राष्ट्रहित के खिलाफ विदेश नीति में हिंदुत्व कार्ड खेल रहे मोदी
राष्ट्रहित के खिलाफ विदेश नीति में हिंदुत्व कार्ड खेल रहे मोदी
सबसे भयंकर राजनय के भगवेकरण और विदेश नीति के हिंदुत्व पर खामोशी
भारत की संसद, विदेश नीति और राजनय पर खामोश है और राष्ट्रहित के खिलाफ विदेश नीति और राजनय में हिंदुत्व कार्ड खेल रहे हैं मोदी।
सार्क शिखर सम्मेलन से लेकर मारीशस यात्रा तक यह सिलसिला जारी है और भारत के महान जनप्रतिनिधियों ने भारत की विदेश नीति और राजनय के भगवेकरण पर चूं तक नहीं किया है और अब तो हद हो गयी है।
सबसे भयंकर तो यह है कि स्वतंत्र फिलीस्तीन राष्ट्र कभी न बनने देने के वायद के साथ चौथी बार इजराइल के प्रधानमंत्री बन रहे कट्टरपंथी नितान्याहु के समर्थन में मजबूती से खड़े हैं भारत के प्रधानमंत्री।जबकि इस जीत पर अमेरिका तक में सन्नाटा है और अमेरिका में बसे यहूदी भी नितान्याहु को अमेरिकी संसद को संबोधित करने की इजाजत देना नहीं चाहते।
खास बात यह है कि नितान्याहु के लिए पलक पांवड़े बिछाये संघ परिवार और ग्लोबल हिंदुत्व के विपरीत उनके आका अमेरिका ने इजरायल के संसदीय चुनाव में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की जीत के बाद चुनावी अभियान के दौरान अरब-इजरायल समुदाय के मतदाताओं के लिए दिए गए बयान की निंदा की है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट ने बुधवार को संवाददाताओं से कहा, "अमेरिका उस टिप्पणी से चिंतित है, जिससे अरब-इजरायली नागरिकों को हाशिए पर रखने की बात परिलक्षित होती है।" उन्होंने कहा, "यह मूल्यों और लोकतांत्रिक आदर्शो की अवहेलना करता है, जो हमारे लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण रहा है और अमेरिका तथा इजरायल दोनों को जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण है।"
नितान्याहू ने मंगलवार को मतदान के दिन अपने फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था कि अरब मतदाता बड़ी संख्या में मतदान के लिए निकल रहे हैं। दक्षिणपंथी सत्ता को बचाने का एकमात्र रास्ता मतदान केंद्रों पर जाना और लिकुड पार्टी तथा जियोनिस्ट युनियन के बीच की खाई को कम करना है।
जियोनिस्ट युनियन की सांसद शेली याचिमोविच ने नितन्याहू के बयान को नस्लीय करार देते हुए उनकी निंदा की। अर्नेस्ट एकबार फिर इजरायल-फिलिस्तीन मतभेद के द्वि-राष्ट्र समाधान पर अमेरिकी समर्थन को दोहराया। अर्नेस्ट ने कहा, "अमेरिका की लंबे वक्त से यह नीति रही है और यह राष्ट्रपति का नजरिया रहा है कि द्वि-राष्ट्र समाधान जारी तनाव और अस्थायित्व को समाप्त करने का बेहतर तरीका है।"
भारत के प्रधानमंत्री भारत को इजराइल का अमेरिका से बड़ा पार्टनर बनाने पर तुला हुआ है और इसका सीधा मतलब है कि भारत में आने वाले दिनों में गैरहिंदुओं,दलितों की ,स्त्रियों की शरणार्थियों की और आदिवासियों की शामत आने वाली है।
असम में नागरिकता की समीक्षा हो रही है,जिससे मुसलमानों को साथ साथ हिंदू बंगालियों की नागरिकता खतरे में पड़ने वाली है तो दंगो के नया सिलिसला शुरु करने का इंतजाम अलग से हैं।
भारत के धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के वाहक हिंदू साम्राज्यवाद और इजराइल का यह नायाब गठबंधन अब भारतीयमहादेश ही नहीं,पूरी दुनिया के लिए बेहद खतरनाक होने लगा है।अमेरिका भी डरने लगा है कि जो भस्मासुर उसने पैदा कर दिया है, कहीं वहीं अमेरिकी वर्चस्व का अंत न कर दें।
पलाश विश्वास


