लालकृष्ण आडवाणी का पश्चाताप !
लालकृष्ण आडवाणी का पश्चाताप !
लालकृष्ण आडवाणी
श्री लालकृष्ण आडवाणी का नाम इतिहास में देश को हिन्दू फासीवाद की और धकेलने के लिए याद किया जायेगा। उनकी सज्जनता सौम्यता एक कुटिल आवरण है जो आरएसएस के लोगों को बचपन से सिखाया जाता है कि किस तरह से भोले भाले लोगो को अपने जाल में फंसाया जाये और उनके भीतर मुस्लिम विरोध की भावना को तमाम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीको से भरा जाये।
श्री आडवाणी संघ गिरोह के सबसे कुशल रणनीतिकार रहे। 1980~90 के दशक में इन्होंने राष्ट्रवाद की चेतना को हथिया कर हिन्दू साम्प्रदायिकता को ही राष्ट्र का पर्याय बना दिया अयोध्या प्रकरण का सहारा लेकर। धर्मनिरपेक्ष दल और अन्य प्रगतिशील ताकतें श्री आडवाणी की रण नीति का प्रभावी मुकाबला न कर सकीं।
जिन्ना पर उनका बयान मात्र एक tactical statement था।
हमें याद रखना चाहिए कि साम्प्रदायिकता का अपना mechanism ही यह है कि इसे लगातार उग्र और महीन होना ही होता है। फिर चूंकि इसे भी लोकतान्त्रिक चौहद्दी में ही काम करना है, इसलिए इसे अपनी hegemony और इज़्ज़त भी बनाये ही रखनी होती है। इसलिए हर तरह के किरदार इसमें रखे जाते हैं।
अगर कोई समझ रहा कि श्री आडवाणी के frustration या कथनों का इस्तेमाल वर्तमान सरकार के खिलाफ किया जा सकता है तो यह भूल है।
आज तक तो ऐसा नहीं हुआ कि फासीवादी सोच के नेताओ में पश्चाताप का भाव आया हो और उन्होंने सच बोलने का नैतिक साहस दिखाया हो।
आलोक वाजपेयी


