होने दें।
अब मौका है कि बाबासाहेब का मिशन पूरा हो।
अब सही मौका है कि हमारे कलेजे के टुकड़े जात पांत को खत्म करके, सियासत को करारी शिकश्त देकर हर आंधी तूफान के मुखातिब हैं।
फिर वही सरफरोशी की तमन्ना है।
फिर वही इंकलाब है।
हमें टुकड़ों में बंटा मुल्क नहीं चाहिए।
हमें इंसानियत को बांटने वाली सियासत नहीं चाहिए।
हमारे बच्चे बाबासाहेब, गांधी और भगत सिंह के साथ हैं और उनकी यह चीख कि गुलामी का यह मंजर बदलना चाहिए, जुल्मोसितम से आजादी चाहिए, जाति व्यवस्था से आजादी चाहिए, मुक्त बाजार से आजादी चाहिए, हर इसान को इंसान का दर्जा चाहिए, समता चाहिए, न्याय चाहिए, वक्त की पुकार है।
जालिम चाहे तो किसी शख्स को कुचल कर रख दें।
वक्त को कुचल सके ना कोई।
कायनात तरक्कीपसंद है और इतिहास पीछे नहीं मुड़ता और न ज्ञान विज्ञान में अंधेरे की कोई गुंजाइश है।
सर चाहे कोई काट लें, मजहब की सबसे बड़ी सीख यह है कि मुहब्बत जिंदा है।
मौत वजूद मिटा दें तो रुह फिर आजाद है।
शहादतें और कुर्बानियां फिर बेकार नहीं होतीं कभी, वे कायनात की रहमतों नियामतों बरकतों में तब्दील हैं।
कायनात भी वहीं हैं, मुल्क की सरजमीं भी वही है
फिर वही सरफरोशी की तमन्ना है
जुल्म की इंतहा हो गयी है और
अब ये हालात बदलने चाहिए
हंगामा खड़ा करना मकसद नहीं
कयामत का यह मंजर बदलना चाहिए
अब भी बहुत हैं सर, बाजू भी बहुत
कातिलों में दम कहां कि मुल्क से
मुहब्बत करने वालों का मिटा दें नामोनिशां
सड़के बोल रही हैं जुबान मुहब्बत की
अब सारी दीवारें ढहाने का वक्त है
हमें टुकड़ा-टुकड़ा हिंदुस्तान नहीं
इंसानियत का मुकम्मल मुल्क चाहिए
आर एस पर हल्ला बोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. रंग दे वसंती चोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. ब्राह्मण वाद की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. फोटोशॉप की सरकार की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला .
हजारों छात्रों नागरिकों ने देश के कोने कौने से आकर विचारधाराओं और मंचों का भेद भुलाकर एक साथ आए, अम्बेडकर भवन दिल्ली से जन्तर मन्तर तक मार्च किए और रोहित वेमुला के हत्यारों को सजा देने की आवाज गूंजी।
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विभिन्न विश्वविद्यालयों में छात्रों के अधिकारों पर हमलों के खिलाफ, कन्हैया की गिरफ्तारी के खिलाफ, छद्म देशभक्ति के खिलाफ, साम्प्रदायिकता के खिलाफ, देश भर की बेचैनी फिर उभर कर सामने आई।
आर एस पर हल्ला बोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. रंग दे वसंती चोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. ब्राह्मण वाद की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. फोटोशॉप की सरकार की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला .
शहादतें और कुर्बानियां फिर बेकार नहीं होतीं कभी, वे कायनात की रहमतों नियामतों बरकतों में तब्दील हैं।
कायनात भी वहीं हैं, मुल्क की सरजमीं भी वही है
फिर वही सरफरोशी की तमन्ना है
जुल्म की इंतहा हो गयी है और
अब ये हालात बदलने चाहिए
हंगामा खड़ा करना मकसद नहीं
कयामत का यह मंजर बदलना चाहिए
अब भी बहुत हैं सर, बाजू भी बहुत
कातिलों में दम कहां कि मुल्क से
मुहब्बत करने वालों का मिटा दें नामोनिशां
सड़के बोल रही हैं जुबान मुहब्बत की
अब सारी दीवारे ढहाने का वक्त है
हमें टुकड़ा टुकड़ा हिंदुस्तान नहीं
इंसानियत का मुकम्मल मुल्क चाहिए
आर एस पर हल्ला बोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. रंग दे वसंती चोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. ब्राह्मण वाद की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला. फोटोशॉप की सरकार की पोलें खोला, रोहित वेमुला, रोहित वेमुला .


