राम के नाम सौगंध भीम के नाम! संघ परिवार ने बाबासाहेब को भी ऐप बना दिया
राम के नाम सौगंध भीम के नाम! संघ परिवार ने बाबासाहेब को भी ऐप बना दिया
राम के नाम सौगंध भीम के नाम! संघ परिवार ने बाबासाहेब को भी ऐप बना दिया… मनुस्मृति का जेएनयू मिशन पूरा, जय भीम के साथ नत्थी कामरेड को अलविदा है। सहमति से तलाक है। बहुजनों को वानरवाहिनी बनाने वाला रामायण पवित्र धर्मग्रंथ है, जिसकी बुनियाद पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रामराज्य में मनुस्मृति अनुशासन है। सीता का वनवास, शंबूक हत्या है। अब संघ परिवार ने बाबासाहेब अंबेडकर को भी ऐप बना दिया है। डिजिटल लेन देन के लिए बनाया भीम ऐप, किया लॉन्च।
पलाश विश्वास
बावनवें
दिन नोटबंदी के पचास दिन की डेडलाइन पर अभी बेपटरी है भारत की अर्थव्यवस्था। नकदी के बिना सारा जोर अब डिजिटल कैशलैस वित्तीय
प्रबंधन पर है। राजकाज और राजकरण भी नस्ली सफाये का समग्र एजंडा है।
एफएम
कारपोरेट का दावा है कि हालात अब सामान्य हैं। परदे पर सपनों का सौदागर हैं।
बहुजनों
को वानरवाहिनी बनाने वाला रामायण पवित्र धर्मग्रंथ है, जिसकी बुनियाद पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
का रामराज्य में मनुस्मृति अनुशासन है।
अब
संघ परिवार ने बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर को भी ऐप बना दिया है। डिजिटल लेन देन के लिए बनाया भीम ऐप, किया लॉन्च। न नेट,
न फोन आने वाले
समय में सिर्फ आपका अंगूठा काफी है।आगे आधार निराधार मार्फत दस दिगंत सत्यानाश है।
भीम
ऐप हैं और निराधार आधार कैसलैस डिजिटल आधार।
नागरिकता, गोपनीयता, निजता,
संप्रभुता का
बंटाधार।
भारत
तीसरे विश्वयुद्ध में बाकी विश्व के खिलाफ अमेरिका और इजराइल का पार्टनर और ग्लोबल
सिपाहसालार ट्रंप, पुतिन साझेदार।
नाटो
का प्लान बायोमेट्रीक यूरोप में खारिज, भारत
में डिजिटल कैशलैस आधार।
सुप्रीम
कोर्ट के फैसले के खिलाफ दागी अपराधी की तरह हर कैशलैस लेनदेन पर नागरिक या बहुजन
बहुजन अपना फिंगर प्रिंट भीम ऐप से अपराधी माफिया गरोहों और कारपोरेट कंपनियों को, साइबर अपराधियों को हस्तांतरित करते रहें।भीम
ऐप डिजिटल क्रांति है। बहुजन राजनीति केसरिया है।
राजनीति
के तमाम खरबपति अरबपति करोड़पति शिकारी खामोश हैं। सर्वदलीय संसदीय सहमति है। बहुजन
भक्तिभाव से गदगद हैं, समरस हिंदुत्व है और पवित्र मंदिरों
में प्रवेश महिलाओं का भी अबाध है। समता है। न्याय भी है। संविधान है। कानून
का राज भी है। लोकतंत्र के सैन्यतंत्र में सिर्फ नागरिक कबंध दस डिजिट नंबर हैं।
कारपोरेट
इंडिया नागपुर में शरणागत है। सुनहले दिन आयो रे। छप्पर फाड़ दियो रे।
सुप्रीम
कोर्ट के फैसले के खिलाफ आधार को बुनियादी सेवा लेनदेन के लिए अनिवार्य बनाने की
इस अवमानना के लिए जयभीम ऐप लांच किया है पेटीएम प्रधानमंत्री ने।
बहुजन
समाज का नारा चुराकर संघ परिवार का नारा हैः बहुजन हिताय,
बहुजन सुखाय...
जयभीम ऐप गरीबों का खजाना है। खजाना मिला है तो सभी अलीबाबा चालीस चोर हैं। साथ में खूबसूरत गाजर भी कि अब लोग
गूगल पर भीम की जानकारी तलाशेंगे।
बहुजन
अपने बाबासाहेब की जानकारी गूगल से मांगेंगे, जहां
सारी जानकारी पर, समूचे सूचना तंत्र पर, मीडिया पर, साहित्य
संस्कृति पर, इतिहास भूगोल, मातृभाषा पर सरकारी संघी नियंत्रण है।
बहुजन
गूगल में फेसबुक, सोशल नेटवर्क के अलावा कहां हैं? वहां भी दस दिगंत सेसंरशिप है। हर प्रासंगिक
पोस्ट ब्लाक या डिलीट या स्पैम है। जाहिर है कि बहुजनों के मसीहा से बाबासाहेब को
विष्णु भगवान बनाने की तैयारी है।
गौरतलब
है कि पेटीएमपीएम कल राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं। राष्ट्र को संदेश देने से
पहले बहुजनों को संदेश दे डाला पेटीएमपीएम ने, वही
जो संघ परिवार का असल और फौरी मकसद दोनों है।
जाहिर
है कि बहुजनों की खातिर ही डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए पेटीएमपीएम ने नया
मोबाइल ऐप भीम लॉन्च किया है जो बिना इंटरनेट चलेगा।
पेटीएमपीएम
ने कहा कि सरकार ऐसी टेक्नोलॉजी ला रही है जिसके जरिए बिना इंटरनेट के भी आपका
पेमेंट हो सकेगा। गरीब का अंगूठा जो कभी अनपढ़ होने की निशानी था, वह डिजिटल पेमेंट की ताकत बन जाएगा।
पेटीएमपीएम
ने डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने वालों को सम्मानित किया। लकी ग्राहक योजना और
डिजि-धन व्यापार योजना के तहत 7, 229 विजेता
भी लकी ड्रॉ के जरिए चुने गए।
केसरिया
राजकाज का दावा है कि
भीम ऐप 2017 का देशवासियों के लिए उत्तम से उत्तम नजराना है। पहले से साफ ही था कि चिड़िया की आंख पर
ही निशाना है।
नोटबंदी
के मध्य़ यूपी में नोटों के साथ केसरिया मोटरसाईकिलों और बजरंगी ट्रकों की बरसात के
मध्य मायावती की बसपा के खजाने पर छापा। बहुजन समाज को तितर-बितर करके यूपी दखल करने का
मास्टर प्लान बखूब है। समाजवादियों के मूसलपर्व में भी किसका हाथ है, यह गउमाता की समझ से परे भी नहीं है।
राष्ट्र
के नाम संदेश शोक संदेश में चाहे जो हो, नोटबंदी
का औचित्य साबित करना मकसद कतई नहीं है। न कितना कालाधन निकला, कितनी नकदी चलन में है, कब बैंकों से एटीएम से पैसा मिलेगा, कोई हिसाब नहीं मिलने वाला है जुमलों के सिवाय। सारा जोर कैशलैस डिजिटल हंगामे पर है।
जिसका फौरी लक्ष्य यूपी दखल है।
यह
कैशलैस डिजिटल हंगामा विशुध माइंड कंट्रोल तमाशा है। ब्रेनवाश है बहुजनों का, जो कत्लेआम के जश्न के लिए अनिवार्य है। वही
फासिज्म का निरंकुश राजकाज है। राजकरण भी वही और वित्तीय प्रबंधन भी वही। अबाध
नस्ली सफाया। डिजिमेला जय भीम करतब से पहले कोलकाता में सीबीआई ने टीएमसी सांसद तापस पाल को गिरफ्तार कर लिया है।
2011 के बाद 2016 के अंत में सीबीआई एक्शन जबरदस्त है। दीदी का कालाधन भी निकलने वाला
है। संदेश राष्ट्र के नाम बदस्तूर यही है। विपक्ष को तितर बितर करने का दशकों से आजमाया
रामवाण सीबीआई छापा है। भगदड़ तो जारी है। राजनीतिक विपक्ष खत्म है। बहुजन भी शिकंजे में फंसे हैं। भीम के
नाम सौगंध है। बाकी देश गैस चैंबर या फिर मृत्यु उपत्यका है।
तापस
पाल की गिरफ्तारी के
बाद बिना नाम बताये पत्रकारों से कहा गया है कि गौतम कुंडु के साथ
प्रभावशाली कमसकम पंद्रह लोगों की बैठकें होती रही हैं और लाखों की लेनदेन भी
बारंबार होती रही हैं।वाम दावे के मुताबिक जीत के वे नोटों से भरे सूटकेसों का अभी
अता-पता नहीं है। सीबीआई के मुताबिक उन हाई प्रोफाइल बैठकों में तापस पाल भी मौजूद थे
और बाकी लोगों के बारे में वे जानते हैं। इसलिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है
क्योंकि वे सवालों के जवाब संतोषजनक नहीं दे रहे हैं।
संसद
में तृणमूल सचेतक सुदीप बंदोपाध्याय को भी सीबीआई ने तलब किया है। सोम मंगल को वे
सीबीआई के मुखातिब होंगे। आगे लंबी कतार है। जाहिर है वक्त सनसनी का है। सनसनी में
नोटबंदी का किस्सा उसी तरह रफा दफा है जैसे मनुस्मृति का किस्सा, सर्जिकल स्ट्राइक हो गया। सनसनी और धमाकों की
रणनीति से नोटबंदी का किस्सा रफा दफा करने की तैयारी है। मगर यूपी जीतने का
टार्गेट निशाना बराबर हैं। इसीलिए बाबा साहेब अब संघ परिवार का ऐप हैं। जेएनयू पर हमला भी इसी रणनीति का
हिस्सा है। बहुजन छात्रों को अलगाव में डालने का यह जबर्दस्त दिलफरेब खेल है जो
कामयाब होता नजर आ रहा है।
बहुजन
छात्र और कामरेड क्रांतिकारी दोनों एक दूसरे से निजात पाने को बौरा गये लगते हैं
और जाहिर है कि तरणहार इकलौता संघ परिवार है। जावड़ेकर धन्य हैं। धन्य है बहुजन छात्रों के निलंबन पर
कामरेडों की क्रांतिकारी खामोशी भी। कामरेड इसी तरह बहुजनों को केसरिया कांग्रेस
खेमे में हांकते रहे हैं दशकों से। क्रांति से बहुजनों का यह तलाक सहमति से है। जाहिर है कि संघ परिवार की बाड़ाबंदी
में दाखिले के बाद बहुजनों का जो होना था वही हो रहा है। भूखे शेरों की मांद में
चारा बनने के लिए बेताब बहुजनों का यही कर्मफल है। कारपोरेट इंडिया के तंत्र मंत्र यंत्र
हिंदुत्व तो पहले से था ही,
अब वह तेजी से अंबेडकर मिशन में तब्दील
हैं। मिशन के दुकानदार भले वे ही पुराने चेहरे हैं।जाहिर है कि भाजपा और संघ
परिवार के साथ साथ कारपोरेट इंडिया के नस्ली सफाये के एजंडा का असली मास्टरकार्ड
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ही हैं और अब उनका बीज मंत्र भी जयभीम है, फिर अब भीम ऐप है। क्योंकि यूपी और गायपट्टी ही
नहीं, बाकी देश की आंखें भी यूपी के नतीजों
पर टिकी है।बहुजनों की आबादी बानब्वे फीसद है।
पचास
फीसदी आबादी ओबीसी की और ओबीसी सत्ता में है तो बाकी आम जनता को हांकने के लिए
जयभीम जयभीम समां है मुक्तबाजारी कार्निवाल का। यूपी की जीत बहुजन एकता तोड़कर ही मिल
सकती है और संघ परिवार इसके लिए कुछ भी करेगा। राम से बने हनुमान पहले से
मोर्चाबंद हैं और अब मलाईदार पढ़े लिखे बहुजनों की सेवा व्यापक पैमाने पर समरसता
मिशन में ली जा रही है।
सोदपुर
हाट में एक बुजुर्ग बीएसपी नेता की किराने की दुकान है। आज हाट में गया तो उनने कहा कि यूपी में
बहनजी जीत रही हैं। वे जीतती हैं तो बाकी देश में फिर जयभीम जयभीम है। इस पर हमने
कहा कि यूपी में नोटों की वर्षा हो रही है और समाजवादी दंगल का फायदा भी संघ
परिवार को होना है। उनने बहुत यकीन के साथ कहा कि मुसलमान संघ परिवार को वोट नहीं देंगे
और वे इस बार बहनजी के साथ हैं। बहुजनों को यही खुशफहमी है। वे बंटे रहेंगे और
उम्मीद करेंगे कि मुसलमान उनके लिए सबकुछ नीला नीला कर दें। मौका पड़ा तो बहुजन
मुसलमानों का साथ भी न देंगे।हमने उनसे ऐसा नहीं कहा बल्कि हमने निवेदन किया कि
बंगाल में मतुआ और शरणार्थी सारे बहुजन हैं और वे ही सारे के सारे बजरंगी हैं तो
आप बंगाल में बैठकर यूपी के बहुजनों के बारे में इतने यकीन के साथ दावा कैसे कर
सकते हैं।
पहली
बार हमने किसी बंगाली सज्जन से सुना, बंगाल
के बहुजन बुड़बक हैं और बिहार के बहुजन भी बराबर बुड़बक हैं लेकिन यूपी के बहुजन
उतने बुड़बक भी नहीं हैं।फिर मैंने निवेदन किया कि बहन जी तो कई दफा मुख्यमंत्री
बन गयीं तो सामाजिक न्याय और समता का क्या हुआ, बाबासाहेब
का मिशन का क्या हुआ। उनने जबाव में कहा, कुछ
नहीं हुआ लेकिन आरएसएस को हराना अंबेडकर मिशन को बचाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी
है।
उनने
जबाव में कहा, भाजपा ने अगर यूपी जीत ली तो न अंबेडकर
मिशन बचेगा और न देश बचेगा।
हाट
में खड़े यह संवाद सुनते हुए एक अजनबी बुजुर्ग ने कह दिया, दो करोड़ वेतनभोगी पेंशनभोगी हैं तो सिर्फ दो
हजार नेता नेत्री हैं। नोटबंदी के बाद जिस तेजी से आम जनता तबाह है, इन दो हजार नेता नेत्रियों के पैरों तले कुचले
जाने से पहले जनता अब किसी भी दिन बगावत कर देगी।
हम
कुछ जवाब दे पाते, इससे पहले वे निकल गये।
इस
भीम ऐप से कमसकम उत्तर भारत में सामाजिक न्याय की बहुजन राजनीति का काम तमाम करना
स्वंवर का लक्ष्य है।गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक की
स्थापना बाबासाहेब की वजह से हुआ, जो
सर्वविदित सच है। इस सच को आधार बनाकर भारतीय रिजर्व बैंक की हत्या को जायज बता
रहे हैं पेटीएम प्रधानमंत्री और बहुजन गदगद हैं।
बहुजनों
के लिए मंकी बातें आज लता मंगेशकर के गाये सुपरहिट फिल्मी गानों से भी ज्यादा
सुरीली है क्योंकि सारे बोल जयभीम जयभीम है। यानी कि हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा अब
राम के नाम नहीं, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के नाम से
अंजाम तक पहुंचाने का चाक चौबंद इंतजाम है।
गौरतलब है कि भारत के किसी प्रधानमंत्री ने पहली बार इस तरह राजकाज और वित्तीय प्रबंधन अंबेडकर मिशन और अंबेडकर विचारधारा के मुताबिक चलाने का दावा किया है। पहले ही कहा जा रहा था कि नोटबंदी के लिए बाबासाहेब ने कहा था। इस पर आदरणीय आनंद तेलतुंबड़े ने लिखा हैःकहने की जरूरत नहीं है कि दलितों और आदिवासियों जैसे निचले तबकों के लोगों को इससे सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है और वे भाजपा को इसके लिए कभी माफ नहीं करेंगे। भाजपा ने अपने हनुमानों (अपने दलित नेताओं) के जरिए यह बात फैलाने की कोशिश की है कि नोटबंदी का फैसला असल में बाबासाहेब आंबेडकर की सलाह के मुताबिक लिया गया था। यह एक सफेद झूठ है। लेकिन अगर आंबेडकर ने किसी संदर्भ में ऐसी बात कही भी थी, तो क्या इससे जनता की वास्तविक मुश्किलें खत्म हो सकती हैं या क्या इससे हकीकत बदल जाएगी? बल्कि बेहतर होता कि भाजपा ने आंबेडकर की इस अहम सलाह पर गौर किया होता कि राजनीति में अपने कद से बड़े बना दिए गए नेता लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा होते हैं।राम के नाम सौगंध अब भीम के नाम।
जेएनयू
मिशन पूरा हो गया, जयभीम के साथ नत्थी कामरेड को अलविदा
है। रोहित
वेमुला की संस्थागत हत्या के बाद देशभर के छात्रयुवा जैसे जाति धर्म की दीवारें
तोड़कर जाति उन्मूलन के मिशन के साथ मनुस्मृति दहन कर रहे थे, उसका मूल मंत्र जयभीम कामरेड है। मीडिया ने नोटबंदी के पचास दिन पूरे
होते न होते जेएनयू के बारह बहुजन छात्रों के निलंबन की खबर को ब्लैकआउट करके संघ
परिवार के मिशन को कामयाब बनाने में भारी योगदान किया है। पिछली दफा भी कन्हैया के भूमिहार होने
के सवाल पर बवाल खूब मचा था। इस बार बहुजन छात्रों के निलंबन के खिलाफ सवर्ण
कामरेडों की खामोशी का नतीजा यह है कि छात्रों युवाओं के मध्य भी अब जाति धर्म की
असंख्य दीवारें इस एक कार्रवाई के तहत बना दी गयी है।गौर करें कि कैशलैस डिजिटल
इंडिया के वृंदगान के साथ संघ परिवार की तरफ से नया साल अब जयभीम जयभीम है। गोलवलकर सावरकर मुखर्जी का कहीं नाम
नहीं है। यह सीधी सी बात बहुजनों की समझ से परे हैं और चाहते हैं नीली क्रांति।
पेटीएम
के बाद अब रुपै की महिमा अपरंपार है। गौरतलब है कि बाबासाहेब के नाम कैशलैस डिजिटल
लेनदेल का इनामी ड्रा के लिए अनिवार्य शर्त अब रुपै है।
नोटबंदी से पहले भारी पैमाने पर रुपै कार्ड का पिन चुराया गया था। इस फर्जीवाड़ा का अभीतक कोई सुराग मिला नहीं है।अब इनाम के लिए रुपै कार्ड की अनिवार्यता साइबर फ्राड का जोखिम उठाने का खुला न्यौता है। पहले डिजिटल लेन देन पर छूट के ऐलान के बाद एफएम कारपोरेट ने साफ किया कि छूट डेबिट कार्ड पर मिलेगा, क्रेडिट कार्ड पर नहीं। अब कैशलेस ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने ‘लकी ग्राहक योजना’ और ‘डिजि धन व्यापार योजना’ लॉन्च की हैं।


