रोजगार बने मौलिक अधिकार-लाल बहादुर
रोजगार बने मौलिक अधिकार-लाल बहादुर
ओबरा में हुआ रोजगार अधिकार सम्मेलन
ओबरा (सोनभद्र) 13 अप्रैल 2014, खेती-बाड़ी, कल-कारखानों को विदेशी कम्पनियों और कारपोरेट घरानों के हवाले करने की रोजगारविहीन आर्थिक नीतियों को लागू करने के कारण देश में लगातार बेरोजगारी में इजाफा हुआ है। सबके लिए रोजगार का सृजन करना और योग्यतानुसार रोजगार के माध्यम से सबके लिए सम्मानजनक जीवन की गारंटी करना सरकारों की प्राथमिकता में नहीं रह गया है तथा नवउदारवादी नीतियों के दौर में तो हालात बद से बदतर होते गए हैं, जिसे वैश्विक संकट ने और गहरा ही किया है। इस स्थिति को तभी पलटा जा सकता है जब रोजगार के अधिकार को राजनीतिक मुद्दा बनाया जाए तथा इसे देश के प्रत्येक नागरिक के मूलभूत अधिकार के बतौर भारतीय संविधान के मूल अधिकारों में शामिल किया जाए।
यह बातें आज ओबरा के क्लब नम्बर दो के सभागार में आयोजित रोजगार अधिकार सम्मेलन के मुख्य वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष लाल बहादुर सिंह ने कही।
श्री सिंह ने कहा कि देश आजाद हो रहा था, गांधी जी देश के विभाजन से हताश और निराश थे, बन रहे संविधान में रोजगार को मौलिक अधिकार नहीं बनाया गया, उनके दबाब में इसे संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में डाला गया। वीपी सिंह की सरकार बनी, सरकार और राष्ट्रपति ने घोषणा भी की कि रोजगार के अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल किया जायेगा लेकिन आज तक यह नहीं हुआ और अब तो इस पर कोई भी मुख्यधारा के दलों ने शातिराना चुप्पी साध ली है। इसलिए देश के नौजवानों को अपने इस मूल अधिकार को हासिल करने के लिए आगे बढ़ना होगा।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए पूर्व आई0 जी0 एस0 आर0 दारापुरी ने कहा कि डा0 अम्बेडकर की जयंती के एक दिन पूर्व आयोजित इस सम्मेलन के माध्यम से हमें सकंल्प लेना चाहिए कि रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने, औद्योगिक प्रतिष्ठानों में स्थानीय नौजवानों के रोजगार की गारण्टी करने, ठेका मजदूरों के नियमितिकरण व वेतनमान के लिए हमें चौतरफा आंदोलन तेज करना है।
सम्मेलन को आइपीएफ के प्रदेश संगठन प्रभारी दिनकर कपूर, राजेश सचान, मणिशंकर पाठक, मोहन प्रसाद, महेन्द्र प्रताप सिंह, मधुकांत यादव, निठुरी प्रसाद आदि ने सम्बोधित किया और संचालन युवा नेता अनिरूद्ध उपाध्याय ने किया।


