राजेंद्र माथुर ने हाशिमपुरा की खबर क्यों नहीं छापी ?
राजेंद्र माथुर ने हाशिमपुरा की खबर क्यों नहीं छापी ?

राजेंद्र माथुर पंजाब में आतंकवाद के दौरान हिंदुवादी नजरिये से काम कर रहे थे। समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट के साथ 10-11 दिनों पहले 26 मार्च को विभूति नारायण राय से नोएडा में उनके घर पर हाशिमपुरा केस के सिलसिले में लंबी बातचीत हुई थी।
हाशिमपुरा
के मुसलमान युवकों को घरों से इतनी बड़ी संख्या में उठाकर हिरासत में लेने के बाद
मारकर नहर में फेंक देने की इस दिल दहला देने वाली घटना को कोई अखबार छापने तक के
लिए तैयार नहीं था।
विभूति नारायण राय उस समय गाज़ियाबाद के एसपी थे। वह एक रिपोर्टर (कहानीकार अमरकांत के बेटे) के जरिये इस खबर को तैयार कराकर नवभारत टाइम्स तक पहुंचाने में कामयाब रहे।
यशस्वी
संपादक राजेंद्र माथुर अपनी संपादकीय टीम के बनवारी, रामबहादुर राय, एसपी
सिंह आदि के साथ मंत्रणा के बाद इस खबर को दबाए बैठे रहे। आखिर यह खबर चौथी दुनिया
नाम के एक छोटे अखबार में दी गई, जहां
से दुनिया भर के मीडिया ने उसे उठाया।
विभूति
नारायण राय इस बात को लेकर हैरान थे कि बनवारी और
रामबहादुर राय की राजनीतिक लाइन तो समझ में आती है पर माथुर ने क्यों इस खबर को
नहीं छापा होगा।
उन्होंने
बताया कि काफी अरसे बाद एक कार्यक्रम में माथुर के साथ मंच साझा किया तो उन्होंने
उनसे पूछा कि क्या हाशिमपुरा की खबर न छापने का उन्हें अफसोस होता है। माथुर ने
जवाब देने के बजाय सवाल को हंसकर टाल दिया।
विभूति नारायण राय का कहना था कि वे माथुर की पिछली चीजों (शायद संपादकीयों के संग्रह) को ध्यान से पढ़ चुके हैं, पर उन्हें ऐसा कुछ नहीं मिला कि जिससे माथुर का साम्प्रदायिक रुझान सामने आता हो। संभवतः वे इसे फोर्स के मनोबल गिर जाने के तर्क से देख रहे हों। हालांकि यह भी भयानक है।
मैंने
उन्हें अपने वरिष्ठ मित्रों की राय से अवगत कराया कि माथुर पंजाब में आतंकवाद के
दौरान हिंदुवादी नजरिये से काम कर रहे थे। बाकी साथ में और जो भी दबाव रहे हों पर
ऐसे में यह मानना भी मुश्किल है कि खुद उनके दिल का दबाव उन पर नहीं रहा होगा।'हस्तक्षेप' पर
यह लेख देखकर यह सब यूं ही याद आ गया।
धीरेश सैनी
(धीरेश सैनी, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। एक जिद्दी धुन उनका ब्लॉग है। यह पोस्ट उनकी फेसबुक टाइमलाइन से साभार।)
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