रेल किराया, मंहगाई झांकी है, अंबानी का उधार अभी बाकी है
रेल किराया, मंहगाई झांकी है, अंबानी का उधार अभी बाकी है
रिलायंस बैंकिंग, स्टेट बैंक आफ इंडिया का बाजा बजाने वाली है
पलाश विश्वास
रेलकिराया, मंहगाई झांकी है, अंबानी का उधार अभी बाकी है। बेसिक किराये में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि 4.2 फीसदी फ्यूल अजस्टमेंट कॉस्ट है। बढ़े दाम 25 जून से लागू हो जाएंगे।
यह फ्यूल सरचार्ज क्या बला है,इसको भी समझ लीजिये। दस फीसद रेल भाड़ा के अलावा जो फ्यूल चार्ज है रिलायंस मंत्रियों की महिमा अपरंपार से वह भी रिलायंस को समर्पित है।
वैसे सरकार ने बजट की तारीखों का ऐलान कर दिया है। 7 जुलाई से संसद का बजट सत्र शुरू होगा। 8 जुलाई को रेल बजट पेश होगा। 9 जुलाई को इकोनॉमिक सर्वे जारी किया जाएगा। 10 जुलाई को नई सरकार वित्त वर्ष 2015 के लिए आम बजट का ऐलान करेगी। वैसे कड़े फैसलों के लिए बजट का इंतजार जरूरी नहीं है। यह महज रस्म अदायगी हो गयी है।
रिलायंस का उधार इतना तगड़ा है कि उसे निपटाने के लिए कठिन फैसलों का सिलसिला फिलहाल बंद होने को नहीं है। रेल किराये में बढ़तरी के खिलाफ शोरशराबे के मध्य दूसरी कड़वी गोली खाने को को भी तैयार हो जाइये। मोदी सरकार ने पहले रेल यात्री और माल भाड़ा बढ़ाया और अब सरकार नैचुरल गैस की कीमतों में इजाफा करने की तैयारी कर रही है। जाहिर है कि सरकार अब सब्सिडी खत्म करने का पुण्यकर्म पहले करेगी। खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को भी ठिकाने लगा दिया जायेगा।योजना आयोग भंग हो सकता
अब ताजा खबर ये आ रही है कि रसोई गैस सिलिंडर की कीमत में भी इजाफा होगा वो भी हर महीने। उम्मीद नहीं, आशंका जताई जा रही है कि मोदी सरकार बजट के बाद हर महीने एलपीजी सिलिंडर के दाम में 10 रुपए का इजाफा कर सकती है। एलपीजी और पेट्रोलियम पर बढ़ते सब्सिडी के बोझ से निजात पाने के लिए सरकार अपनी तेल नीति में बड़ा बदलाव कर सकती है। इराक संकट की वजह से कच्चे तेल की कीमत में आए भारी उछाल की वजह से इस साल तेल सब्सिडी 1.40 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकती है। अगर सरकार एलपीजी सिलिंडर की कीमत बढ़ाने का निर्णय लेती है तो यह डीजल की कीमत में हर महीने 50 पैसे की बढ़ोतरी वाले मॉडल पर ही आधारित होगी।
इराक का संकट जारी रहना है, यह खास बहाना है तो कालाधन की वापसी का झुनझुना भी तेज है। स्विस सरकार को पटाकर सुनते हैं कि सारा कालाधन वापस होगा। वापस हो भी जाये तो वह कहां लगेगा और उसका बंटवारा कैसा होगा, यक्ष प्रश्न हैं।
राजनीतिक समीकरण साधने के अलावा इस आर्थिक दुशचक्र के तिलिस्म से बाहर निकलने का रास्ता कोई नहीं है। मसलन रेल किराया एवं मालभाड़ा में वृद्धि के मोदी सरकार के फैसले के विरोध में पश्चिम बंगाल विधानसभा में आज निंदा प्रस्ताव पारित किया गया तथा यह वृद्धि तत्काल वापस लिये जाने की मांग की गई। यह बंगाली जनमत खासकर कोलकाताई उपनगरीय रेलवे के रोजाना सवारियों को धांढस दिलाने का खेल है। किसी राष्ट्रीय प्रतिरोध आंदोलन की उम्मीद मत रखिये।
बंगाल विधानसभा में सर्वदलीय प्रस्ताव आधार कारपोरेट योजना के खिलाफ पारित हुआ लेकिन बंगाल की राजनीति और सत्ता ने असंवैधानिक आधार योजना खारिज करने की मांग अब तक नहीं की है। आधार योजना को नाम बदलकर जारी रखा जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि इनफोसिस का दस साला वर्चस्व टूट गया और हमारी पहचान की मिल्कियत नई सरकार किसी और को सौंपेगी। बंगाल में तो ममता बनर्जी की सरकार और पार्टी ने इस सर्वदलीय प्रस्ताव के बाद युद्धस्तर पर आधार कार्ड बनवाने का सिलसिला जारी रखा है।
आप चतुर सुजान हैं और शेयर बाजार को समझे बूझते हैं तो रिलायंस पर दांव लगा सकते हैं। रिलायंस बैंकिंग, स्टेट बैंक आफ इंडिया का बाजा बजाने वाली है और इस सरकारी बैंक के रिलायंस में समाहित हो जाने के आसार हैं। रेलवे में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विनिवेश का फायदा भी रिलायंस इंफ्रा को होने वाला है। मेट्रो रेलवे निर्माण पर इसी का वर्चस्व है तो बुलेट ट्रेन का सपना भी रिलायंस माध्यमें साकार करेगी भगवा कारपोरेट सरकार। रिलायंस तेल और गैस की तो बल्ले-बल्ले। इराक संकट महायज्ञ के एकमात्र यज्ञाधिकारी रिलायंस है। तो औद्योगिक गलियारों में भी रिलायंस का वर्चस्व रहेगा। खेलों में भी रिलायंस की धूम है जो अब क्रिकेट से फुटबाल में समाहित हो रही है। ग्लोबल फुटबाल कारोबार में भारतीय मुक्तबाजार को समाहित करने की मुहिम में जुट गये हैं अंबानी। मीडिया और मनोरंजन, संचार और ऊर्जी में भी रिलायंस का केसरिया समय है।
दांव लगाने का सही वक्त है, जाहिर है। दांव लगाने वाले लगा चुके हैं। हम उन चतुर सुजान लोगों के ही शिकंजे में हैं। केंद्र सरकार इनकम टैक्स की धारा 80 सी की सीमा एक लाख से बढ़ाकर डेढ़ लाख कर सकती है। यानी हर साल आपको करीब सत्रह हजार रुपए की बचत हो सकती है। अभी 80 सी के तहत एक लाख रुपए तक के निवेश पर ही इनकम टैक्स में छूट मिलती है, जिसे 50 हजार रुपए और बढ़ाया जा सकता है।
लेकिन इसके साथ ही प्रोमोटर बिल्डर राज को प्रोत्साहन देने का भी पूरा इंतजाम है क्योंकि कई साल पहले बंद हुई इंफ्रास्ट्रक्चर बांड में निवेश की सीमा 20 हजार से बढ़ाकर 30 हजार रुपए की जा सकती है और इसे 80 सी में शामिल किया जा सकता है। साथ ही हेल्थ इंश्योरेंस की सीमा को भी मौजूदा 15 हजार से बढ़ाकर इसे भी 80 सी में शामिल किया जा सकता है।
सामाजिक क्षेत्र की पहले से चालू योजनाओं मसलन मनरेगा, शहरी विकास योजना को भी इन्फार से जोड़ने का प्लान है। गरीबी उन्मूलन का अद्भुत तरीका है भगवा मंहगाई और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, वित्तीय घाटा घटोने के करतब की तरह।
भारत सरकार पर जनता का कोई कर्ज नहीं है लेकिन सरकार और राजनीति रिलायंस अहसान तले दबी चीटियां हैं। इसी सरकार, सत्ता, राजनीति और जनांदोलन के वाहक धारक हैं तरह-तरह के रंग बिरंगे बजरंगी। रंगबिरंगे तो होते ही हैं सारे के सारे बजरंगी। लेकिन मेले में बिछुड़े भाइयों की तरह उनकी गति मति प्रकृति एक ही होती है। आस्थाएं अलग-अलग हैं, उपासना पद्धतियां भी अलग-अलग। भाषाएं अलग-अलग, अस्मिताएं अलग-अलग। जाति और नस्ल अलग-अलग। अलग रंग रूप नाक नक्श अलग-अलग। लेकिन जैसे भी हो बजरंगी, मतिमंद और दृष्टि अंध होते हैं। इक्कीसवीं सदी में जीते हैं। भोग में लबालब रसगुल्ले हैं, लेकिन स्थाईबाव सामंती है। रंग में गुलामी अंधभक्ति बनकर बहती है।
मालिक जो करें, धन्य-धन्य।उनका धर्म है कर्म कांड, अंध अनुसरण, नाम गान जाप योगाभ्यास।
यथार्थ उन्हें नास्तिक प्रलाप लगता है और संवाद से उन्हें एलर्जी है क्योंकि वे तो हुक्म के गुलाम हैं।
सोचने विचारने की जरुरत ही नहीं। रंगरूट की तरह कदमताल और रिमोट के बटन दाबते ही मालिक पक्ष के शत्रु पर चाहे वे परिजन हो स्वजन हो बंधु बांधव, तत्काल हमला करने में वे दक्ष विशेषज्ञ हैं। उनके हदय चीरकर देखें तो वहां उनके देव देवी का स्थाई आसन है जो कयामत में भी डोलता नहीं है।
यह बजरंगी जनता विकास के नारे पर बांसों बांस उछलती है, अपने को हुए बांसों का होश नहीं होता इसे और विज्ञान के विरुद्ध है यह अत्याधुनिक बजरंगी जनता।
जो हो रहा है, आंखों के सामने हो रहा है। समझने की कोशिश भी नहीं हो रही है कि असल में हो क्या रहा है। मंत्र जाप रहे हैं राम का कि रामराज आयो रे।
अश्वमेध के घोड़ों की टापों से जख्मी लहूलुहान हैं, चादर सिकुड़ते-सिकुड़ते टाट का पर्दा हजार टुकड़ा, जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता से हाथ धो रहे हैं रोज, सलवा जुड़ुम में मारे जा रहे हैं, फिर भी चीख-चीखकर जमीन आसमान एक कर रहे हैं, फेसबुक ट्विटर पर धमाल मचाये हुए हैं कि राम राज आयो रे।
इराक में क्या से क्या हो रहा है, कुछ भी अता पता नहीं है। इराक का संकट बता रहे हैं आर्थिक जनसंहार को न्यायोचित ठहराने को।
रेलकिराया बढ़ाने से एक दिन पहले ही रेलमंत्री बता रहे थे कि रेल किराया पर फैसला प्रधानमंत्री हफ्ते भर में कर देंगे लेकिन इराक में चालीस भारतीयों के अपहरण के बाद उन्हें छुड़ाने के राजनयिक प्रयत्नों के बजाय रातों रात रेल किराया में इजाफा।
सबके लिए समान। एसी नान एसी बराबर भाव से।
आम बीपीएल जनता के लिए रेलवे सफर का कोई मामूली सा बंदोबस्त नहीं हो सका। क्योंकि यह तो इराक संकट की वजह से है।
अब नेट पर हिंदी राजकाज प्रबल है और कहा जा रहा है कि कर्ज में डूबे रेलवे को उबारने का परम कर्तव्य साधा गया है। परम कर्तव्य यह भी है कि उद्योग मंत्रालय ने रेलवे में 100 फीसदी एफडीआई को हरी झंडी दे दी है। संबंधित मंत्रालयों को डीआईपीपी से कैबिनेट ड्राफ्ट नोट भेजा गया है। रेलवे में एफडीआई को ज्यादा उदार बनाया जाएगा। मंत्रालयों की राय आने के बाद अंतिम प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा जाएगा।
साथ ही, बुलेट ट्रेन के सपने को सच करने की कोशिशें भी फास्ट ट्रैक पर है। हाईस्पीड बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में एफडीआई का प्रस्ताव है। इसके अलावा सबअर्बन रेलवे में एफडीआई का प्रस्ताव है। मेन रेल ट्रैक से प्रोडक्शन प्लांट तक ट्रैक बिछाने में एफडीआई का प्रस्ताव है। उद्योग मंत्रालय के मुताबिक रेलवे में एफडीआई आने से जीडीपी ग्रोथ 1-2 फीसदी बढ़ेगी।
फिर बजरंगी बोले हैं, आप तय कीजै कि दुनिया कि नंबर एक रेलवे चाहिए कि टट्टी लबालब मुफ्त की सवारी। जबकि रेल भाड़े में बढ़ोतरी की खबर को शेयर बाजार के नजरिये से देखें तो सबसे ज्यादा असर ऐसी कंपनियों पर पड़ेगा जिनका कारोबार प्रत्यक्ष या अपत्यक्ष रुप से रेलवे पर निर्भर होता है। मसलन, सीमेंट, कोरियर और रेलवे इंफ्रा से जुड़ी कंपनियों पर इसका असर पड़ेगा। रिलायंस इंफ्रा, बीईएमएल, टीटागण वैगन और कालिंदी रेल जैसी कंपनियों पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा। इसके पीछे का कारण यह है कि रेलवे की आय बढ़ने के बाद सरकार इंफ्रा से जुड़े प्रोजेक्ट पर ज्यादा खर्च कर सकेगी।
लेकिन प्रधानमंत्री और रेलमंत्री के ट्वीट हैं हिंदी में कि सारा किया कराया पूर्ववर्ती सरकार का है। जाते-जाते कांग्रेस सरकार किराया बढ़ाकर चली गयी। हो भी सकता है। तमाम फैसले जाते-जाते पूर्ववर्ती सरकार कर गयी।
जनादेश खोने वाली जनविरोधी सरकार के जनविरोधी आदेशों को बहाल रखने की कौन सी संवैधानिक मजबूरी है, समझ में नहीं आती।
सरकार तो अपने फैसले भी वापस लेती रहती है तो मां बेटे की सरकार के फैसले को जारी रखने की कौन सी मजबूरी है कल्कि अवतार की, समझ से परे है।
सेनाध्यक्ष पद परनियुक्ति का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है तो रक्षा क्षेत्र में शत प्रतिशत प्रत्य़क्ष विदेशी निवेश भी शत प्रतिशत राष्ट्रीय सुरक्षा का माला होगा।
अगर कांग्रेसी फैसले को बहाल करने की बात रही है रेल किराये में वृद्धि तो शपथ लेने के बाद नीतिगत कैसी विकलांगकता रही होगी और राजनीतिक कौन सा बाध्यताएं रही होंगी कि इराक में तेलकुंओं में आग लगने तक फैसला वह लागू करने को इंतजार करना पड़ा!


