रोहित सरदाना के गुरू ने दी नसीहत
अंधराष्ट्रवाद तथा अवसरवाद की आँधी में उड़ने से अपने को बचा लो
नई दिल्ली। "ताल ठोक कर" संघ परिवार की "Zee" हुजूरी करने वाले Zee न्यूज़ के एंकर रोहित सरदाना के गुरू रहे वरिष्ठ टीवी पत्रकार मुकेश कुमार ने उन्हों नसीहत दी है कि वे (रोहित सरदाना) अंधराष्ट्रवाद तथा अवसरवाद की आँधी में उड़ने से अपने को बचा लें।

मुकेश कुमार ने फेसबुक पर लंबा पोस्ट किया है। पढ़िए उनकी असंपादित पोस्ट As it is

सहारा के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ चैनल के लिए टीम बनाते वक़्त मैंने लगभग 10 एंकर चुने थे, जिनमें से तीन प्रमुख थे- अख़्लाक़ उस्मानी, रोहित सरदाना और अनंत भट्ट। तीनों ही युवा, तेज़तर्रार और प्रतिबद्ध। तीनों के बीच आपस में ज़बर्दस्त टीम भावना थी। वे एक दूसरे का सहयोग करते थे, लेते थे। चैनल की तुरंत सफलता और तीन महीने के अंदर नंबर वन बनने में यूँ तो पूरी टीम का ही योगदान था मगर इनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण थी। बाद में जैसा कि होता है सब इधर-उधर हो गए।

मुझे अच्छा लगता है जब अख़्लाक़ अख़बारों और टीवी चैनलों में इस्लाम के नाम पर चलाए जा रहे जिहाद की बखिया उधेड़ते हैं, वहाबी सेक्ट की ज़हरीली विषबेल और उसको सींचने वाली ताक़तों को ढेरों सूचनाओं के साथ उजागर करते हैं। अनंत भट्ट के काम को मैं ज़्यादा देख नहीं पाया, इसलिए कह नहीं सकता कि उन्होंने कैसा किया।

मगर अब जब रोहित सरदाना को ज़ी न्यूज़ पर देखता हूँ तो दुख होता है कि एक अच्छा-भला एंकर ऐसा क्यों हो गया। चारों तरफ उनकी जिस तरह निंदा-भर्त्सना हो रही है, उसे देखकर अपने चयन पर अफसोस भी होने लगता है। ऐसा नहीं है कि मैं उन्हें नहीं चुनता तो वे आगे नहीं बढ़ पाते। मगर निमित्त मैं क्यों बना ये मलाल तो होता ही है।

पता नहीं, ये ज़ी न्यूज़ के माहौल, वहाँ के मालिकों का दबाव या संपादकीय नीतियों की वजह से हुआ या फिर उनके अंदर पहले से ही ये प्रवृत्ति थी जो मौका मिलने पर फलने-फूलने लगी। इतनी कटुता, इतना उन्माद, इतने सारे दुराग्रहों के साथ कोई एंकरिंग करे, ये इस विधा के लिए लज्जा की बात है। आग्रह, विचार सभी के होते हैं और होने भी चाहिए। मगर उन्हें एक अभियान की शक्ल में जिहादी की तरह स्क्रीन पर उड़ेल दिया जाए, ये कतई स्वीकार्य नहीं हो सकता।

हालाँकि रोहित मानेंगे नहीं मगर इतनी गुज़ारिश तो करूँगा कि वे अपने स्वामियों और संपादकों की कठपुतली न बनें। उनके उद्देश्य क्या हैं और उनकी छवियाँ क्या हैं इससे पूरी दुनिया परिचित हो चुकी है, मगर आप उनसे जुड़कर एक अच्छे पत्रकार-एंकर के रूप में अपनी पहचान नष्ट कर रहे हैं, बल्कि कर चुके हैं। लेकिन कभी भी देर नहीं होती। कहते हैं न जब जागे तभी सवेरा। इसलिए भाई जागो और इस अंधराष्ट्रवाद तथा अवसरवाद की आँधी में उड़ने से अपने को बचा लो।

एक अन्य पोस्ट में मुकेश कुमार ने लिखा-
वीडियो से छेड़छाड़कर किसी को बदनाम करना या देश में उपद्रव, अशांति तथा तनाव का वातावरण पैदा करना न केवल पत्रकारिता की आचरण संहिता के विरुद्ध है बल्कि भारतीय दंड सहिता के तहत भी गंभीर अपराध है। अब ऐसे लोगों के खिलाफ़ मामला दर्ज़ करके कार्रवाई की जानी चाहिए और उन चैनलों के लायसेंस रद्द किए जाने चाहिए जिन्होंने ये जघन्य काम किया है।

पुलिस और सरकार शायद ये न करे, क्योंकि इसमें उनकी मिलीभगत हो सकती है। लेकिन न्याय के लिए लड़ने वालों को इसे अदालत तक ले जाना चाहिए। अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो सुप्रीम कोर्ट खुद इसका संज्ञान लेकर कार्रवाई करे। ऐसी न्यायिक सक्रियता का सब स्वागत करेंगे। ये देश पर उसका बडा एहसान होगा। इससे पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की गिरती साख भी बचेगी और भविष्य में इस तरह का कुकर्म करने से लोग बाज़ आएँगे।