लालकिले पर गीता महोत्सव का आशय फिर वही मुक्तबाजारी नस्ली वर्चस्व।
लालकिले पर गीता महोत्सव का आशय फिर वही मुक्तबाजारी नस्ली वर्चस्व।
योजना आयोग खत्म इसलिए क्योंकि वह सुधार अश्वमेध के माफिक नहीं।
कुल मिलाकर यह देश फिर वही महाभारत है और धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे हर कोई वध्य है जो निमित्त नियतिबद्ध हैं और सता के नस्ली वर्चस्व के लिए विधर्मी विदेशी हैं, भारतीय नागरिक हरगिज नहीं।
इस हिंदुत्व के आलम का नतीजा यह कि मुसलमानों में केसरियाकरण इतना तेज हुआ है कि 53 साल से बाबरी मस्जिद की लड़ाई लड़ने वाले हाशिम साहब अब मोदी महाराज की कदमबोशी के लिए बेताब हैं।
मुक्तबाजारी नस्ली रंगभेदी हिंदुत्व के एजेंडे में अल्पसंख्यकों का यह हाल है तो दलितों, आदिवासियों के सारे राम और बीरसा हनुमान हुए जा रहे हैं।
आनंद तेलतुंबड़े के मुताबिक दलितों पर अत्याचार बढ़ गये हैं और अल्पसंख्यकों का जीना हराम हो गया है।
हस्तक्षेप में पटना में प्रतिरोध के सिनेमा की रपटे सिलसिलेवार जो हस्तक्षेप में छपी हैं, उन्हें जरुर पढ़लें, क्योंकि उन्हें पढ़े बिना हमारे लिखे का संदर्भ प्रसंग समझ में नहीं आयेगा। जिसके बिना यह कयामत तो जारी ही रहनी है और हो हल्ला मचाने की नौटंकी से मजमा लगेगा जरूर, पैसे भी होंगे वसूल जरूर, लेकिन हालात नहीं बदलेंगे।
गौर तलब है कि बाबरी मस्जिद के मुख्य मुद्दई हाशिम अंसारी ने गुरुवार को मामले के हल के लिए पीएम मोदी से मिलने की बात कही है। इससे पहले उन्होंने इस मुकदमे की पैरवी नहीं करने और रामलला को आजाद करने की बात कही थी। साथ ही, उन्होंने इस मामले के समाधान के लिए हनुमानगढ़ी के महंत और अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष ज्ञानदास के अलावा अयोध्या के अच्छे और ईमानदार हिंदुओं का साथ भी मिलने की बात कही है।
बिल्कुल सही कहा है कि आर्य वंशज हिंदुत्व की शरण में जाये बिना धर्मोन्मादी हिंदुत्व को अपनाये बिना इस देश में पिलव्कत किसी के वजूद का कोई मतलब ही नहीं ठहरा।
हाशिम साहेब के कहे का मतलब अक्षरशः तब तक नहीं समझ में आयेगा जब तक कि न अंधेरा चीरकर हम रोशनियों के जलवे से इस कयामत का रेशां-रेशां बेनकाब कर पायें।
हम नहीं मानते कि हाशिम साहेब रातोंरात बदल गये होंगे। बदले वे हालात हैं, जिनमें उन्हें मोदी की शरण में जाने के अलावा कोई राह नहीं सूझ रही है। यह बहुसंख्य जनगण की हालत है जो बदलते हालात में असहाय और लाचार हो गये हैं।
हमें और बारीकी से पढ़ने की जरुरत है कि उन्होंने क्यों कहा, "जो लोग मेरी मुखालफत करते हैं, वह चाहते हैं कि रामलला जेल में रहें और वह एमपी, एमएलए बनते रहें।" यही नहीं, हाशिम ने नरेंद्र मोदी की शान में कसीदे भी पढ़ डाले। उन्होंने कहा, "मोदी अच्छे आदमी हैं। उनकी ‘हिसाब दो’ वाली नीति काफी अच्छी है, क्योंकि राजनीति करने वाले हुकूमत का पैसा लेकर फायदा उठाते हैं। मोदी ठीक कहते हैं कि पहले जो पैसा दिया है, उसका हिसाब दो। कम से कम जो एमपी और एमएलए पैसा लेकर आते हैं और खर्च नहीं करते उनसे हिसाब तो मांग रहे हैं।"
गीता महोत्सव, संस्कृत का अनिवार्य पाठ और इंडिया टीम का समवेत स्वर साध रहे हैं हाशिम साहेब और तमाम दूसरे लोग, जिनके साथ हम कभी खड़े ही नहीं थे। हम उनसे बेवफाई की शिकायत करने के तो कतई हकदार ही नहीं हैं।
हमने शुरु से लिखा है कि लालकिले पर गीता महोत्सव का आशय यह है कि दावे अब सिर्फ अयोध्या, मथुरा और काशी पर नहीं हैं। दावे दिल्ली की तमाम ऐतिहासिक निर्माण पर है तो सारी पुरातात्विक विरासतें भी दांव पर हैं। इतिहास भूगोल दांव पर है। दांव पर है सभ्यता, संस्कृति, मनुष्यता, प्रकृति और पर्यावरण भी।
मुझे हिचक नहीं कि हाशिम साहेब इस आशय को बेशक समझ गये हैं और रामलला की शरण में जाकर मुसलमानों के लिए अमन चैन मांगने की यह तरकीब निकाली है उन्होंने। मौजूदा हालात में जिसे गलत भी नहीं ठहराया जा सकता है ।
मोदी महाराज का राजकाज
दरअसल हमारे सामने चुनौती यह भी है कि न सिर्फ अस्मिताओं के आर पार, बल्कि भाषाओं और बोलियों, साहित्य और संस्कृति के माध्यमों और विधाओं की दीवारे तहस नहस करके भारत जोड़ने का कार्यभार है हम पर।
मोदी महाराज जो भी जो कह रहे हैं, जो उनका राजकाज है और विकास की जो उनकी परिकल्पना है और उनका जो हीरक चतुर्भुज है, उसका आशय लाल किले पर गीता महोत्सव से खुलता है।
उसका नाता सीधे संस्कृत के अनिवार्य पाठ के लेकर स्मृति ईरानी की अति सक्रियता है और सोवियत माडल योजना आयोग को खारिज करते हुए नई टीम इंडिया की पेशकश करते हुए मोदी का खुल्लमखुल्ला ऐलाने जंग है कि योजना आयोग सुधारोन्मुख विकास के माफिक नहीं है।
इससे भी दिमाग की बत्ती नहीं जली तो विदेश मंत्री का विश्व हिंदू परिषद, दुर्गा वाहिनी, बजरंगी दल समेत संघ परिवार के नेतृत्व पर खुल्ला दावा है, जो अब न विदेश मंत्री बतौर सक्रिय है और न देशहित में उनकी राजनयिक कोई भूमिका है और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का पताका उठाते हुए भगवत गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने का ऐलान कर रही हैं वे।
सुषमा स्वराज ने रविवार को लाल किला मैदान में गीता की '5151वीं वर्षगांठ' पर कहा था कि इसे राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की बस औपचारिकता मात्र बाक़ी है।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस बयान पर विवाद धर्म बनाम धर्मनिरपेक्षता का फर्जी महाभारत छिड़ गया है और विपक्षी पार्टियों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
संघ परिवार के हिंदुत्व एजेंडे में फर्जी जिहाद के तमाम सिपाहसालारों की अपनी अपनी रंग बिरंगी दुरंगी भूमिका है और इसका खुलासा हम बार-बार करते रहे हैं।
कुल मिलाकर यह देश फिर वही महाभारत है और धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे हर कोई वध्य है जो निमित्त नियतिबद्ध हैं और सता के नस्ली वर्चस्व के लिए विधर्मी विदेशी हैं, भारतीय नागरिक हरगिज नहीं।
इसी के बीच जो अमेरिका हम बनने को बेताब हैं, उस जन्नत की हकीकत भी वहीं सनातन नस्लवाद है और अमेरिका में पुलिस के हाथों कई अश्वेत लागों की हत्या के विरोध में प्रदर्शन जारी है।
काश्मीर आख्यान
श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 1983 के बाद पहली बार किसी ने इस स्टेडियम में रैली करने की हिम्मत की है। मोदी ने कहा कि पहाड़ का पानी और जवानी देश के काम आना चाहिए। भाजपा ने इस रैली में एक लाख लोगों के जुटने का दावा किया है। मोदी ने कहा कि सरकार बनने के बाद मैं हर महीने जम्मू-कश्मीर आया हूं। पीएम ने कहा कि कश्मीर के लोगों के प्यार को मैं विकास के साथ वापस लौटाऊंगा। मोदी ने कहा कि कश्मीर में पानी से बिजली पैदा होगी, तो मुसीबत दूर होगी। मोदी ने कहा कि कश्मीर में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं ..
बहराहाल, चुनाव नतीजे चाहे कुछ हो, हकीकत यह है कि काश्मीर में अभी उम्मीदें बाकी हैं जिसे आर्थिक सुधारों के अबकि राष्ट्रीयझंडा लेकर संविधान मनाने वाले अश्वमेध से रौंदता जा रहा है नस्ली धर्मोन्मादी सत्तावर्ग।
काश्मीर में राष्ट्रीय झंडे के साथ संविधान दिवस मनाने का तात्पर्य जिनके समझ में नहीं आया वे गौर करें कि जम्मू कश्मीर में प्रथम चरण के चुनाव में हुए रिकार्ड मतदान को दोहराते हुए दूसरे चरण में भी 71 फीसदी मतदान हुआ है।
वहीं, अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार के आह्वान को 18 सीटों पर मतदाताओं ने फिर से नजरअंदाज कर दिया।
मोदी की रैली के दौरान शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम के आसपास सेना ने सुरक्षा बेहद कड़ी कर दी और श्रीनगर शहर को किले में तब्दील कर दिया गया। खुद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर हर घंटे सुरक्षा इंतजामों की समीक्षा कर रहे हैं।
यह बात कुछ समझने वाली नहीं है।
बायोमेट्रिक डिजिटल देश में आंतरिक सुरक्षा का आलम यह और प्रधानमंत्री काश्मीर की बुनियादी समस्याओं को बिना छुए मुक्ताबाजारी हिंदुत्व राग अलपते हुए कहते हैंः सरकार में इरादा है, तो वह बदलाव ला सकती है, लेकिन जम्मू कश्मीर की सरकारों ने कभी जनता की परवाह नहीं की।
सिर पर पगड़ी पहने हुए मोदी ने कहा कि मैं अभिभूत हूं कि मुझे प्रेमनाथ डोगरा की पगड़ी पहनाई गई। मोदी ने कहा कि भाजपा का मंत्र है सबका साथ, सबका विकास। मोदी ने कहा कि विस्थापितों का गुनाह क्या था, कि वो देश के लिए मर मिटने वाले लोग थे।
कालाधन बाबा, कालाधन राजनीति
मजा इस बात का भी लीजिये कि विदेशों से कालाधन वापस लाने के मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए योगगुरु बाबा रामदेव ने अब मोदी सरकार को चेतावनी दी है। बाबा रामदेव ने कहा कि कालाधन वापस लाने के लिए जनता ने मोदी सरकार को मौका दिया है। एक वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक अगर सरकार कालाधन वापस लाने में किसी तरह की सुस्ती दिखाती है तो वह एक बार फिर रामलीला मैदान में उतरेंगे और पूरे देश में आंदोलन करेंगे। हालांकि रामदेव ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादे पर पूरा भरोसा है।
ये वे बाबा हैं जो बुरका पहनकर रामलीला मैदान से भागे थे और भ्रष्टाचर विरोधी कालाधन वापस लाओ ब्रिगेड के अन्यतम सिपाहसालार हैं।
इस ब्रिगेड का आधा अब सत्तादखल के लिए संघ परिवार से साझा के लिए शिवसेना मोड में है। आधा हकीकत आधा फसाना अजब गजब अफसाना है।
मोदी की आराधना है तो भाजपा के खिलाफ गाना बजाना है और सत्ता में शामिल हो जाना है।
आधा ब्रिगेड अन्ना और किरन बेदी हैं जो भाजपा नत्थी हैं।
अब कालाधन का किस्सा भी यह कि स्विटजरलैंड सबूत मांग रहा है और मारीशस हांगकांग के रास्ते कालाधन सफेद होकर विदेशी निवेशको की आस्था के साथ साथ ग्लोबल हिंदुत्व है और वही नहीं, अमेरिका इजराइल की अगुवाई में हिटलर मुसोलिनी के अधूरे काम यानी अनार्यों के सफाया का एजेंडा है।
तो बाबा फिर देश परिक्रमा के तेवर पर हैं और चूंकि वे अपनी कंपनियों के सीईओ है तो देश के सीईओ के खिलाफ उनकी इस ब्रांड बूस्टिंग सफारी का पाठ मौजूदा सत्ता विमर्श और समीकरण व्याकरण को समझने में मददगार होगा जरुर।
मत चूको चौहान।
सोलह दिसंबर का जश्न
द्रोपदी न होती तो महाभारत न होता।
दरअसल असली कुरुक्षेत्र तो द्रोपदी की देह पर ही लड़ा गया।
उसी द्रोपदी देहे किंतु कुरुक्षेत्रे धर्मक्षेत्रे जन्म जन्मातर कर्मफल नियतिबद्ध निमित्तमात्र कोवद्य़बना देने का गीता प्रवचन है जो भगवान के बोल हैं, वे दरअसल नवनाजीवादी विमर्श हैछगैरजरुरी विजातीय जनसंख्या का सफाया।
स्त्री देह आखेट ही महाभारत का प्रस्थानबिंदु है तो मनुस्मृति का स्त्री को शूद्र बताने का विधान ही हिंदुत्व है तो हिंदू साम्राज्यवाद की नींव भी वही भागवत गीता है जिसे एक दूसरी कलिकालीन स्त्री राष्ट्रीय ग्रंथ बनाने की प्रस्तावना कर रही हैं।
सारे कांड लंकाकांड से लेकर अयोध्या कांड राजधानी के गर्भनाल से जुड़े हैं, जहां बांग्ला बोलने वाले तमाम लोग बांग्लादेशी है तो नेपाली गुरखे हैं और बाकी हिमालय के लोग रंगरुटों और बर्तन मांजो जमात है और स्त्री देह आखेट है।
O- पलाश विश्वास


