तनवीर जाफ़री

पिछले दिनों देश के कर्नाट्क राज्य में एक बार फिर राजनीति व संविधान के साथ एक बड़ा तमाशा होते देखा गया। राज्य की पिछली कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार सत्ता में वापस आने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं जुटा सकी तथा 224 सदस्यों की विधानसभा में मात्र 78 सीटें जीतकर दूसरे नंबर की पार्टी ही बन सकी। उधर भारतीय जनता पार्टी 104 सीटें जीतकर राज्य में सबसे बड़े दल के रूप में स्वयं को स्थापित करने में कामयाब रही। तीसरे स्थान में क्षेत्रीय दल, जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) ने 38 सीटें हासिल कर विधानसभा में अपना तीसरा स्थान बनाया जबकि बहुजन समाज पार्टी व निर्दलीय प्रत्याशी ने भी एक-एक सीट पर विजय हासिल की।

राजभवन का भरपूर दुरुपयोग किया भाजपा ने


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इसमें कोई दो राय नहीं कि बहुमत के 113 के जादुई आंकड़े को न छू पाने के बावजूद भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी तथा नैतिकता का तकाज़ा भी यही है कि भाजपा का सत्ता का दावा मज़बूत माना जाए। हालांकि कांग्रेस व जेडीएस ने पूरे चुनाव परिणाम घोषित होने से पूर्व ही एक-दूसरे को समर्थन देने-लेने पर समझौता कर लिया था।

उधर बहुमत के इस जादुई आकंड़े तक न पहुंच पाने के बावजूद भाजपा ने कर्नाट्क की सत्ता पर काबिज़ होने हेतु अपनी चौसर बिछाते हुए राजभवन का भरपूर दुरुपयोग करते हुए जल्दबाज़ी में अपने नेता बीएस येदिुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा डाली तथा राजभवन नेे मनमाने तरीके से भाजपा को बहुमत साबित करने हेतु पंद्रह दिन का लंबा समय भी दे दिया। ज़ाहिर है इतना लंबा समय केवल विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए ही दिया गया था। परंतु कांग्रेस पार्टी ने अपनी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर बैंगलोर से लेकर दिल्ली की सर्वोच्च न्यायालय तक अपनी ज़बरदस्त सक्रियता दिखाते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायाल की दख़लअंदाज़ी के बाद केवल 48 घंटे में येदिुरप्पा के बहुमत साबित करने का आदेश हासिल किया। और इसका परिणाम यही हुआ कि रेत के ढेर पर बना येदिुरप्पा की सत्ता का क़िला मात्र दो दिन में ही ढह गया।

इस घटनाक्रम के पश्चात वही हुआ जिसका सभी राजनैतिक विशलेशकों को अंदाज़ा था। राज्य में कांग्रेस व जेडीएस की सरकार बनी तथा दूसरा सबसे बड़ा दल होने के बावजूद कांग्रेस ने तीसरे नंबर वाली जेडीएस को समर्थन देकर उसके नेता कुमार स्वामी को मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव दे डाला।

क्या वाकई कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन अपवित्र है ?

बहरहाल इस समय राज्य में धर्मनिरपेक्ष विचारधारा की रक्षा के नाम पर कांग्रेस+जेडीएस गठबंधन की सरकार शपथ ले चुकी है। परंतु भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की नज़र में कांग्रेस-जेडीएस का यह गठबंधन एक अपवित्र या नापाक गठबंधन है। भाजपा प्रवक्ताओं व नेताओं केसाथ-साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी राज्य के इस सत्तारूढ़ गठबंधन को अपवित्र गठबंधन करार दिया। कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को अपवित्र या नापाक गठबंधन बताने की वजह सिर्फ़ यह है यह दोनों पार्टियां विधानसभा चुनाव में आमने-सामने थीं तथा दोनों ही दलों ने एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ा था तथा एक-दूसरे का विपक्षी होने के नाते प्रत्येक उन भाषाओं तथा हथकंडों का प्रयोग एक-दूसरे के विरुद्ध किया था जो भारतीय चुनाव में अक्सर होता आया है। तो क्या केवल इसी आधार पर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को अपवित्र गठबंधन करार दिया जा सकता है? क्या किसी दलीय गठबंधन को पवित्र या अपवित्र बताने जैसा फ़तवा देने का अधिकार अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के हाथों में है?

सबसे बड़े दल के नाते सरकार बनाने की नीति केवल कर्नाट्क तक ही सीमित है?

यदि यह मान लिया जाए कि भाजपा नेताओं का यह दावा सही है कि सबसे बड़े दल के नाते सरकार बनाने का दावा पेश करने का पहला अधिकार उन्हीं का था तो क्या यह नीति केवल कर्नाट्क तक के लिए ही सीमित है? क्या गोवा,त्रिपुरा,मेघालय व मणिपुर जैसे राज्य इस श्रेणी में नहीं आते कि वहां भी विधानसभा चुनाव उपरांत राज्य के सबसे बड़े दल को सरकार बनाने हेतु आमंत्रित किया जाता? क्या भाजपा का कश्मीर में पीडीपी के साथ किया गया गठबंधन पवित्र गठबंधन माना जा सकता है? भाजपा व पीडीपी के राजनैतिक निकाह के संदर्भ में एक बात और भी काबिल-ए-गौर है कि अक्सर देश में जब कथित राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भाजपाई नेता मुखरित होते हैं तो धर्मनिरपेक्षतावादी दलों पर खासतौर पर कम्युनिस्ट या कांग्रेस के लोगों पर कश्मीरी अलगाववादियों या अफज़ल गुरू का समर्थक होने का ठप्पा जड़ देते हैं। जबकि पीडीपी का नेतृत्व न केवल कश्मीरी अलगाववादियों के प्रति नरम रुख रखता है बल्कि पीडीपी अफ़ज़ल गुरू को भी शहीद के समान मानती है। ऐसे में भाजपा व पीडीपी के गठबंधन को क्या पवित्र या पाक गठबंधन कहा जा सकता है? इस संदर्भ में एक बात और भी क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि भाजपा व पीडीपी गठबंधन की स्क्रिप्ट एक लंबी कवायद के बाद लिखी गई थी और इसमें राष्ट्रीय स्वयं संघ की प्रमुख भूमिका थी। क्योंकि कश्मीर जैसे राज्य में सत्ता के गठन के खेल में भाजपा ने संघ पोषित अपने महासचिव राम माधव के हाथों में ही इस गठबंधन को अंतिम रूप देने की जि़म्मेदारी सौंपी थी। शायद इसी वजह से शाह की नज़रों में जम्मू-कश्मीर का भाजपा-पीडीपी गठबंधन तो पवित्र है परंतु कर्नाटक का कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन अपवित्र?

बिहार का वर्तमान ‘महापवित्र गठबंधन’

इसी प्रकार बिहार के वर्तमान ‘महापवित्र गठबंधन’ पर भी नज़र डालना ज़रूरी है। बिहार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस,जेडीयू तथा आरजेडी ने मिलकर महागठबंधन तैयार कर चुनाव लड़ा था तथा भाजपा को सत्ता से काफ़ी दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया था। राज्य का जनमत पूरी तरह से भाजपा के विरुद्ध था। नितीश कुमार के नेतृत्व में सरकार गठित हुई तथा कुछ ही समय के बाद लालू यादव पर भ्रष्टाचार संबंधी मामलों में शिकंजा कसता चला गया। इसी घटनाक्रम के बाद नितीश कुमार ने उचित समय भांपते हुए आरजेडी से फासला बनाने का फैसला लिया और भारतीय जनता पार्टी ने मौके का फायदा उठाते हुए नितीश कुमार को लपक लिया। राज्य विधानसभा चुनाव में जिस भाजपा को स्पष्ट रूप से जनता ने खारिज़ कर दिया था और जिस महागठबंधन ने भाजपा की सांप्रदायिकतावादी नीतियों के विरुद्ध चुनाव लड़ कर जीत हासिल की थी उसी महागठबंधन का जेडीयू धड़ा भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब हो गया और बिहार विधानसभा में बहुमत के जादूई आंकड़े को पार कर गया। क्या अमित शाह व उनके योग्य नेता यह बता सकते हैं कि बिहार की वर्तमान भाजपा-जेडीयू की गठबंधन सरकार पवित्र गठबंधन का प्रतीक है? क्या विपक्ष में बैठने का जनादेश पाने वाली भाजपा का महागठबंधन में दरार का लाभ उठाकर पिछले दरवाज़े से सत्ता हथिया लेना जनादेश का अपमान नहीं है?

क्या पवित्र गठबंधन की परिभाषा में बिहार, जम्मू-कश्मीर, त्रिपुरा, गोआ जैसे राज्य ही आते हैं ?

क्या पवित्र गठबंधन की परिभाषा में बिहार, जम्मू-कश्मीर, त्रिपुरा, गोआ जैसे राज्य तो आते हैं परंतु वह कर्नाट्क राज्य नहीं आता जहां कांग्रेस व जेडीएस जैसे दोनों राजनैतिक धड़े भाजपा की सांप्रदायिकतावादी नीतियों को चुनौती देते हुए देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे व संविधान की मर्यादा की रक्षा के नाम पर न केवल कर्नाट्क में एकजुट हुए हैं बल्कि भविष्य की एकजुटता का भी संदेश दे रहे हें?


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वैसे तो राजनीति में पवित्रता या नैतिकता जैसे शब्दों का प्रयोग करना ही मुनासिब नहीं लगता। राजनीति में सबसे उपयोगी व कारगर शब्द एक ही है जिसे हम सत्ता लोलुपत्ता या अवसरवादिता कह सकते हैं। प्राय: राजनैतिक गठबंधन भी इसी सत्ता लोलुपता व अवसरवाद के लिहाज़ से बनते बिगड़ते हैं। इसमें गठबंधन की पवित्रता या अपवित्रता का दावा करने जैसी हिमाक़त किसी भी दल या नेता को नहीं करनी चाहिए।

Seeking 'Purity' in Political Coalition