रामदेव का बाल बांका कर सके तो करे माई का लाल!
रामदेव का बाल बांका कर सके तो करे माई का लाल!
हरीश रावत नैनसार में पीसी की गिरफ्तारी के बाद भी सो रहे हैं और हरिद्वार में गोलियां भी चल गयीं, बाकी जिम्मेदारी उनकी, जवाबदेह भी वे ही।
#हरिद्वार #उत्तराखंड बाबा रामदेव फूड पार्क में मजदूर की मौत के बाद ग्रामीणों ने जमकर हंगामा किया।
बहरहाल हंगामा यूं बरपा है कि हरिद्वार में पदार्था स्थित बाबा रामदेव के पतंजलि हर्बल फूड पार्क के एक कर्मचारी का मशीन से हाथ कटने से मौत के बाद ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बृहस्पतिवार सुबह भीड़ ने पतंजलि फूड पार्क पर हमला बोल दिया। कई वाहन और एटीएम मशीन में तोड़फोड़ कर दी। भीड़ ने पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स को भी पथराव करके दौड़ा दिया। इसके बाद पैरामिलिट्री फोर्स और पुलिस ने भीड़ पर काबू पाने के लिए लाठीचार्ज किया। इसके बाद भी हालात नहीं संभले तो करीब 21 हवाई फायर करने पड़े। पुलिस ने 12 उपद्रवी हिरासत में लिए है। तनाव को देखते हुए भारी संख्या में पुलिस एवं पीएसी की तैनाती की गई है।
हंगामे के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने ग्रामीणों के साथ मारपीट की। ग्रामीणों ने पुलिस पर आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनके घरों में घुसकर मारपीट की है। इतना ही नहीं, ग्रामीणों का कहना है कि पुलिसवालों ने उनके साथ बदसलूकी और घरों में तोड़-फोड़ भी की है। आरोप है कि पुलिसिया बर्बरता में कई लोग बुरी तरह घायल हो गए हैं।
गौरतलब है कि देश के कोने कोने में रंगबिरंगे ब्रांड के नूडल पर संदिग्ध होने की वजह से पिछले दिनों रोक लगती रही है। अशुद्धता के खिलाफ सफाई अभियान में दूसरी चीजों की भी परख खूब होती रही है और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान अलग से है। ये तमाम कंपनियां विशुध कारोबारी हैं।
इसी बीच पतंजलि का चामत्कारिक उत्थान हैरतअंगेज हुआ इस तरह कि उसने दशकों से स्थापित लोकप्रिय ब्रांड को विशुध देशी आयुर्वेद के नाम पर पछाड़ दिया। न कोई निगरानी और न किसी रोक टोक का झमेला।
कहते हैं कि पतंजलि नूडल तो यूं ही बिना जांच पड़ताल सुपरहिट है और विज्ञापनी भाषा में बच्चे तो उस पर टूट ही रहे हैं। खाने पीने की हर चीज अब पतंजलि है विशुध।
बाकी कंपनियों की मार्केटिंग चाहे जितनी धुंआधार हो, प्रवचन, धर्म कर्म और योग समन्वित राजकाज राजनीति के आगे उनने हाथ भी खड़े कर दिये हैं।
अब बवाल करने वालों को कौन बताये कि इस देश में कामगारों के कोई हकहकूक बचे नहीं हैं और श्रम कानून कुछ बचा नहीं है।
ले देकर मामला रफा दफा करने में ही बुद्धिमानी है, लेकिन लग रहा है कि सौदेबाजी कुछ लंबी चल रही है और बवाल थम नहीं रहा है।
उधर कुमांयू में नैनसार में हमारे पुराने मित्र और उत्तराखंड संघर्षवाहिनी में मुख्यमंत्री हरीश रावत के ही हमसफर पीसी तिवारी धर लिये गये हैं।
अल्मोड़ा के डीएम कह रहे हैं कि जिस जमीन को लेकर विवाद है, वह जिंदल के नाम नहीं है। लेकिन सच यह है कि जमीन पर जिंदल का कब्जा कायदे कानून को ताक पर रखकर जिंदल ने कर रखा है और पीसी वहां अपने साथियों के साथ लगातार आंदोलन कर रहे हैं।
तो पिछले दिनों पीसी का अपहरण हो गया महिला कार्यकर्ताओं समेत और लठैतों ने मारमर कर उनकी सेहत बिगाड़ दी। पुलिस ने हमलावरों को नहीं पकड़ा और पीसी और उनके साथियों को जेल में डाल दिया।
पहाड़ के हमारे पुराने तमाम साथी नैनसार में मोर्चा जमाये हुए हैं और आंदोलन तेज होता जा रहा है। हरीश रावत को अपने अल्मोड़िये मित्र के साथ ऐसा सलूक करने में हिचक नहीं हुई तो समझ लीजिये कि पहाड़ों में हो क्या रिया है।
तराई में सिडकुल के जंगल राज में स्थानीय लोगों को कारपोरेट टैक्स माफी के आलम में रोजगार कितना मिला है, हमारे पास ऐसे आंकड़े नहीं है। हमारे साथी वहां भी वैसे ही लड़ रहे हैं जैसे आदिवासी गांवों की बेदखली के खिलाफ। हम उनके साथ हैं। रहेंगे।
पहाड़ में हमारे साथी कुछ पागल किस्म के लोग हैं। विकास पुरुष नारायण दत्त तिवारी जब मुख्यमंत्री थे उत्तर प्रदेश के अलग उत्तराखंड राज्य बनने से पहले, तब तराई में महतोष मोड़ में भूमाफिया ने बंगाली शरणार्थी औरतों से दुर्गा पूजा के दौरान सामूहिक बालत्कार किया तो इसके खिलाफ भी आंदोलन हुआ और आंदोलन पूरे पहाड़ में तराई में महिलाओं की अगवानी में हुआ।
नैनीताल में डीएसबी कालेज की प्रध्यापिकाएं भी आंदोलन में शामिल थीं तो उनने नैनीताल में मुख्यमंत्री तिवारी के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया।
तिवारी ने तो बंगाली शरणार्थियों और उनके नेताओं को जमीन से बेदखली और तराई में बंगाली शरणार्थी विरोधी आंदोलन की धमकी देकर साध लिया लेकिन पहाड़ की महिलाएं बेखौफ थीं।
तिवारी ने उन महिलाओं से कहा कि बलात्कार हुआ है बंगाली शरणारथी दलित महिलाओं से, वैणी, आपको क्यों सरदर्द है। इसकी गूंज हमें पल छिन अब भी सुनायी पड़ती है जबकि दावा यह है खुदकशी करने वाले रोहित या प्रकाश दलित नहीं था।
चेन्नई की लड़कियां दलित नहीं हैं, ऐसा दावा अभी हुआ नहीं है।
बहरहाल महोतोष कांड के खिलाफ आंदोलन थमा नहीं। वह अस्मिताओं के आरपार आंदोलन था तो रोहित माले में भी अस्मिताओं का सिक्का चलेगा, नहीं तय है।
उत्तराखंड की बागी महिलाओं के तेवर रावत जी न जानते हों, ऐसा भी नहीं है। वे खुद आंदोलनकारी रहे हैं और उन्हें मालूम है कि खटीमा और मुजफ्फरनगर कांड में मुलायम सिंह की पुलिस और गगुंडों का बहादुरी से मुकाबला करके लाठी गोली और बलात्कार की शिकार महिलाओं की वजह से ही वे मुख्यमंत्री हैं।
नैनसार से आज तीन वीडियो जारी हुए हैं और मोर्चे पर फिर बूढ़ी जवान इजाएं और वैणियां हैं। हम किसी भी कीमत पर पहाड़ में केसरिया सुनामी नहीं चाहते लेकिन इसी तरह हम किसी भी कीमत पर जनांदोलनों के खिलाफ नहीं जा सकते। हमने तिवारी और पंत के मित्र अपने पिता से भी इस मामले में कोई रियायत नहीं दी।
अब हरीश रावत जी को अगर पहाड़ को केसरिया तूफां से बचाना है तो उन्हें पहाड़ और जनता के खिलाफ पहाड़ और तरकाई में माफिया और कारपोरेट तत्वों के खिलाफ कानून के मुताबिक कदम उठाने ही होंगे। वे हिचकेंगे और देरी करेंगे तो पहल केसरिया खेमे की हो जायेगी, हमारा सबसे बड़ा सरदर्द यही है।
बाबा को खूब छूट मिली है। केंद्र की सरकारों पर उनका वरदहस्त रहा है भले सत्ता चाहे जिसकी हो। उत्तराखंड सरकार इस मामले में क्या कर पायेगी, हम बता नहीं सकते लेकिन मुख्यमंत्री यह तो सुनिश्चित कर ही सकते हैं कि कामगारों के हक हकूक मांगने वालों के खिलाफ कमसकम लाठियां न चलें और गोलियां न बरसे।
पंतजलि का झंडा फहराने के लिए ऐसा ही कुछ हो रहा है और हमें अफसोस है।


