ले जलवा पीपीपी मॉडल गुजराती!
ले जलवा पीपीपी मॉडल गुजराती!
कैग का खुलासा- रिलायंस, अदानी को गुजरात सरकार ने पहुंचाया करोड़ों का फायदा, 25 हजार करोड़ रुपए की वित्तीय अनियमितताएं
पलाश विश्वास
गुजरात मॉडल का जलवा यह कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व के पहले बजट पर ही नगाड़ों की चोट के साथ ऐलान हो गया कि भारत दुनिया में सबसे बड़े पीपीपी बाजार के रुप में उभरा है। करीब 900 परियोजनाएं विकास के विभिन्न चरणों में हैं।
गुजरात मॉडल का जलवा यह कि कैग (भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) ने गुजरात सरकार पर रिलायंस और अदानी सहित कई दूसरी कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया है। कैग ने अपनी रिपोर्टों में कहा है कि राज्य सरकार द्वारा करीब 25 हजार करोड़ रुपए की वित्तीय अनियमितताएं की गईं और इनमें से 1500 करोड़ रुपए का इस्तेमाल रिलायंस पेट्रोलियम, एस्सार पावर और अदानी ग्रुप सहित अन्य कई कंपनियों को फायदा पहुंचाने में किया गया। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की है।
आम बजट पेश होने से पहले भारतीय रेल के निजीकरण का शुभारंभ हो गया। यह निजीकरण भी चरित्र में पीपीपी है, जो बुनियादी तौर पर गुजरात मॉडल है जिसका खुलासा ताजा कैग रपट में हुआ भी है।
देश भर में सरकारी स्कूल और अस्पताल अब पीपीपी होंगे। दसों दिशाओं में खुलने वाले आईआईटी, आईएमएस, आईआईएमएस सब कुछ पीपीपी मॉडल पर।
देश में सबसे मुखर मोदी विरोधी अग्निकन्या ममता बनर्जी और बिहार के पूर्व मुख्ममंत्री नीतीश कुमार दोनों इसी पीपीपी गुजरात मॉडल के खासमखास पैरोकार हैं, जबकि धर्मनिरपेक्षता के वे सबसे बड़े स्वयंभू झंडेवरदार भी हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में ऐलान किया था कि सभी जिलों में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मोड में उच्चस्तरीय अस्पताल खुलेंगे। वहां राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लाभान्वितों को विशेष सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी। सुपर स्पेशिलिटी सुविधाओं का भी प्रावधान होगा। दूसरी ओर ममता बनर्जी सेजविरोधी नंदीग्राम सिंगुर आंदोलन के जरिये सत्ता में आयीं और पैंतीस साल के वाम अपशासन का अंत किया, पूरे विश्व भर में यह किंवदंती फैल गयी है। जबकि आंदोलन करने वाले और थे, जिसका कुछ खुलासा पिछली संसद के बागी सांसद कबीर सुमन ने किया है। फर्क यह कि आंदोलनकारी सत्ता में नहीं होते और आंदोलन का नकदीकरण ही सत्ता त्रिकोणमिति है। अंबेडकरी, वामपंथी और गांधीवादी, समाजवादी आंदोलन की भी यही कथा व्यथा है। आंदोलन हाशिये पर सत्ता सिर मत्थे। अब वही ममता बनर्जी सेज के नवीनतम केसरिया संस्करण प्रस्तावित सौ स्मार्ट सिटीज में से दस बंगाल के नाम करने की अर्जी लेकर अगस्त में दिल्ली जा रही हैं। और तो और, दीदी तो अब शांतिनिकेतन को भी स्मार्ट सिटी बना देना चाहती हैं।
संसद में बजट पर चर्चा और वित्त विधेयक पास करने में सर्वदलीय गतिविधियों से जनसंहारी गुजरात मॉडल के सर्वव्यापी सत्य बन जाने के आसार हैं।
शैतानी औद्योगिक गलियारों, एक्सप्रेस वे, बुलेट ट्रेन, सेज महासेज और स्मार्ट सिटी के लिए अपना अपना हिस्सा बटोरने के लिए रंग बिरंगी राज्यसरकारों में बारकायदा विचारधाराओं के फेंस तोड़कर मारामारी है।
इस पर चर्चा से पहले जलवा गुजरात मॉडल का।
रिलायंस को पहुंचाया फायदा
कैग की रिपोर्टें बजट सत्र के आखिरी दिन शुक्रवार को गुजरात विधानसभा में पेश की गईं। 'इकोनॉमिक सेक्टर' पर कैग की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात मैरीटाइम बोर्ड ने कैप्टिव जेट्टी अग्रीमेंट के तहत रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड से गलत शुल्क चार्ज किया। इस कदम से सरकार को 649.29 करोड़ रुपए कम हासिल हुए।
एस्सार को फायदा
कैग ने गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) के मामलों पर भी रिपोर्ट पेश की। इसमें कहा गया कि बिजली खरीद संबंधी समझौता पूरा होने के बाद भी जीयूवीएनएल ने डिलीवरी को लेकर कदम नहीं उठाया। इसकी वजह से एस्सार पावर गुजरात लिमिटेड को 587.50 करोड़ रुपए का अनुचित फायदा मिला।
अदानी को फायदा
ऑडिट एजेंसी ने कहा कि अदानी ग्रुप के स्वामित्व वाले मुंद्रा बंदरगाह पर फेज एक के तहत हो रहे निर्माण कार्यों पर निगरानी नहीं करने की वजह से सरकार को 118.12 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
वित्तीय प्रबंधन पर राज्य सरकार की आलोचना
कैग ने अपनी रिपोर्ट में गुजरात सरकार द्वारा सोलर कंपनियों को ज्यादा पैसा देने के कदम की भी आलोचना की। रिपोर्ट में कहा गया, जीयूवीएनएल द्वारा सोलर पॉलिसी के तहत ज्यादा अनुबंधों की वजह से राज्य के उपभोक्ताओं पर 473.20 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ आया।
गुजरात के वित्तीय प्रबंधन मामलों पर कैग ने 'स्टेट फाइनेंसेस' नाम से अपनी रिपोर्ट पेश की। इसमें ऑडिट एजेंसी ने खराब वित्तीय प्रबंधन के मामले पर राज्य सरकार की आलोचना की। रिपोर्ट में कहा गया कि दो ऐसे मौके आए जब 13,049.67 करोड़ रुपए के ग्रांट्स बिना इस्तेमाल के रह गए।
राजस्थान में तो जनवितरण प्रणाली भी अब पीपीपी है तो बंगाल में पीपीपी धूम धड़ाका जारी है।
दूसरी तरफ इस धारीदार विकास कामसूत्र में खाद्यसुरक्षा और गरीबी उन्मूलन की उदात्त घोषणाएं, भ्रष्टाचार मुक्त देश के लिए काला धन वापसी की इबारते भी काढ़ी जा रही हैं।
भारतीय राजनीति और विदेश नीति तेल अर्थव्यवस्था और तेलयुद्ध के हितो के साथ नत्थी हैं तो भारत आतंक के विरुद्ध अमेरिका के युद्ध में अरब देशों के साझा दुश्मन इजराइल का साझेदार भी है।
भारतीय संसद में विदेश मंत्री ने गाजा संकट पर बाकी मसले जोड़कर इस मामले को डायल्यूट ही नहीं किया जो कहा वह नई दिल्ली स्थित इजराइली दूतावास की ब्रीफिंग में सीमाबद्ध।
भारतीय संसद या भारत सरकार की तरफ से अभी तक गाजा पर इजराइली हमले की आधिकारिक निंदा हुई नहीं है।
लेकिन हैरतअंगेज ढंग से भारत ने संयुक्त राष्ट्र के इजराइल के विरुद्ध प्रस्ताव का समर्थन कर दिया। तो खाद्यसुरक्षा कानून बदलने पर उतारु भारत सरकार विश्व व्यापार संगठन में खाद्यसुरक्षा सुनिश्चित करने की शर्त पर अड़ गयी।
गौरतलब है कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार भी वृंदावन वन वीथिका में गीतगोविंदम अभिसार की इस शास्त्रीय प्राविधि का अनुसरण करती रही है। फिर वही ढाक के तीन पात अर्थात् हाथी के दांत दिखाने के और, तो खाने के और।
भारत ने अपनी संसद में इजराइल का बचाव करके इजराइल को संतुष्ट कर दिया तो तेलसंपन्न अरब देशों को खुश करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में हाथ में उठा दिये।
इस सिलसिले में इकोनामिक टाइम्स का यह खुलासा गौरतलब हैः
TRYING TO SOOTHE NERVES South Block mandarins say there is no contradiction in India's foreign policy
A government that stubbornly refused to pass a resolution in Parliament against Israel's military action in Gaza, even in the face of adjournments and disruptions by a near-united Opposition, went ahead and raised its hand in favour of a UN resolution calling for probe into the Israeli campaign on Wednesday . But South Block mandarins insisted that there was no contradiction in the foreign policy extolled in the House and the one put to practice in Geneva.
“Israel is a nation with which our ties are steadily increasing. But that doesn't mean that we will carry their can everywhere. And they know it well,“ a top MEA official told ET.
“Bilateral friendship is one thing, but stands taken at multilateral fora are another,“ the official said, adding the pro-Israeli policies practiced by top BJP leaders in the past are unlikely to change India's well-articulated position with regard to the plight of the Palestinian people in global fora.
On Thursday , social networks were buzzing with angry right-wing posts questioning what they saw as India's abouttur n on Israel.
“Disg raceful vote a g ainst Israel at UNHRC (United Nations Human Rights Council) notwithstanding Indian public opinion is the most pro-Israel it's ever been,“ tweeted a policy hawk.
MEA spokesman Syed Akbaruddin refused to comment saying there was no contradiction in foreign policy .
Officials that ET spoke to justified the BJP-led government's stand by pointing out that India balanced its interests by bailing out Israel in Parliament and at the same time fulfilling its multilateral obligations by supporting the UN resolution. “We do not have a history of passing Parliamentary resolutions against any country . It has only been in rarest cases like Pakistan and China. The government maintained its friendship with Israel by not allowing a resolution. But at the same time sided with international actors in condemning Israeli actions at a global forum,“ an official source told ET.
“India is deeply concerned at the steep escalation of violence between Israel and Palestine, particularly heavy airstrikes in Gaza and disproportionate use of force on ground, resulting in tragic loss of civilian lives, especially women and children and heavy damage to property," according to the Indian statement at the human rights session.
काले धन की अर्थव्यवस्था और एफडीआई विनिवश पीपीपी मॉडल के अर्ततंत्र की दिशा में वित्तीय सुधार और कर प्रणाली संशोधन सबसे अहम सुधार है। संसद में वित्त विधेयक पास कराते हुए कारपोरेट वकील वित्त प्रतिरक्षा मंत्री ने यह प्रक्रिया भी शुरु कर दी है जिसके तहत सरकार ने देश में औद्योगिक गतिविधियों व रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कर की दरों को हल्का रखने की प्रतिबद्धता जताते हुये ऋण पत्रों में निवेश करने वाले म्यूचुअल फंड उद्योग और आय कर दाताओं के लिए कुछ राहत की शुक्रवार को घोषणाएं कीं।
हम पहले ही बार बार लिखते रहे हैं कि मलाईदार नवधनाढ्य उच्चमध्यवर्ग, मध्यवर्ग और नौकरीपेशा पेशेवर तबको को मामूली राहत देते हुए पूरा देश बेचने का बंदोबस्त है यह बजट।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ढांचागत क्षेत्र की खासकर सार्वजनिक-निजी भागीदारी के अंतर्गत आने वाली परियोजनाओं में तेजी लाने के लिये कई उपायों की घोषणा की। उन्होंने जोर देकर कहा कि बुनियादी ढांचे की कमी से आर्थिक वृद्धि प्रभावित नहीं होने दी जाएगी।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने मुंबई हवाई अड्डा के लिए पीपीपी मॉडल की यह कहते हुए आलोचना की है कि जोखिम को उचित ढंग से निजी पक्ष को हस्तांतरित नहीं किया गया जिससे परियोजना की लागत दोगुनी हो गई और इसके अंतर की भरपाई विकास शुल्क के जरिए यात्रियों से की जा रही है। कैग ने परियोजना को समय विस्तार देने और हवाई अड्डा संचालक मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (मायल) को दंडित नहीं करने के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय को भी आड़े हाथों लिया। यह परियोजना चार साल देरी से चल रही है। संसद में पेश कैग रिपोर्ट में कहा गया, "अंकेक्षण से संकेत मिला कि छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, मुंबई के विकास में रियायतग्राहियों को जोखिम का उचित हस्तांतरण नहीं किया गया।’’रिपोर्ट के मुताबिक, "परियोजना की लागत 5,826 करोड़़ रुपये से बढ़कर 12,380 करोड़़ रुपये पहुंच गई, लेकिन हवाई अड्डा आर्थिक नियामकीय प्राधिकरण (एईआरए) द्वारा इस साल मार्च तक इसे 11,647.46 करोड़़ रुपये तक सीमित रखा गया।’’ यद्यपि परियोजना की लागत दोगुनी हो गई, रियायतग्राही को इसके लिए वित्तीय जोखिम का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि अंतर की भरपाई विकास शुल्क लगाकर यात्रियों से वसूली गई, भले ही इस तरह के शुल्क का परिचालन, प्रबंधन, विकास समझौता (ओएमडीए) में प्रावधान नहीं था।


