रामसिंगार भूख से मर गया, आइये इस व्यवस्था के लिए एक मिनट का मौन रखें !
रामसिंगार भूख से मर गया, आइये इस व्यवस्था के लिए एक मिनट का मौन रखें !
रामसिंगार भूख से मर गया, आइये इस व्यवस्था के लिए एक मिनट का मौन रखें !
संध्या नवोदिता
यह आज की खबर है।
कोई रामसिंगार भूख से मर गया।
हालाँकि यह कोई ख़ास खबर नहीं है इसलिए अख़बार ने इसे पेज नम्बर इक्कीस पर छापा है। छापा है यह कोई कम बड़ी बात नहीं है।
रामसिंगार गौड़ भूख से मरा है, यह बात प्रशासन नहीं मानता, मानेगा भी नहीं। प्रशासन कहता है वह बीमारी से मरा ।
रामसिंगार गौड़ का दुर्भाग्य कि वह कब आदमी से दिव्यांग और दिव्यांग से खजुआया कुत्ते से भी बदतर होता चला गया, हम में से किसी को पता नहीं चला। न प्रशासन को, न पुलिस को। इनको तो खैर वैसे भी पता नहीं चलता। लेकिन अफ़सोस यह कि उसके जैसे आदमियों को जो दोनों पैरों पर चलते थे, दोनों हाथों से काम लेते थे, दोनों आँखों से देखते थे उन्हें भी पता नहीं चला!
रामसिंगार गौड़ भी कभी उन आदमियों जैसा था, दोनों हाथ दोनों पैर वाला।
तब वह मुम्बई में मजदूरी करता था। जब उसके दोनों पैर और एक हाथ कट गए तो वह पहले लँगड़ा लूला बाद में सम्मानजनक नाम से 'दिव्यांग' हो गया।
दिव्यांग दोनों पैर कटा रामसिंगार गौड़ बैशाखी से चल लेता था, एक हाथ से अपनी रोटी बना लेता था। फिर उसका कच्चा मकान भी गिर गया। तब उसने फूस की झोपडी बनाई। यह झोपडी उसे धूप और बरसात से मुश्किल ही बचा पाती। क्योंकि झोपडी भी दिव्यांग ही थी।
फिर तो अचानक एक दिन पता चला कि वह मर गया।
उस 'झोपडी' में उसका दिव्यांग शरीर कीड़े खा रहे थे, तब ग्राम प्रधान के पति की नजर पड़ी, तब सरकार के कारिंदों की नजर पड़ी, तब सरकार के एसडीएम की नजर पड़ी।
नजर इसलिए पड़ी कि वे घोषित कर सकें कि भले हमारे गोदामों में गेँहू चावल सड़ रहा है, पर रामसिंगार गौड़ भूख से नहीं मरा है।
अब आप बताइये रामसिंगार गौड़ मरा तो बेचारी सरकार का क्या दोष!
सरकार इतनी ऊँचाई पर रहती है कि रामसिंगार गौड़ जैसों पर नजर ही कहाँ पड़ती है! सो सरकार को कोई दोष नहीं।
दोष हमारा भी नहीं क्योंकि दोनों हाथ दोनों पाँव वाले लोगों के सामने आधे अधूरे बचे रह गए इस 'मानुस' का वजूद क्या, जो ठीक ठीक आदमी सा भी नहीं दीखता। हम तो आदमी को ठोकर मार के आगे बढ़ जाने वाले लोग ठहरे। और बचा समय झण्डा, डण्डा, टीवी, मॉल वगैरह !!
लेकिन रामसिंगार गौड़ तो गाँव में था, जहां यह सब नहीं है। सुना है वहां आज भी आदमी रहते हैं।
गलत सुना था, सब बदल रहा है। मेरा देश बदल रहा है। हम सब भी तैयार रहें कि अशक्त और निर्बल होने पर समाज और सिस्टम दोनों हमसे आँखें फेर लेंगे, हम भी रामसिंगार हो जाएंगे।
आप दीना माँझी पर रो रहे थे, उसकी बीवी को टीवी से नहीं मरना चाहिए था, उसे अपनी बीवी की लाश को चरी के बोझ की तरह काँधे पर रखकर बारह किमी नहीं ढोना चाहिए था , उस पत्रकार को यह वीडियो नहीं बनाना चाहिए था, पर क्या करें दीना माँझी भी अपने पूर्वज दसरथ माँझी की तरह अभिशप्त था।
तो रामसिंगार गौड़, जो आदमी जैसा दीखने वाला एक आधा चौथाई शरीर था, वो अपनी इच्छा से मर गया।
आइये इस व्यवस्था के लिए एक मिनट का मौन रखें !


