राष्ट्रीय समाजवादी एकजुटता सम्मेलन मुंबई में

अक्टूबर 21 - 22, 2016 मुंबई, महाराष्ट्र

नई दिल्ली। भारत में 21-22 अक्टूबर 1934 को मुंबई में काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई थी। इसके शीर्षस्थ नेताओं में आचार्य नरेंद्र देव, राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, एस.एम.जोशी, युसुफ मेहर अली, नाना साहेब गोरे, मीनू मासानी, अशोक मेहता सम्मिलित थे। इनके विचार सिद्धांत तथा परिवर्तनकारी मार्ग पर चलने वाले हजारों लाखों लोग देश भर में बदलाव के लिए संघर्ष और निर्माण में लगे हुए हैं। उनका दलित, आदिवासी, किसान, श्रमिक, विद्यार्थी, महिला और अन्य संस्थाओं और संगठनों में योगदान है।

ऐसे जनतांत्रिक समाजवाद में विश्वास रखने वाले देशभर के साथियों का एक मंच समाजवादी नाम से गठित होकर समाजवादी एकजुटता सम्मेलन पटना व लखनऊ में सफलतापूर्वक आयोजित किया गया। पिछले साल भर के अनुभव के बाद अब 21-22 अक्टूबर 2016 को मुंबई में एक बड़ा आयोजन होने जा रहा है। 22 अक्टूबर को विशाल रैली का विशेष कार्यक्रम होगा। इस सम्मेलन की एकजुटता में विविध जन संगठन, राजनीतिक दलों में कार्यरत व्यक्तियों की, साहित्यिक, लेखक, कलाकार, पत्रकारों की उपस्थिति रहेगी। हजारों ग्रामीण व शहरी मेहनतकशों की शक्ति जुटेगी। इस सम्मेलन सें राष्ट्रीय स्तर पर नयी नीति व आंदोलन का मसौदा उभरेगा।

यह जानकारी देते हुए हम समाजवादी व समर्थक समूह की मेधा पाटकर, डॉ सुनीलम, मधु मोहिते, सुनीति सु.र., बिलाल खान, मधुरेश व सुधाकर सटवे ने कहा कि देश की स्थिति पर हो रही हर बहस में आज सुनाई देता है एक आक्रोश, एक चिंता। एक ओर भारत को अंतर्राष्ट्रीय, वैश्विक स्तर पर चमक रहे सितारे के रुप में प्रस्तुत किया जा रहा है तो दूसरी ओर आम जनता, श्रमिक तथा किसान और प्रकृति पर जीने वाले सभी समाजों के जीने का अधिकार नकारा जा रहा है।

1980 के दशक से देश में लायी गयी आर्थिक नीतियों के 35 सालों के अनुभव के बाद गैर बराबरी मिटने के बदले बढ़ने में कामयाब हुई है। देश की आमदनी मुठ्ठी भर लोगों के हाथ केंद्रित होने के कारण ही केवल 467 व्यक्तियों के सामने गरीबी रेखा के नीचे भूखे प्यासे या बेरोजगार रहकर जीने वालों की हालात एक चुनौती है। जनसंघर्ष ही नहीं, आत्महत्याएँ भी इसका प्रतीक हैं कि, हमारे राजकर्ता आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक समता और प्राकृतिक विनाश के बिना विकास की सही विकल्प, दिशा एवमं योजना बनाकर उसे देश के सामने प्रस्तुत करने में असफल रहे हैं।

कॉरपोरेट के हाथ एक-एक क्षेत्र सौंपने वाले शासक, अधिकांश राज्यों में शासन की भूमिका से हाथ खींच रहे हैं; तथा समाज का सहभाग, विविध प्रकार का अधिकार एवम व्यवस्था विरोधी संघर्ष के लिए भी ‘अवकाश’ नकार रहे हैं। विदेशी सहकार, देशी विदेशी कंपनियों के जाल में फँसे उनकी मुनाफाखोरी, उपभोगवादी विकास, बाजारी शिकंजा, पूंजीवादी राजनेता देश की नीतियों को ही नहीं कानूनों को भी बदलते जा रहे हैं। किसानों, आदिवासियों, दलितों व श्रमिकों के विरोध में भूमि अधिग्रहण कानून, श्रम कानूनों में बदलाव, बीमा योजना में लूट, वन अधिकार में पीछे हटने की तैयारी आदि भी इसके प्रमाण हैं। जातिवाद, सांप्रदायिकता और आतंकी हिंसा में बढ़ोतरी समाज में बहुत बड़ा विभाजन लाने में आधार पर सत्ताधीशों का अजेंडा सामने ला चुकी है।
इतिहास का अन्य विकल्प बाकी नहीं
इन समाजवादी नेताओं ने कहा कि इस परिपेक्ष्य में ‘अब पीछे मुड़ना नहीं’ ‘इतिहास का अन्य विकल्प बाकी नही’ यह निराशावादी स्वर सुनाई देता है। जरुर इसे सशक्त सैद्धांतिक, राजनीतिक, आर्थिक विकल्प देते हुए जवाब देना जरुरी और संभव है। बाबासाहेब आबेंडकर तथा गांधीजी ने संविधान तथा आंदोलन के द्वारा रखे सिद्धांतो की अवमानना करने पर जो राजनेता तुले हैं, उन्हें हमारे विविध क्षेत्रों में बिखरे हुऐ जनतांत्रिक समाजवादी साथ एकत्रित आकर जवाब देना चाहते हैं।

इस कार्यक्रम में सांप्रदायिकता, फासीवाद, जाति निर्मूलन संविधान के परिपेक्ष्य में, आर्थिक संकट और वैश्विककरण पिछले तीन दशको में, प्राकृतिक संपदा कृषि संकट और विकास, एक वैश्विक चुनौती के रुप में जलवायु परिवर्तन, स्तिथि और शिक्षा में परिवर्तन की दिशा, असुरक्षित मजदूर उनका योगदान, सुरक्षा और अधिकार और लैंगिक न्याय इन विषयों पर विशेष रूप से चर्चा कर सक्रिय कार्यक्रम बनाए जाएँगे।

21 अक्टूबर 2016, सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक

स्थानः दामोदर हॉल, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर रोड, जगन्नाथ भटनकर मार्ग, परेल, मुंबई - 400012

22 अक्टूबर 2016, सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक

आम जनसभा दोपहर 2 बजे से

स्थानः नरे पार्क मैदान, चमार बाग क्रॉस रोड, मध्य रेल्वे वर्कशॉप के सामने, परेल, मुंबई - 400012

आयोजक

हम समाजवादी व समर्थक समूह