आइपीएफ ने सौंपा राज्यपाल को ज्ञापन
लखनऊ: 17, अगस्त-2015। रियल स्टेट के बिल्डरों और कारपोरेट घरानों के हितों के लिए दलितों को जमीन से बेदखल करने में प्रदेश की अखिलेश सरकार लगी है। इसी नाते प्रदेश सरकार, राजस्व संहिता- 2015 के माध्यम से उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम- 1950 में मूलभूत संशोधन करने जा रही है, जिससे विशेषकर दलित और आदिवासी वर्ग और सामान्यतः हर परिवार में पुत्रियों और महिलायों के भूमि अधिकारों पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ने वाला है।
यह बातें आज आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आई.जी. एस. आर. दारापुरी ने राज्यपाल को भेजे ज्ञापन में उठायीं। उन्होंने राज्यपाल महोदय से तत्काल हस्तक्षेप कर प्रस्तावित संशोधनों से दलितों, महिलायों और पुत्रियों पर पड़ने वाले कुप्रभाव को रोकने का अनुरोध किया।
दारापुरी के साथ आइपीएफ प्रदेश संगठन महासचिव दिनकर कपूर, आइपीएफ नेता बाबूराम कुशवाहा व रमेश कुमार भी रहे।
पत्रक सौंपने के बाद दारापुरी ने दलितों की जमीन बेचने पर लगी पाबंदी को प्रदेश सरकार द्वारा खत्म करने के खिलाफ आज सामाजिक, दलित और राजनीतिक संगठनों द्वारा लक्ष्मण मेला मैदान में आयोजित धरने को भी सम्बोधित किया।
24 सूत्री मांगों व सुझावों के साथ महामहिम को भेजे अपने ज्ञापन में आइपीएफ नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम,- 1950 में भूमि प्रबंधक समिति द्वारा भूमि आवंटन में वरीयता क्रम का निर्धारण किया गया था। जिसमें तीसरी श्रेणी में अनुसूचित जाति के भूमिहीन कृषि श्रमिक को अन्य वर्गों पर वरीयता दी गयी थी, किन्तु उ.प्र. राजस्व संहिता- 2015 में इसे समाप्त कर दिया गया है। तथा आबादी व कृषि भूमि आवंटन में अनुसूचित जातियों को पिछड़ा वर्ग एवं समाज में गरीबी की रेखा के नीचे के सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को एक साथ रख दिया गया
ज्ञापन में कहा गया कि उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम- 1950 में अनुसूचित जातियों एवं जन-जातियों को पट्टे पर जो भूमि आवंटित की जाती थी और दस साल बाद असंक्रमणीय भूमिधर बनने के बाद हस्तांतरण का अधिकार इस प्रतिबंध के साथ था कि उक्त हस्तान्तरण की अनुमति परगनाधिकारी/ जिलाधिकारी द्वारा अनिवार्य होगी। इसमें यह भी प्रतिबंध था कि किसी दलित को पट्टे की जमीन बेचने की अनुमति तभी मिलेगी जब उक्त जमीन बेचने के बाद उस के पास 3-1/8 एकड़ जमीन बची रहेगी। इस के इलावा एक प्रतिबंध यह भी था कि दलित व्यक्ति की जमीन केवल दलित ही खरीद सकता है। इस प्रतिबंध का आशय यह था कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति भूमिहीन न हों जाएं तथा अन्य लोगों से उन्हें संरक्षण मिल सके। किन्तु उ.प्र. राजस्व संहिता- 2015 में इसे रद्द कर देना प्रस्तावित है। इस प्रतिबंध के खत्म हो जाने के बाद कोई भी व्यक्ति किसी भी दलित की जमीन खरीद सकेगा।
ज्ञापन में अवगत कराया गया कि दलितों की 80 प्रतिशत आबादी भूमिहीन है और वे बहुत कमजोर स्थिति में है। 2001 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 1991-2001 के दशक में 12 प्रतिशत अर्थात 4.20 लाख दलित जमीन बेच कर भूमिहीन हो चुके हैं और 2011 की जनगणना में यह आंकड़ा और भी बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में मांग की गयी कि दलितों की जमीन को बचाने के लिए पूर्ववर्ती प्रतिबंधों का बना रहना बहुत जरूरी है।