रामराज में अबकी रावण नंगा होकर नाचा है/ धरती माता के गालों पर कसकर पड़ा तमाचा है
रामराज में अबकी रावण नंगा होकर नाचा है/ धरती माता के गालों पर कसकर पड़ा तमाचा है

स्वयं को भाजपा से ज्यादा हिंदुत्ववादी साबित करने पर तुली है सपा सरकार
पिछले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश में दिल दहला देने वाली तीन घटनाएं हुई हैं। कुछ दिन पहले कानपुर जिले के जारा गाँव में भीड़ द्वारा एक बाहरी व्यक्ति को पाकिस्तानी आतंकवादी कह कर बुरी तरह से पीटा गया और फिर उसे नदी में डुबो कर मार दिया गया। 29 सितंबर को दादरी में भीड़ ने गौमांस रखने के आरोप में एक परिवार पर हमला बोला। हमला करने वालों ने 50 साल के अखलाक की पीट-पीट कर हत्या कर दी। घटना में अखलाक का बेटा भी गंभीर रूप से घायल हो गया। अखलाक पर हमला करने से पहले गांव के मंदिर के माइक से बाकायदा ऐलान भी किया गया। तो हमीरपुर जिले में मंदिर जाने पर 90 साल के बुजुर्ग दलित छिम्मा को सरेआम जिंदा जलाया गया।
दादरी की घटना ने अंतर्राष्ट्रीय जगत का ध्यान आकर्षित किया है। सारी दुनिया में घटना के लिए कुसूरवार संघ गिरोह और हिंदुत्ववादी आतंकवाद की निंदा हो रही है, लेकिन बेशर्म हिंदुत्ववादी आतंकवादियों को शर्म नहीं आ रही है।
दादरी की घटना कानून के राज पर सवालिया निशान लगाती है। राज्य सरकार या तो फेल हो गई है या हिंदुत्ववादी आतंकवादियों की भीड़ में खो गई है। भाजपा ने नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में मंत्री महेश शर्मा और दादरी से पूर्व विधायक नवाब सिंह नागर खुलेआम राज्य सरकार को चुनौती दे रहे हैं और सुंदर, सुशील सौम्य मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सकुचाए बैठे हैं।
अगर जांच में अखलाक के घर रखा गोश्त, बीफ होता तो अखिलेश सरकार अखलाक की हत्या को जायज ठहरा देती ?
दादरी से पूर्व विधायक नवाब सिंह नागर का बयान एक समाचारपत्र में आया है, जिसमें उन्होंने कहा, - “यदि गाय की हत्या हुई थी और खाया गया है तो मुस्लिमों की गलती है। यहां गो हत्या बैन है और यह हिन्दुओं की आस्था और विश्वास का मामला है। जाहिर है गोहत्या जैसी वारदात होगी तो लोगों में गुस्सा आएगा और सांप्रदायिक तनाव की स्थिति उत्पन्न होगी। यदि मामला ऐसा ही था तो वह परिवार गलत है। उन्होंने गोमांस खाया है तो इसकी जवाबदेही लेनी होगी। यह ठाकुरों का गांव है और वे अपनी भावनाओं को तगड़े तरीके से जाहिर करते हैं। यदि वे ऐसा करते हैं तो उन्हें इसका खयाल रखना चाहिए कि इसका अंजाम क्या हो सकता है।“
यदि उत्तर प्रदेश में कानून का राज होता तो नवाब सिंह नागर का यह बयान उन पर कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त था। नागर खुलेआम अखलाक की हत्या को जायज ठहरा रहे हैं और कानून के मुंह पर तमाचा मार रहे हैं साथ ही खुलेआम धमकी भी दे रहे हैं कि आगे भी ऐसा हो सकता है।
याद रहे नवाब सिंह नागरों को ऐसे बोल बोलने की ताकत सपा सरकार मुहैया करा रही है, जो स्वयं को भाजपा से ज्यादा हिंदुत्ववादी साबित करने पर तुली हुई है। उत्तर प्रदेश में गो हत्या पर प्रतिबंध अखिलेश सरकार ने लगाया है, जिसके आधार पर हिंदुत्ववादी गुंडे कानून अपने हाथ में ले रहे हैं और खुलेआम हत्या कर रहे हैं।
और देखने में आ रहा है कि हिंदुत्व्वादी आतंकवादी अखलाक की हत्या करके अपने मकसद में कामयाब हो रहे हैं। जिस तरह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कैबिनेट मंत्री आजम खां के बयान आ रहे हैं, वह हिंदुत्ववादी आतंकियों के हौसले और उनके एजेंडे को ही बढ़ा रहे हैं।
इस हत्याकांड पर अखिलेश यादव ने मुंह खोला तो उन्होंने कहा कि सरकार पिंक रिवोल्यूशन बंद क्यों नहीं कराती है। उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि, "कुछ लोग पिंक रिवोल्यूशनकी बात करते थे। पिंक रिवोल्यूशन वाली यह सरकार अब सत्ता में है तो फिर वो इसके निर्यात पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाते।" तो मंत्री आजम खान ने गौमांस को लेकर कानून बनाने की मांग की है। आजम खान ने कहा है कि देश में गाय और सुअर के मांस को लेकर नियम होना चाहिए। इनकी वजह से मंदिर-मस्जिद की लड़ाई होती है और सरकार को इसके खिलाफ कड़े कानून बनाना चाहिए।
अखिलेश यादव के बयान का सही अर्थ निकालिए तो वह भी अखलाक की नृशंस हत्या को जायज ही ठहरा रहे हैं, बस इसके लिए पिंक रेवलूशन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। और देखने में आया कि अखिलेश यादव के प्रशासन ने अखलाक के घर रखे गोश्त की जांच भी कराई और फिर मीडिया में बयान आया कि अखलाक के घर में बीफ नहीं था। यानी अगर जांच में अखलाक के घर रखा गोश्त बीफ होता तो अखिलेश सरकार अखलाक की हत्या को जायज ठहरा देती ? आजम खान का बयान भी हिंदुत्ववादी आतंकवादियों के एजेंडे में ही सुर मिलाता है। सवाल यह है कि एक नागरिक क्या खाएगा और क्या नहीं खाएगा, यह पाबंदी कोई सरकार या हिंदुत्ववादी आतंकवादी कैसे लगा सकते हैं?
इतना ही नहीं अखलाक की विधवा का जो बयान मीडिया में आया है उसने भी हिंदुत्ववादी आतंकवादियों के एजेंडे को ताकत दी है। अखलाक की विधवा ने कहा कि हमारा देशभक्त परिवार है। यानी इस विधवा के एक मासूम बयान ने गौमांस को खाने को देशद्रोह ठहरा दिया ?
और वायु सेना प्रमुख अरूप राहा के अराजनैतिक बयान ने भी भ्रमजाल फैलाया है। राहा का बयान आया है कि वायुसेना अपने स्टाफ की फैमिली की सुरक्षी का पूरा खयाल रखती है और पीड़ित परिवार की मदद की हर मुमकिन कोशिश की जा रही है।
राहा ने कहा कि ऐसी घटनाएं बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है। वायुसेना की कोशिश है कि पीड़ित परिवार को किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जाए। वायुसेना प्रदेश सरकार को आधिकारिक पत्र लिखेगी। वायुसेना प्रमुख ने यह भी कहा कि मामले पर हमारी पूरी निगाह है। फिलहाल हम परिवार को एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।
यानी राहा साहब ने अखलाक की हत्या को सिर्फ वायुसेनाकर्मी के एक परिजन की हत्या के दायरे में समेट दिया। क्या यह सिर्फ एक अखलाक की हत्या थी? नहीं सिर्फ एक अखलाक की हत्या नहीं थी, यह लोकतंत्र, संविधान और इंसानियत की हत्या थी। राहा साहब अगर आप खामोश ही रहते तो बेहतर था।
यह सिर्फ एक अखलाक की हत्या थी? नहीं सिर्फ एक अखलाक की हत्या नहीं थी, यह लोकतंत्र, संविधान और इंसानियत की हत्या थी
अखलाक की हत्या ने यह सवाल फिर पूछा है कि जब राज्य अपने अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल हो जाए तब क्या किया जाए? कुछ लोग कह सकते हैं कि अल्पसंक्यकों को भी आत्मरक्षा में हथियार उठा लेने चाहिए, जैसा कि आज से ढाई दशक पहले मुल्ला मुलायम सिंह बनने के लिए निकले मुलायम सिंह यादव कहा करते थे मुसलमान अपने घर में हथियार रखें। लेकिन इस तरह की तजबीज़ भी हिंदुत्ववादी आतंकवाद को ही मजबूत करती है। फिर हल क्या हो ?
इस समस्या का हल यही है कि जब राज्य अपने अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल साबित हो रहा हो तो वह कानून बनाकर अल्पसंख्यकों को लाइसेंसी हथियार दे। इस तरह के प्रयोग पहले भी किए गए हैं और वे सफल रहे हैं। कई दफा दलितों के जनसंहार के बाद इलाके में दलितों को लाइसेंसी हथियार दिए गए, जिसके परिणामस्वरूप दलित-अत्याचार की घटनाओं में वहां कमी आई जहां दलितों के पास लाइसेंसी हथियार थे। पंजाब में उग्रवाद को दौर में नागरिकों को लाइसेंसी हथियार दिए गए जिसके सकारात्मक परिणाम निकले। इसलिए मोदी सरकार बनने के बाद जिस तरह से हिंदुत्ववादी आतंकवाद की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है, उससे निपटने के लिए अल्पसंख्यकों को लाइसेंसी हथियार दिए जाने चाहिए।
इसके साथ ही अल्पसंख्यकों पर होने वाली हिंसा (violence on minorities) से निपटने के लिए कानून बनना चाहिए।
जिस तरह एससी/एसटी एक्ट बनाकर हिंदुत्ववादी आतंकवाद (Hindutva terrorism) से दलितों की रक्षा करने में बड़ी कामयाबी मिली है उसी तरह अल्पसंख्यक एक्ट भी बनना चाहिए। याद होगा सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने शांति कार्यकर्ताओं और कानूनविदों से परामर्श कर 2011 में कानून का एक मसविदा तैयार किया था। कुछ कमियों के बावजूद, 2011 का मसविदा सही दिशा में सही कदम था। प्रस्तावित विधेयक, शासकीय सेवकों को कर्तव्यपालन में लापरवाही बरतने और अपने अधिकारों का गलत प्रयोग करने या प्रयोग न करने के कारण होने वाली सांप्रदायिक हिंसा के लिये सजा का प्रावधान करता था। यदि यह विधेयक पारित हो गया होता तो न मुजफ्फरनगर होता और न अखलाक की हत्या।
भाजपा ने इस विधेयक का विरोध किया था और उसके विरोध करने का कारण स्पष्ट था। सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं (Incidents of communal violence) से भाजपा को चुनाव में फायदा होता है। सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं से देश तोड़ने के संघ परिवारी मंसूबे कामयाबी की तरफ कदम बढ़ाते हैं। लेकिन सवाल कांग्रेस से है कि वह इस विधेयक को पास कराने से पीछे क्यों हट गई?
अंत में बाबा नागार्जुन से पंक्तियां उधार
““रामराज में अबकी रावण नंगा होकर नाचा है
सूरत शक्ल वही है भैय्या बदला केवल ढाँचा है
नेताओं की नीयत बदली फिर तो अपने ही हाथों
धरती माता के गालों पर कसकर पड़ा तमाचा है”।
अमलेन्दु उपाध्याय


