राजनीति का मतलब जलूस दर जलूस
राजनीति का मतलब जलूस दर जलूस
आनन्द बल्लभ उप्रेती
राजधानी देहरादून से लेकर राज्य के सभी शहरों, कस्बों और गाँवों तक में मिशन 2012 की तैयारियों के लिये राजनैतिक पार्टियों ने तैयारी कर डाली हैं। इस तैयारी में पदों का बँटवारा और फिर जलसे-जुलूसों के बहाने शक्ति प्रदर्शन का दौर जारी है। इस समय राज्य के मुख्य शहरों का हाल जुलूसों से बेहाल है। देहरादून, पौड़ी, हरिद्वार, रुड़की, रुद्रपुर, हल्द्वानी, नैनीताल, काशीपुर सहित कोई स्थान ऐसा नहीं छूटा है, जहाँ मनोनीत प्रतिनिधियों के जुलूस के बहाने बैनर-पोस्टर और झण्डे न लगाये गये हों। हाल यह हो चुका है कि स्वागत-सत्कार के बहाने सड़क खोदकर शहरों की यातायात व्यवस्था को अराजकता में बदलने में कोई दल पीछे नहीं है। कोई सत्ता पक्ष द्वारा लालबत्ती मिलने की खुशी में जुलूस निकाल रहा है तो कोई विपक्षी पार्टी में किसी पद को पाकर जुलूस निकालने में शक्ति दिखा रहा है। अपनी शक्ति प्रदर्शन का रौब विपक्ष को दिखाने से भी ज्यादा अपनी ही पार्टी के बड़े नेताओं और आम जन के बीच दिखाने के लिये ऐसे आयोजनों को प्रश्रय मिला है। बताया जाता है कि इस समय राज्य में इस प्रकार के ढाई सौ से ज्यादा जुलूस एक पखवाड़े में हो चुके हैं। जलूसों की भूमिका बनाने के लिये इतना ही पर्याप्त माना जाता है कि कोई नेता प्रथम बार किसी स्थान पर पहुँच रहा है। किसी प्रकोष्ठ या किसी भी इकाई का पद मिलने तक में बड़ी शक्ल के जुलूस निकाल कर शहर में जाम लगवाना आम बात हो चुकी है। कभी सत्ता तो कभी विपक्ष के हल्ले के बीच पुलिस व प्रशासन को भी चुप रहना पड़ रहा है।
इस राजनैतिक अराजकता को आम आदमी मूक होकर देख रहा है, पुलिस और प्रशासन को इसे झेलने पर मजबूर होना पड़ रहा है। दबंगता के बल पर शहर की सड़कों को खोदने में कोई पीछे नहीं है। स्वागत के नाम पर सड़कों को खोदकर बड़े-बड़े गेट बनाने में और प्लास्टिक के झण्डे-बैनर लटकाने और बिजली के खम्भों में बोर्ड लगवाने में किसी को कोई आपत्ति नहीं है। उल्लेखनीय है कि नियमानुसार सड़क कटाई-खुदाई, विद्युत पोल पर रंगाई या बोर्ड आदि लगाने पर कार्यवाही हो सकती है। पूर्व में कुछ स्थानों पर नोटिस के बाद इनमें रोक लगाई गई थी। चुनावों के दौरान भी इन्हें हटवाया जाता है। लेकिन लगातार जब शहरों में ऐसा होने लगे तो क्या हो ? नगर पालिका द्वारा इन्हें रोका जाना चाहिये लेकिन जब नगरपालिका में चुने गये जन प्रतिनिधि ही अपने बैनर-पोस्टर लगवाने में पीछे न हों तो वह दूसरों पर कैसे रोक लगा सकते है ? पिछले दिनों इसी तरह की राजनैतिक अराजकता के परिणामस्वरूप ऐन दीपावली के दिनों रुद्रपुर में कांग्रेसियों एवं भाजपाइयों ने दंगाई हालात पैदा कर दिये और पुलिस को धारा 144 लगानी पड़ी। इसका खामियाजा आम लोगों को ही भोगने के लिए मजबूर होना पड़ा।
2012 के चुनावों के लिये दिखाई जा रही ताकत में वाहनों के काफिलों ने भी रिकार्ड तोड़ने शुरू कर दिये हैं। हाल यह है कि किसी नेता के पिछलग्गुओं की जमात ही अपनी ओर से काफी धन व्यय कर रही है। पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे को कोस भी रहे हैं, लेकिन कमी कहीं भी नहीं देखी जा रही है।
इधर यशपाल आर्य के दूसरी बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद जगह-जगह स्वागत कार्यक्रमों के बहाने भावी चुनावी तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं। इसी क्रम में श्री आर्य के गृहनगर आगमन पर उनका भव्य स्वागत का आयोजन किया गया, जिसमें पूरे शहर को सजाने के साथ ही वाहनों के काफिलों के साथ शक्ति प्रदर्शन हुआ। आर्य के स्वागत समारोह के साथ ही यह बात साफ हो गई कि अभी कांग्रेस के भीतर गुटों की तकरार बनी हुई है और ताज चाहे किसी के सर हो, बिल्डर और ठेकेदारों का घेरा उनके पीछे हो लेगा। ऐसा ही नजारा यशपाल आर्य के दूसरी बार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के स्वागत समारोह में देखने को मिला। आर्य के स्वागत में कहने को तो बड़ी भीड़ थी, लेकिन मुख्य रूप से सांसद केसी सिंह बाबा और विधायक तिलकराज बेहड़ ही पहुँचे। यशपाल आर्य को इस स्थिति तक पहुँचाने वाले एन.डी. तिवारी और तमाम ऐसे पुराने कांग्रेसियों को इस जश्न में भुला सा दिया गया। यह जानते हुए भी कि श्री तिवारी के चारों ओर लीसा, लकड़ी, बजरी चोरों का घेरा होने का शोर इस पार्टी को कितनी क्षति दे गया और गत विधानसभा चुनावों में भी हार का क्या कारण रहा, पार्टी में उन्हीं लोगों का वर्चस्व दिखाई दिया है। यशपाल आर्य सहित तमाम इस जलसे जलूस में शामिल लोग इसे शक्ति प्रदर्शन का रूप देते हुए यह समझ रहे हैं कि उनके लिए आगे का मार्ग प्रशस्त हो गया है, किन्तु आम लोग इस तरह की अराजक राजनीति से त्रस्त और शंकित दिखाई दे रहे हैं।
उत्तराखण्ड कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर लम्बी उठा-पटक के बाद आखिरकार हाईकमान को दलित वोटरों को रिझाने का कार्ड चलाना पड़ा और तर्क दिया गया कि यशपाल आर्य कभी भी आक्रामक छवि के नहीं रहे हैं। यह सच भी है कि श्री आर्य कुशल राजनेता तो जितने होंगे लेकिन उससे ज्यादा मैनेजमेंट की काबिलियत उनमें है। इसी लिए एन. डी. तिवारी के भी वह खासमखास माने जाते रहे। राज्य में सभी सांसद सीटें जीतकर कांग्रेस मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत है। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस का मुखिया पद बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। यही सब कुछ जानते हुए राज्य के बिल्डर ठेकेदार मुखिया के पीछे होना चाहते हैं। राजनीति में बढ़ती जा रही ऐसी अराजकता को देखते हुए बुजुर्ग व पुराने कांग्रेसियों ने अलग रहने में ही भलाई समझी है। यही कारण है कि जब श्री आर्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार अपने गृह नगर हल्द्वानी पहुँचे तो पुराने कांग्रेसियों ने किनारा कर लिया। पूर्व कबीना मंत्री व कांग्रेस की महत्वपूर्ण धुरी डा. इन्दिरा हृदयेश भी इस दिन बाहर थीं। बताया गया कि वह दिल्ली पार्टी की बैठक में भाग लेने गई हुई हैं। इसके अलावा भी पूरे शहर में लगे बैनर-पोस्टरों में कांग्रेस की शीर्ष नेता सोनिया गांधी के अलावा कुछ खास चित्र ही अंकित थे। स्वागत के लिये बनाये गये तोरण द्वारों और बैनरों में शहर व आसपास के कुछ सक्रिय कारोबारियों के नाम ही चर्चा में थे। स्वागत जुलूस की तैयारी इतनी ज्यादा थी कि श्री आर्य के हल्द्वानी आगमन से तीन दिन पूर्व ही शहर में बैनर-झण्डे लगा दिये गये थे। पुराने कांग्रेसियों से पूछने पर उनका कहना था कि इतनी बड़ी तैयारी तो उन्होंने प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों में भी नहीं देखी है। कुल मिलाकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद यशपाल को अभी बहुत तैयारी करनी होगी। दूसरा यह कि राजनैतिक अराजकता से त्रस्त लोगों का विश्वास किस तरह जीता जाए यह भी सोचना होगा।
साभार नैनीताल समाचार


