रिजर्व बैंक आफ इंडिया के पास ही रूपये नहीं, दिवालिया किसको कहते हैं ?
रिजर्व बैंक आफ इंडिया के पास ही रूपये नहीं, दिवालिया किसको कहते हैं ?
रिजर्व बैंक आफ इंडिया के पास ही रूपये नहीं, दिवालिया किसको कहते हैं ?
रणधीर सिंह सुमन
भारत सरकार, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया वा सत्तारूढ़ दल लगातार कह रहा है कि 24000 रूपये प्रति सप्ताह और जिनके घरों में शादी है वह ढाई लाख रुपये अपने खाते से रुपया निकाल सकते हैं.
जमीनी हकीकत यह है कि शादी-ब्याह वाले घरों के लोग ढाई लाख रुपये अपने खाते से नहीं निकाल पा रहे हैं, क्योंकि रुपया निकालने के लिए जो शर्तें लगायी गयी हैं उन शर्तों को पूरा नहीं किया जा सकता है.
अब चौबीस हज़ार रुपये प्रति सप्ताह निकालने की वास्तविकता यह है कि 24000 रुपये का चेक लेकर जब व्यक्ति बैंक गया तो बैंक आफ इंडिया बाराबंकी ने चेक पर लिख कर दे दिया है कि बैंक के पास रूपए ही नहीं है। तब लीड बैंक के प्रबंधक से बात की गई तो उन्होंने बताया कि रिजर्व बैंक आफ इंडिया के पास ही रूपये नहीं है.
बताइए दिवालिया किसको कहते हैं ?
बैंकों के पास रुपया ही नहीं है, उनको किसी तरह से जो रुपया मिलता है उससे वह 2000 रुपये 1000 रुपये बाँट रहे हैं. एटीएम वगैरह खाली पड़े हैं.
जनता अपना रुपया निकालने के लिए लाइन में सुबह से लेकर शाम तक लगी रहती है और बाद में नो कैश हो जाता है.
दिल्ली और बम्बई के अधिकारी मीडिया से कहते हैं कि सब कुछ ठीक है, थोड़ा- बहुत कष्ट की बात है। इसके विपरीत वास्तविकता यह है कि व्यापार से लेकर खेती किसानी तक बंद है. गाँव के अन्दर दूसरी जगहों पर काम करने गए नवजवान वापस आ रहे हैं. बेरोज़गारी बढ़ रही है उसके बाद भी सत्तारूढ़ दल के बेशर्म नेतागण उत्तर प्रदेश में एक करोड़ नवजवानों को रोज़गार देने की बात कर रहा हैं।
अफरातफरी का माहौल है. मोदी से लेकर रूडी तक नागनाथ से लेकर प्रलयनाथ तक झूठ पर झूठ बोले चले जा रहे हैं.
जनता के कमजोर तबके के बेरोजगार नवजवान किसान अपने पैसे का उपभोग नही कर पा रहे हैं. दुर्घटना होने पर नई करेंसी के अभाव में इलाज संभव नहीं हो पा रहा है.
सरकार चाहे जो घोषणा कर रही हो. अब तो यही हो रहा है कि होइहि सोइ जो राम रचि राखा।


