राकेश अचल

दिल्ली का लाल किला (Red Fort of Delhi) सरकार ने डालमिया समूह को क्या दे दिया, पूरा देश लाल-पीला हो रहा है। सरकार के फैसले पर देशव्यापी प्रतिक्रिया से जाहिर है कि हमें अपने अतीत से कितना लगाव है। हम अपनी धरोहरों को हिन्दू-मुसलमान नहीं मानते, सरकार मानती हो तो मानती रहे। सरकार ने किला योजना बनाकर कायदे-क़ानून से दिया है, इसलिए हमें इस बारे में ज्यादा कुछ कहना अप्रासंगिक लगता है।

There are not one but hundreds of buildings of great importance like Red Fort in the country and an organization to handle them is the Archaeological Survey of India Department.

देश में लाल किले जैसे पुरा महत्व की एक नहीं सैकड़ों इमारतें हैं और इन्हें सम्हालने के लिए एक संगठन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग है। मजे की बात देखिये कि पुरानी धरोहरों को सहेजने की अक्ल भी हम भारतीयों को नहीं बल्कि एक अंग्रेज अलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham in hindi) को आई और उसने 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग बना दिया। ये संस्था शोध और संरक्षण का कार्य करती है और बीते 157 साल से ये संस्था अपना काम बखूबी कर रही है, इस काम के लिए इस संस्था ने देश को 27 सर्किलों में विभक्त कर रखा है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अब तक 30 निदेशक हुए हैं, लेकिन इससे पहले के 29 में से एक ने भी देश की किसी पूरा सम्पदा को ठेके पर देने का प्रस्ताव सरकार को नहीं दिया, किन्तु राष्ट्रभक्त मौजूदा निदेशक सुश्री ऊषा शर्मा को पता नहीं कहाँ से ये ख्याल आ गया कि लालकिले जैसे बड़े स्मारकों का रखरखाव निजी हाथों को सौप दिया जाए ?

सुश्री ऊषा जी हरियाणा की अभिनेत्री और नृत्यांगना हैं, उनकी पुरा सम्पदा के बारे में कितनी समझ है, मैं नहीं जानता, लेकिन उन्हें कांग्रेसी होते हुए भी मौजूदा सरकार ने बर्दाश्त किया है। मुझे नहीं लगता कि लालकिले को निजी हाथों में देने का प्रस्ताव उनका अपना होगा, लेकिन वे इस तरह के प्रस्ताव का शायद विरोध न कर पाईं हों और ऊपर से आए प्रस्ताव पर उन्होंने अपनी मौन सहमति दे दी हो।

मेरी खोजबीन से पता चला है कि लालकिले को डालमिया को देने का अनुबंध (Contract to give Red Fort to Dalmia) पर्यटन मंत्रालय ने किया है, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण वाले तो हस्ताक्षरों के समय मूकदर्शक थे।

सवाल ये है कि लालकिला के भविष्य का फैसला करने वाला आखिर कौन सा महकमा है? पर्यटन मंत्रालय या भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ? दोनों ने मिलकर ये फैसला सितंबर 2017 में किया था, लेकिन पहला अनुबंध करने में इन्हें सात महीने लग गए।

भारत में पुरातत्व महत्व की धरोहरों की संख्या इफरात में है और इनमें से अधिकाँश की हालत खराब भी है, इसलिए मुमकिन है कि आने वाले दिनों में आप देश में मौजूद विश्व धरोहर सूची में शामिल देश की 36 अन्य धरोहरों को भी लालकिले की ही तरह निजी हाथों में जाते हुए देखें और कुछ न कर पाएं। सरकार की योजना देश के 118 उन स्मारकों को भी ठेके पर देने की है जहां आज टिकिट से प्रवेश है। सरकार के पास पुरा महत्व के 3686 स्थल और हैं, यदि आप में माद्दा है तो आप भी इनके प्रबंधन से जुड़ सकते हैं।

मैंने दुनिया के अनेक देशों में जाकर देखा है कि वहां पुरा महत्व के स्थलों का रखरखाव भारत के मुकाबले बहुत उच्च स्तर का है।

अमरीका जैसे समृद्ध देश में, जहाँ भारत के मुकाबले दशांश भी पुरा सम्पदा नहीं है, वहां छोटे-छोटे स्मारकों का प्रबंधन देखने लायक है। भारत सरकार के पास पीने का पानी, चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार, बिजली के लिए तो पैसा है नहीं ऐसे में पुरा महत्व के स्थलों का रखरखाव वो कैसे करे, ये एक बड़ी समस्या है। शायद 'अडॉप्ट ऐ हेरिटेज' योजना इसी मजबूरी की उपज है और इसकी आलोचना कर देश कुछ हासिल नहीं कर पाएगा।

हमें और आपको बुरा तो लग रहा है किन्तु हमें डालमिया भारत समूह के प्रबंध निदेशक पुनीत डालमिया पर भरोसा करना पडेगा कि वे लालकिले को हर तरीके से उसकी पुरातात्विक हैसियत के हिसाब से समृद्ध करेंगे। यदि ये प्रयोग सफल रहता है तो भारत को पर्यटन उद्योग से अच्छी खासी आमदनी हो सकती है, बस शर्त यही है कि पुरा समपदा के मित्र बन कर खड़े होने वाले ये घराने यहां धंधा न करने लगें, इन स्थलों के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ न करें और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियमों से छेड़छाड़ न करें, टिकिटों के दाम न बढ़ाएं, पर्यटकों से लूटमार न करें और इन स्मारकों का अन्य व्यावसायिक इस्तेमाल न करें।

मैंने अमरीका और चीन में पुरा साम्पदा के रखरखाव को देखा है। चीन में तो हालात भारत से थोड़े से ही बेहतर हैं, लेकिन अमरीका में छोटे-छोटे सैन्य किलों तक से वहां का पूरा सम्पदा विभाग खूब कमा रहा है। इसके पीछे ईमानदारी है, समर्पण है और देश प्रेम है, लूटमार नहीं। 77 साल पुराना डालमिया समूह लालकिले पर पांच साल में 25 करोड़ रुपया खर्च कर कितना क्या सुधर कर पाएगा, ये इस नयी परियोजना का भविष्य भी तय करेगा।

तकलीफ की बात ये है कि देश में जब कोई नयी परियोजना शुरू होती है तब देश उस पर ध्यान नहीं देता।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विश्व पर्यटन दिवस पर 27 सितंबर 2017 को इस योजना का श्रीगणेश किया था अब इस योजना को लेकर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की आजादी के प्रतीक लाल किले को कॉरपोरेट के हाथों बंधक रखने की तैयारी कर रहे हैं। सुरजेवाला ने कहा कि क्या आप लाल किला जैसे स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतीक को रख-रखाव के लिए अपने कॉरपोरेट दोस्तों को दे सकते हैं?

तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, क्या सरकार हमारे ऐतिहासिक लाल किले की देखभाल भी नहीं कर सकती? लाल किला हमारे राष्ट्र का प्रतीक है। यह ऐसी जगह है जहां स्वतंत्रता दिवस पर भारत का झंडा फहराया जाता है। इसे क्यों लीज पर दिया जाना चाहिए? हमारे इतिहास में निराशा और काला दिन है।

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