रोहित वेमुला की ज़िन्दगी में नाइंसाफियों का एक अंतहीन सिलसिला...
रोहित वेमुला की ज़िन्दगी में नाइंसाफियों का एक अंतहीन सिलसिला...
रोहिथ वेमुला ... पीड़ा और विडम्बना भरे जीवन का दूसरा नाम है।
ज़ाहिर सी बात है कि दुखों का यह अकेला उदाहरण नहीं है। भारत भूमि ऐसे रोहितों से भरी हुई क्रंदन कर रही है। आज़ादी के कई दशक बाद भी यह देश अपने नौजवानों, होनहारों की बलि चढ़ती देख रहा है, और विवश है।
हिन्दुस्तान टाइम्स ने रोहिथ के बारे में लम्बी डिटेल छापी है, जिसका अनुवाद स्वर्ण कांता ने किया है। इस मजमून को देखें, तब समझ में आएगा कि सच ही हमारे इर्द गिर्द के तमाम वंचित, विवश, गरीब और अछूत लोगों का जन्म वाकई एक भयानक दुर्घटना है।
रोहित वेमुला की ज़िन्दगी में नाइंसाफियों का एक अंतहीन सिलसिला...
वह दलित था या गैर दलित, इस मुद्दे को गैर ज़रूरी तरीके से खूब उछाला गया ! सच यह है —
संध्या नवोदिता
रोहित वेमुला के जीवन की कहानी उसके जन्म लेने से 18 साल पहले शुरू हो जाती है.
1971 की गर्मियों के दिन और गुन्टुर शहर — जिसके बारे में रोहित वेमुला ने अपने अंतिम खत में लिखा था- “कुछ लोगों के लिए ज़िंदगी अपने आप में एक अभिशाप है। मेरा जन्म ही एक जानलेवा हादसा है। अपने बचपन के अकेलेपन से मैं कभी उबर नहीं पाया। बचपन से ही कभी सराहना नहीं मिली मुझे। .. मैं इस वक़्त आहत नहीं हूँ , उदास भी नहीं हूँ। बस खाली महसूस कर रहा हूँ। अपने से पूरी तरह विमुख। यह भयावह है, मारक है।”
रोहित की ‘दादी’ का नाम अंजनी देवी है जिन्हें दत्तक दादी कह सकते हैं.
अंजनी देवी बताती हैं, “तब दोपहर के खाने का वक्त होगा। धूप बहुत तेज थी। कुछ बच्चे प्रशांत नगर (गुन्टुर) में हमारे घर के बाहर नीम के पेड़ के नीचे खेल रहे थे। मेरी नजर उनके बीच खेल रही एक छोटी सुंदर सी बच्ची पर ठहर गई। बस साल भर की होगी। वो छोटी बच्ची रोहित की मां राधिका थीं। वह बच्ची बाहर से आए किसी मजदूर दंपत्ति की बेटी थी। वे हमारे घर के बाहर रेल की पटरियों पर काम करते थे। मैंने कुछ ही दिनों पहले अपनी बच्ची खोई थी। उसे देखकर मुझे अपनी बच्ची की याद आ गई।”
वे बताती हैं कि उन्होंने मजदूर दंपत्ति से बच्ची मांगी जिसके लिए वे तुरंत तैयार हो गए। हालांकि इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है। फिर नन्हीं राधिका, अंजनी देवी के घर की 'बेटी' बन गई।
अंजनी देवी कहती हैं, “जाति? कौन सी जाति? मैं वड्डेरा (ओबीसी) हूं। राधिका के माता-पिता मला (अनुसूचित जाति) थे। मैंने बच्ची की जाति के बारे में कभी नहीं सोचा। वो मेरी बेटी के समान थी। मैंने उसकी शादी अपनी जाति के लड़के से कराई।”
उन्होंने बताया कि कैसे राधिका और मणि कुमार का अंतरजातीय विवाह हुआ।
'मैंने मणि के दादा से बात की। वे वड्डेरा समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। हमने मिलकर ये तय किया कि हम मणि को राधिका की जाति के बारे में नहीं बताएंगे।'
शादी के अगले पांच सालों में राधिका के तीन बच्चे हुए - सबसे बड़ी नीलिमा, बीच में रोहित और सबसे छोटा राजा। मणि शुरू से ही गैरजिम्मेदार था और राधिका के साथ मारपीट किया करता था। नशे में थप्पड़ मार देना रोज की बात थी। शादी के पांचवे साल मणि को राधिका का सच पता चला।
अंजनी देवी बताती हैं, “प्रशांत नगर की हमारी वड्डेरा कॉलोनी में रहने वाले किसी व्यक्ति ने सारा सच बता दिया था कि राधिका गोद ली हुई और मला लड़की है। फिर तो उसने उसे खूब पीटा।”
राधिका अंजनी की बात की पुष्टि करती हैं। वे कहती हैं, “मणि पहले से ही साथ गाली-गलौज करता था, लेकिन मेरी जाति के बारे में पता चलने के बाद तो वो और हिंसक हो उठा। वह रोज मुझे पीटता और बार-बार खुद को कोसता कि एक अछूत से उसकी धोखे से शादी करा दी गई।”
यह सब देखकर 1990 में राधिका और बच्चों को अंजनी देवी अपने घर ले आईं !
मां राधिका और छोटे भाई राजा का कहना है कि रोहित के बारे में उनसे भी ज्यादा रियाज जानता है। जब पिछले महीने राजा की सगाई हुई तो रोहित की जगह रियाज ने ही सारे रीति-रिवाज निभाए. रोहित कैंपस की परेशानियों के कारण सगाई में नहीं आ सका था।
मीडिया जब रोहित के जन्मस्थान गुन्टूर पहुंचा और रोहित के सबसे नजदीकी दोस्त और बीएससी के सहपाठी शेख रियाज़ से मिला तो कुछ और ही तस्वीर उभर कर सामने आई।
रियाज कहते हैं कि वे रोहित के परिवार का हिस्सा रहे हैं। और वे जानते हैं कि क्यों रोहित ने खत में लिखा था कि उनका बचपन अकेलेपन में गुजरा।
वे बताते हैं, “राधिका आंटी और उनके बच्चों से दादी के घर में नौकरों जैसा बर्ताव होता था। सभी बैठे रहते थे और सारे घरेलू काम अकेले आंटी और उनके बच्चे किया करते थे।”
रियाज बताते हैं कि राधिका आंटी जब छोटी थी तभी से वे घर के सारे काम करती थीं। वे कहते हैं कि यदि बाल श्रम कानून 1970 में लागू हो गया होता तो राधिका आंटी से घर का काम करवाने के लिए अंजनी देवी, राधिका की तथाकथित मां, पर केस हो गया होता।
1985 में राधिका 15 साल की थी। उनकी तब मणि से शादी हो चुकी थी। बाल विवाह 50 साल पहले से ही घोषित तौर पर गैरकानूनी है।
“तब राधिका 12 या 13 साल की थीं जब उन्हें पता चला कि वे मला हैं और गोद ली गई बेटी हैं। अंजनी की मां ने, जो तब जिंदा थीं, राधिका को बुरी तरह पीटा और मला कहते हुए गालियां दीं। उन्हें घर में लाने के लिए वे अंजनी को कोस रही थीं। वो मेरे घर के पास बैठकर रो रही थीं। ”
उस इलाके सबसे पुरानी पड़ोसी 67 साल उप्पालापती दनाम्मा बताती हैं जिन्होंने रोहित की मां को तब से देखा था जब वे बहुत छोटी थीं। दनाम्मा एक दलित नेता और पूर्व नगर निगम पार्षद रह चुकी हैं।
प्रशांत नगर के वड्डेरा कॉलोनी के दूसरे पड़ोसियों का भी कहना है कि वे राधिका को घरेलू नौकरानी ही समझते थे। वड्डेरा कॉलोनी के एक व्यक्ति अंजनी देवी से नाराज दिखे कि मणि कुमार को धोखा देकर उसकी शादी एक दलित लड़की राधिका से करके अंजनी ने पूरे वड्डेरा समाज के साथ धोखा किया है।
अंजनी देवी के अपने चार बच्चे थे। दो लड़कियों का जन्म राधिका को गोद लेने के बाद हुआ था। उनका एक बेटा इंजीनियर और दूसरा सिविल कॉन्ट्रैक्टर है। एक बेटी बीएससी-बीएड और दूसरी बेटी बीकॉम बीएड है।
रियाज बताते हैं, “रोहित को अपनी दादी के घर जाना बिलकुल पसंद नहीं था, क्योंकि वो जब भी वहां जाते अपनी मां को नौकरों की तरह काम करते हुए देखते। राधिका आंटी घर पर न हो तो सारे काम उनके बच्चों से करवाए जाते थे। ये सिलसिला तब भी जारी रहा जब वे एक किलोमीटर दूर अलग एक कमरे के घर में रहने लगे थे।”
गुन्टूर में बीएससी की पढ़ाई के दौरान रोहित घर पर शायद ही कभी जाते थे। वह रियाज और दो दूसरे लड़कों के साथ ही रहते थे। जरूरत के लिए वे कभी मजदूरी या केटरिंग ब्यॉय का काम करके कुछ पैसे कमाते थे। कभी-कभी वे पैसों के लिए प्रदर्शनी में काम करते और पर्चे भी बांटते।
ये हैं रोहित वेमुला की ज़िंदगी की कड़वी सच्चाइयाँ जिनसे रोहित पहले से जूझ रहे थे। जाति दंश हमारे समाज में कितना गहरे धंसा है, इसे बचपन से ही रोहित ने महसूस किया था। पीएचडी करने के मुक़ाम तक पहुँचने के लिए उसे घर और बाहर एक लंबे संघर्ष से गुज़रना पड़ा था।
— सुदीप्त मंडल के लेख Forced labour for ‘grandmother’: Inequality defined Rohith Vemula’s life का हिंदी अनुवाद - Swarn Kanta का आभार व hindustan times का आभार
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