राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण
चौंकिए नहीं! यह भगवान कोई और नहीं, वे पंचतत्व ही हैं, जो इस प्रकृति को बनाते और चलाते हैं: भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि और न से नीर। जीव, इस भगवान का निर्माण भले ही न कर सकता हो, किंतु भगवान के शोषण और बिगाड़ की गलती तो वह करता ही रहता है। ऐसा होने पर भगवान उसे चेताता है; डांटता है; डराता है; धमकाता है। इस प्रक्रिया में कुछ जीव मिट जाते हैं; कुछ चेत जाते हैं और शोषण और बिगाड़ की कोशिशें बंद कर देते हैं। कुछ गुहार लगाते हैं; सड़क पर, संसद में, अदालत में। कभी इन्हें विकास विरोधी मानकर, सरकार नहीं सुनती। कभी लंबी तारीख, मंहगे वकील, सुबूत और बयानात की जांच और न्यायाधीश की ईमानदारी पर आश्रित खर्चीली प्रक्रिया, प्राप्त न्याय को अर्थहीन बना देती है।
यह न हो; भगवान को संरक्षित रखने और न्याय दिलाने के लिए बने कानून लागू हों; भगवान के शोषण, अतिक्रमण और बिगाड़ को रोका जा सके; बिगाड़ से दुष्प्रभावित होने वाले जीवों को हुए नुकसान की भरपाई हो सके; इसके लिए वर्ष 2010 में एक कानून बना। इस कानून के तहत् 18 अक्तूबर, 2010 को एक न्यायाधिकरण बना। नाम रखा गया - राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल)। आवेदन देने के अधिकतम छह माह के भीतर फैसला यानी ’सस्ता न्याय, त्वरित न्याय’।
सस्ता और त्वरित - इन दो शब्दों ने ऐसे गंवई पर्यावरण कार्यकर्ताओं को भी गुहार लगाने का हौसला दिया, जिनके पास वकीलों को देने के लिए न ज्यादा पैसे हैं और न ही प्रदूषकों से टक्कर लेने के लिए ज्यादा धैर्य। न्यायाधिकरण द्वारा जानकारी तथा संपर्क को ऑनलाइन करने से पारदर्शिता आई और लोगों की इस तक पहुंच आसान हुई। न्याय बेंच में पर्यावरण विशेषज्ञों की सदस्यता ने न्याय को त्वरित और विवेकशील बनाया। हर रोज की रफ्तार से आये फैसले और पारदर्शिता ने मिलकर न्यायाधिकरण की विश्वसनीयता बढ़ाई। चौंके अफसर, घबराये प्रदूषक और मीडिया में छपी रिपोर्ताज ने इसे जन-जन में लोकप्रिय बना दिया। लिहाजा, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में आने वाले मामलों की संख्या यकायक बढ़ गई है। इससे वकील भी आकर्षित हुए हैं। कुछ वकीलों ने अपना सारा ध्यान राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में प्रेक्टिस करने में लगा दिया है। निश्चित रूप से अगले कुछ वर्षों में भारत में पर्यावरण मामलों के नामी जानकारों की सूची में सिर्फ पर्यावरणविद् ही नहीं, कई वकील भी शामिल होंगे। पर्यावरण में स्नातक डिग्री के बाद वकालत की पढाई करना शुभ रहेगा। यह भगवान को न्याय दिलाने का काम जो है।
हरित न्यायाधिकरण के न्याय से भगवान को कितनी सुरक्षा और न्याय मिला है ? इसका कोई ठोस अध्ययन हुआ हो; ऐसा अभी मेरी निगाह में नहीं है। हिंडन-बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण के मामले में दो अक्तूबर, 2013 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा खुद मंजूर करने के बावजूद ’रिवर रेगुलटरी जोन’ अधिसूचित करने में हीला-हवाली; दादरी, ग्रेटर नोएडा के गांव बील अकबरपुर, स्थित जलग्रहण क्षेत्र के 500 मीटर के दायरे में निर्माण पर 2012 में रोक के बावजूद सितम्बर, 2014 जारी रहने पर निर्माण की वीडियोग्राफी आदेश जारी की न्यायधिकरण की विवशता, और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पेट्रोल-डीजल के पुराने वाहनों पर रोक को लेकर जारी आदेश को केन्द्र सरकार द्वारा शोधपत्रों के जरिए उलझानें की कोशिश, पर्यावरण प्रेमियों को चिंतित कर सकती है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने पूरे देश में नदी तट व तलहटी से बिना लाइसेंस व पर्यावरणीय मंजूरी के रेत खनन पर रोक लगाई। उसका हश्र हम देख ही रहे हैं। हरित न्यायाधिकरण के आदेश की पालना न करने की सरकारी मंशा के उदाहरण कई हैं। फिलहाल हम खुश हों सकते हैं कि हरित न्यायाधिकरण, अपने मकसद के मोर्चे पर सक्रिय हुआ है। न्यायमूर्ति श्री स्वतंत्र कुमार के अध्यक्ष बनने और चार नई बेंच बनने के बाद से फैसलों में तेजी आई है। अपने फैसलों को लागू कराने के लिए हरित न्यायाधिकरण ने शासन-प्रशासन की मुश्कें कसने की कोशिशें भी तेज की हैं। आइये, हम भी अपनी कोशिशें तेज करें।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण-एक परिचय

नई दिल्ली में मुख्य बेंच।
चेन्नई, पुणे, कोलकोता और भोपाल में चार अन्य बेंच।
एक अध्यक्ष, छह न्यायिक सदस्य और दस विशेषज्ञ सदस्य।
पूर्व और प्रथम अध्यक्ष: न्यायमूर्ति श्री लोकेश्वर सिंह।
वर्तमान अध्यक्ष: न्यायमूर्ति श्री स्वतंत्र कुमार।
वर्तमान न्यायिक सदस्य: न्यायमूर्ति सर्वश्री एम. चोकलिंगम, श्री वी. के. किंगांवकर, पी. ज्योतिमणि, श्री उमेश दत्तात्रेय साल्वी, श्री दिलीप सिंह और श्री शशिधरन नाम्बियार।
वर्तमान विशेषज्ञ सदस्य: सर्वश्री प्रो आर. नागराजन, डा. देवेन्द्र कुमार. डा. गोपाल कृष्ण पांडेय, प्रो. पी. सी. मिश्रा, श्री पी. एस. राव, प्रो. ए. आर. यूसुफ, श्री रंजन चटर्जी, श्री विक्रम सिंह, डा. रमेशचन्द्र त्रिवेदी और डा. अजय अच्युतराव।
वेबसाइट: www.greentribunal.gov.in
पता: राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण, फरीदकोट हाउस, कोपरनिक्स मार्ग,नई दिल्ली। फोन: 011-23043501,
फैक्स: 011-23077931,
ई मेल [email protected]

अरुण तिवारी
अरुण तिवारी, लेखक प्रकृति एवम् लोकतांत्रिक मसलों से संबद्ध वरिष्ठ पत्रकार एवम् सामाजिक कार्यकर्ता हैं।